सोनीपत: हरियाणवी लोक संस्कृति को हमेशा जीवंत रखने में लोक कवियों की अहम भूमिका रही है. सदियों से हरियाणा की पावन धरती पर महान कवियों का जन्म हुआ, जिनमें सूर्य कवि की ख्याति प्राप्त कर चुके बाजे भगत भी शामिल हैं. अपनी गायन शैली के चलते बाजे भगत बहुत प्रसिद्ध हुए. बाजे भगत से जुड़ी कई रागनियां आज भी लोग आपको गुनगुनाते मिल जाएंगे.
सोनीपत जिले के खरखौदा कस्बे के गांव सिसाना में 16 जुलाई 1898 में शिवरात्रि के दिन हुआ था. आज के वक्त में गांव सिसाना सामाजिक और राजनीतिक रूप से एक विकसित गांव बन चुका है. उनका गांव में पुश्तैनी घर है, जो पूरी तरह से जर्जर हो गया. फिलहाल उस पर पुनर्निर्माण का काम चल रहा है. बाजे राम के पिता का नाम बदलू राम और माता का नाम बदामो देवी था. बदलू राम सनातन धर्म के गायक और प्रचारक थे और वे बाजे को संगीत विद्या में पारंगत बनाना चाहते थे. भगत जी नम्रता और मधुर वाणी को जग-जीतने का सबसे बड़ा साधन मानते थे. इसी कारण उन्हें बाजे राम से बाजे भगत कहा जाने लगा.
बाजे भगत से जुड़े किस्से
बाजे भगत का उनकी ससुराल से जुड़ा एक किस्सा है. बाजे भगत के ससुराली जन आर्य समाजी थी, जिसकी वजह से वहां के लोग स्वांग को पसंद नहीं करते थे, लेकिन बाजे की गायन कला के मुरीद थी. आर्य समाजी होने के बाद भी वहां के लोग बाजे भगत द्वारा रचित महाभारत का आदि पर्व, विराट पर्व और श्रीकृष्ण-जन्म को बड़ी रुचि से सुनते थे.
वहीं बाजे भगत से जुड़ा एक किस्सा उनके गांव का ही है. बाजे गांव में सिर पर पकड़ी नहीं बांधते थे. क्योंकि उस समय पकड़ी गांव में धर्म का प्रतीक समझी जाती थी और बाजे गांव में बड़े बूढ़ों के सामने खुद को बहुत छोटा समझते थे. घमंड उनसे कोसों दूर था.
एक बार बाजे भगत कहीं से स्वांग करके लौट रहे थे, उस समय शंकर नंबरदार की बैठक में कुछ बुजुर्ग हुक्का पी रहे थे. उनमें से एक ने कहा-बेटा बाजे, एक चिलम भर कै जाइए. उन्होंने तुरंत हुक्के से चिलम उतारी और भरने चल पड़े, लेकिन दूसरे ही क्षण एक अन्य युवक ने उनसे चिलम झपट ली. इस पर वृद्ध सज्जन ने कहा-बेटा हम तो केवल न्यू देखे थे कि इतना नाम पाकर कहीं म्हारा बाजे घमंडी तो नहीं हो गया, पर तेरे दिल में तो बड़े बूढ़ों का आज भी वही सम्मान है. जा बेटा.
राजा महाराजा भी होते थे बाजे के मुरीद
जन साधारण सैनिकों और मारवाड़ी सेठों के अतिरिक्त कई इतिहास प्रशिद्ध व्यक्ति इनके स्वांगों को सुनते थे. बड़े-बड़े राजा महाराज भी बाजे भगत के मुरीद हुआ करते थे. बाजे भगत बहुत ही सरल स्वभाव के थे. बाजे भगत को अपने बच्चों के साथ-साथ गांव के अन्य बच्चों को भी बहुत प्यार करते थे. गांव के बच्चों से लेकर बढ़े-बूढ़े तक सभी बाजे से प्यार करते थे. सवारी के लिए बैलगाड़ी और घोड़ा रखते थे, फिर भी गांव में हमेशा पैदल चलते थे.
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अपने जीवन में भगत नियम, व्रत और धर्म का पालन करते रहे, जिसकी चर्चा भगत जी ने अपनी रचनाओं में अनेक जगहों पर की है. 26 फरवरी 1939 की रात को किसी ने बाजे पर छुरे से घातक प्रहार किया था. गहरी चोट होने के बावजूद उन्होंने हमलावर को पकड़ लिया और पहचान भी लिया था, लेकिन अहिंसा के पुजारी ने कहा-अब तू भाग जा. उस समय की पुलिस के पूछने पर भी हत्यारे का नाम नहीं बताया.