यमुनानगर: हरियाणा कृषि प्रधान प्रदेश है. यहां सरकार किसानों की सराहना करने के साथ-साथ अलग तरह की खेती करने पर किसानों को सम्मानित भी करती है. बता दें हरियाणा देश के उन राज्यों में से एक है, जहां सरकार किसानों को तमाम सुविधाएं मुहैया कराती है. साथ ही सरकार ऑर्गेनिक खेती करने के लिए भी किसानों को प्रोत्साहित करती है. प्रदेश सरकार अब ज्यादातर प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही है. किसान भी खूब उत्साह से अलग-अलग तरह की खेती करने में रुचि रखते हैं.
केले की खेती की शुरुआत: मंडोली गांव यमुनानगर में विजय मेहता नामक किसान परंपरागत खेती को बढ़ावा ना देकर केले की खेती कर रहे हैं. साल 2014 में उन्होंने 3 पेड़ों से शुरुआत की थी और आज 2200 से भी ज्यादा पेड़ों से फल ले रहे हैं. किसान का कहना है कि वो अलग-अलग तरह की खेती करने का शौक रखते हैं. आईए जानते हैं कैसे किसान ने केले की खेती के बारे में सोचा और कैसे शुरुआत की.
किसान ने अपनाई केले की खेती: जमीन की उर्वरक शक्ति बनी रहे और पानी का कम से कम इस्तेमाल हो, इसके लिए सरकार किसानों को कई स्कीमें चलाकर परंपरागत खेती छोड़कर अलग-अलग खेती करने के लिए जागरूक कर रही है. लेकिन यमुनानगर में एक ऐसा भी किसान है, जिसे ना तो सरकार के अनुदान की जरूरत है और वो अनोखी खेती करने का भी शौक रखते हैं. यमुनानगर के मंडोली गांव का किसान विजय मेहता. जो कई दशक से गेहूं, धान, गन्ना की फसल के साथ-साथ अलग तरह की भी खेती करते आ रहे हैं.
विजय मेहता को सम्मान: साल 1990-94 में यमुनानगर में विजय मेहता ने सबसे ज्यादा 25 एकड़ में सूरजमुखी की फसल उगाई थी. जिसके चलते उन्हें सम्मानित भी किया गया था. वहीं साल 2014 से पहले जब उन्होंने एक बार मुंबई दौरा किया, तो रास्ते में उन्होंने केले के पेड़ देखे. जिससे प्रभावित होकर उन्होंने अपने खेत में 3 पेड़ लगाए. जिसके बाद फसल बढ़ती गई और आज के समय में उनके पास केले के करीब 2200 पेड़ हैं. उनका कहना है कि हर साल वे 1 एकड़ खेत में फसल लगाते हैं. हाल ही में उनके पास 3 एकड़ में केले की फसल खड़ी है.
केले की फसल पर लागत: वहीं, उन्होंने बताया कि केले की फसल पर लगभग एक एकड़ पर 1 लाख रुपए का खर्च आ जाता है. जितनी कमाई गन्ने की फसल से होती है, उतनी ही कमाई केले की फसल से भी हो जाती है. उनका कहना है कि कमाई के लिए नहीं बल्कि अलग तरह की खेती करना उनका शौक है. जिसके चलते वे केले की खेती कर रहे हैं. उन्होने बताया कि 11 महीने में फसल आती है और 1 पेड़ पर लगभग 10 किलो केले लगते हैं. और ये केले पकाकर खाने के नहीं बल्कि सब्जी बनाने और चिप्स बनाने के काम आते हैं.
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इन केलों से बनते हैं चिप्स: वहीं, उन्होने बताया कि केले बेचने के साथ-साथ उनके पेड़ों के पत्ते भी बिक रहे हैं. होटलों में बर्तन की जगह केले के पत्ते इस्तेमाल किए जा रहे हैं. फिलहाल बात करें तो किसान का कहना है कि सरकार की तरफ से इस खेती के लिए अनुदान नहीं मिल रहा. लेकिन वे इतना जरुर चाहते हैं, कि जिप्सम पर उन्हे अनुदान मिले और जैसे कुछ सालों में समय पर डीएपी नहीं मिल पाता है उसकी पूर्ति करवाई जाए.