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गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने सोनीपत में किसान सम्मेलन में की शिरकत

सोनीपत में आयोजित किसान सम्मेलन में गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत मुख्य अतिथि के तौर पर पहुंचे. उन्होंने यहां प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की बात कही.

गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत सोनीपत में
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Published : Aug 11, 2019, 4:40 PM IST

सोनीपत: शुक्रवार को सोनीपत में प्राकृतिक खेती पर आयोजित किसान सम्मेलन में गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत मुख्य अतिथि के तौर पर पहुंचे. जहां उन्होंने कहा कि अगर हर परिवार को बीमारियों से बचाना है तो किसान को प्राकृतिक खेती की ओर लौटना होगा. जिसमें गाय की भूमिका अहम हो सकती है. क्योंकि गाय के गोबर को हम बड़ी मात्रा में खाद के रूप में प्रयोग कर सकते हैं.

कुदरती खेती का महत्व

सोनीपत में आयोजित किसान सम्मेलन में आचार्य देवव्रत ने कुदरती खेती के महत्व से अवगत कराते हुए कहा कि प्राकृतिक खेती से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का किसानों की आय को दोगुनी करने का सपना पूरा हो सकता है. उन्होंने कहा कि वे गुरुकुल कुरुक्षेत्र के प्रधानाचार्य के रूप में 35 वर्ष तक कार्यरत रहे. इस दौरान वे 200 एकड़ भूमि में खेती करते रहे, किंतु उनका खर्च बढ़ता गया और उत्पादन घटता चला गया. जिसका सीधा कारण यूरिया व कीटनाशकों का प्रयोग था. इसके बाद उन्होंने जैविक खेती की ओर कदम बढ़ाया.

किसान सम्मेलन में गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत मुख्य अतिथि के तौर पर पहुंचे.

रासायनिक खेती से नुकसान

आचार्य देवव्रत ने कहा कि प्राकृतिक खेती से उनका उत्पादन बढ़ने के साथ भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती चली गई. उन्होंने कहा कि करीब 50-60 वर्ष पूर्व कहीं भी खेती में यूरिया-डीएपी का उपयोग नहीं होता था. यूरिया-डीएपी विदेशी देन है जिससे किसानों पर आर्थिक बोझ बढ़ता जाता है और उत्पादन घटता जाता है.

गाय का खेती में महत्व

देवव्रत ने कहा कि एक गाय के गोबर से 30 एकड़ में खेती के लिए प्राकृतिक खाद तैयार हो जाती है, जिसे जीवामृत (तरल) व धनजीवामृत (ठोस) खाद कहा जाता है. उन्होंने दोनों खादों को तैयार करने की विधि भी सिखाते हुए किसानों को प्रोत्साहित किया ताकि वे अपनी आय बढ़ाने के लिए प्राकृतिक खेती करें.

सोनीपत: शुक्रवार को सोनीपत में प्राकृतिक खेती पर आयोजित किसान सम्मेलन में गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत मुख्य अतिथि के तौर पर पहुंचे. जहां उन्होंने कहा कि अगर हर परिवार को बीमारियों से बचाना है तो किसान को प्राकृतिक खेती की ओर लौटना होगा. जिसमें गाय की भूमिका अहम हो सकती है. क्योंकि गाय के गोबर को हम बड़ी मात्रा में खाद के रूप में प्रयोग कर सकते हैं.

कुदरती खेती का महत्व

सोनीपत में आयोजित किसान सम्मेलन में आचार्य देवव्रत ने कुदरती खेती के महत्व से अवगत कराते हुए कहा कि प्राकृतिक खेती से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का किसानों की आय को दोगुनी करने का सपना पूरा हो सकता है. उन्होंने कहा कि वे गुरुकुल कुरुक्षेत्र के प्रधानाचार्य के रूप में 35 वर्ष तक कार्यरत रहे. इस दौरान वे 200 एकड़ भूमि में खेती करते रहे, किंतु उनका खर्च बढ़ता गया और उत्पादन घटता चला गया. जिसका सीधा कारण यूरिया व कीटनाशकों का प्रयोग था. इसके बाद उन्होंने जैविक खेती की ओर कदम बढ़ाया.

किसान सम्मेलन में गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत मुख्य अतिथि के तौर पर पहुंचे.

रासायनिक खेती से नुकसान

आचार्य देवव्रत ने कहा कि प्राकृतिक खेती से उनका उत्पादन बढ़ने के साथ भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती चली गई. उन्होंने कहा कि करीब 50-60 वर्ष पूर्व कहीं भी खेती में यूरिया-डीएपी का उपयोग नहीं होता था. यूरिया-डीएपी विदेशी देन है जिससे किसानों पर आर्थिक बोझ बढ़ता जाता है और उत्पादन घटता जाता है.

गाय का खेती में महत्व

देवव्रत ने कहा कि एक गाय के गोबर से 30 एकड़ में खेती के लिए प्राकृतिक खाद तैयार हो जाती है, जिसे जीवामृत (तरल) व धनजीवामृत (ठोस) खाद कहा जाता है. उन्होंने दोनों खादों को तैयार करने की विधि भी सिखाते हुए किसानों को प्रोत्साहित किया ताकि वे अपनी आय बढ़ाने के लिए प्राकृतिक खेती करें.

Intro:-गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत,,प्राकृतिक खेती पर आयोजित किसान सम्मेलन

प्राकृतिक खेती से होगा प्रधानमंत्री का किसानों की आय दोगुनी करने का स्वप्र साकार: आचार्य देवव्रत
- देशी गाय के गोबर से तैयार खाद से प्राकृतिक खेती बढ़ाएगी उत्पादन व ऊपज

एंकर :-गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत शुक्रवार को सोनीपत पहुंचे इस दौरान उन्होंने प्राकृतिक खेती पर आयोजित किसान सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की और कहा कि अगर हर परिवार को बीमारियों से बचाना है तो किसान को प्राकृतिक खेती की ओर लौटना होगा जिसमें गाय अपना बहुत बड़ा योगदान दे सकती है जिस पर जिस गाय के हाथ को खेतों में इस्तेमाल करना होगा।Body:वी ओ :-गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कुदरती खेती के महत्व से अवगत कराते हुए कहा कि प्राकृतिक खेती से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का किसानों की आय को दोगुनी करने का स्वप्र साकार होगा। बाजारवाद के कुचक्र से निकलने के लिए किसानों को प्राकृतिक खेती अपनानी होगी, जिसमें देशी गाय का सर्वाधिक महत्व है। राज्यपाल आचार्य देवव्रत शुक्रवार को हरसाना कलां के देवी मंदिर में नई आजादी समिति के तत्वावधान में कुदरती खेती विषय पर आयोजित किसान सम्मेलन में उपस्थित किसानों को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। स्वानुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा कि गुरुकुल कुरुक्षेत्र के प्रधानाचार्य के रूप में 35 वर्ष तक कार्यरत रहे। इस दौरान वे 200 एकड़ भूमि में खेती करते रहे, किंतु उनका खर्च बढ़ता गया और उत्पादन घटता चला गया। जिसका सीधा कारण यूरिया व कीटनाशकों का प्रयोग था। इसके बाद उन्होंने जैविक खेती की ओर कदम बढ़ाया। करीब पांच वर्षों तक जैविक खेती से उनकी लागत तो कम हुई लेकिन उत्पादन भी घट गया। इस दौरान उनकी भेंट पदम्श्री सुभाष से हुई जिन्होंने विशुद्ध प्राकृतिक खेती के लिए प्रोत्साहित किया।

बाइट:- आचार्य देवव्रत राज्यपाल गुजरात

वी ओ :-आचार्य देवव्रत ने कहा कि प्राकृतिक खेती से उनका उत्पादन बढऩे के साथ भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती चली गई। उन्होंने कहा कि करीब 50-60 वर्ष पूर्व कहीं भी खेती में यूरिया-डीएपी का उपयोग नहीं होता था। यूरिया-डीएपी विदेशी देन है जिससे किसानों पर आर्थिक बोझ बढ़ता जाता है और उत्पादन घटता जाता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने खाद-बीज-दवाइयों के जाल में किसानों को जकड़ लिया है, जिससे पर्यावरण भी खराब हो रहा है। विभिन्न प्रकार की खतरनाक बिमारियां बढ़ रही हैं, जबकि पहले इन बिमारियों का नाम तक नहीं था। इसमें देशी गाय के गोबर से खाद तैयार किया जाता है। एक गाय से 30 एकड़ में खेती के लिए प्राकृतिक खाद तैयार हो जाती है, जिसे जीवामृत (तरल) व धनजीवामृत (ठोस) खाद कहा जाता है। उन्होंने दोनों खादों को तैयार करने की विधि भी सिखाते हुए किसानों को प्रोत्साहित किया कि वे अपनी आय बढ़ाने के लिए प्राकृतिक खेती करें।


बाइट:-आचार्य देवव्रत राज्यपाल गुजरात

वी ओ :- राज्यपाल ने कहा कि जैविक खेती का भी खूब प्रचार किया जा रहा है, जबकि जैविक खेती भी हमारी नहीं है। उन्होंने विस्तारपूर्वक जैविक खेती व प्राकृतिक खेती के अंतर को समझाया। प्राकृतिक खेती वह है जिसमें किसान को बाजार से कोई भी चीज न लेनी पड़े। यह जीरो बजट की खेती होती है, जिसे केंद्र सरकार ने भी अपने बजट में शामिल किया हैConclusion:
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