सिरसा: राजस्थान और पंजाब की सीमा से लगता हुआ हरियाणा में एक ऐतिहासिक जिला है सिरसा. सिरसा जिसे का सदियों पुराना इतिहास है और इसके निशां आज तक यहां कई किलोमीटर तक फैले हुए हैं. ये एक प्रचीन नगर है. वैसे तो कहा जाता है कि मौजूदा सिरसा की स्थापना साल 1838 में थोरसब नाम के ब्रिटिश ने करना शुरू किया और 1840 तक यह लगभग बस गया, लेकिन इतिहासकार इसे तकनीकी रूप से सही नहीं मानते, ये शहर छठी शताब्दी में ही बस चुका था.
6ठी शताब्दी में था यहां राजा सरस का सम्राज्य
यहां के बुजुर्गों का कहना है कि वो भी अपने पूर्वजों से सुनते आ रहे हैं कि इस शहर का मूल संबंध राजा सरस से है. छठवीं शताब्दी में ही राजा सरस ने खुद को स्वतंत्र घोषित किया और यहां एक मजबूत दुर्ग बनाया. उसने अपने नाम सरस से ही इसका नामकरण किया. सदियों तक ये शहर खूब फूला फला.
'...और धूल में मिल गया पूरा साम्राज्य'
सिरसा संग्राहलय में कार्यरत अधिकारियों का कहना है कि राजा सरस का ये नगर सरस्वती नदी में बाढ़ आने से तबाह हो गया. तो वहीं कुछ लोगों का कहना है कि यहां आए भयानक भूकंप की वजह से यह महल टूट कर बिखर गया. जिसके बाद सैकड़ों सालों तक जो बचे हुए खंडहर थे वो भी धूल में मिल गए.
'उत्तर भारत के सबसे प्राचीन शहरों में एक था सिरसा'
ऐसा माना जाता है कि सिरसा कम से कम 20 से 21 बार बसा और उजड़ा है. इसलिए स्थानीय लोग इस पर कभी सिरसा कभी निरसा जुमला प्रयोग करते है. इसी प्रकार के थेहड़ सिरसा के आसपास भी थे. इन थेहड़ों से यह भी पता चलता है कि सिरसा उत्तर भारत के सबसे प्राचीनतम शहर में से एक है. इस शहर के आसपास जैसे नाकोड़ा, करीवाला और बनवाली गांव में भी इसी प्रकार के थेहड़ हैं. जिससे यह आभास होता है कि किसी जमाने में सरस्वती के किनारे बहुत आबादी रहती थी.
आज भी मिलते हैं 6ठी शताब्दी के अवशेष
इस थेहड़ में बहुत से अवशेष मिले हैं, विशेष रुप से सिक्कों पर लगाने वाली एक मोहर भी मिली है. जो सरस साम्राज्य की बात को पुख्ता करती है. थेहड़ में बहुत से ऐसे पत्थर भी मिले हैं जिन पर राजा की भक्ति के बहुत से श्लोक लिखे हुए मिले हैं. इनकी भाषा संस्कृति और अक्षर ब्राह्मणी लिपि के थे. अब भी काफी मात्रा में यहां अवशेष हैं. इस थेहड़ के अवशेष सिरसा के बाल भवन के म्यूज़ियम में स्थित है. जबकि काफी सामग्री स्थानीय लोगों ने अपने मकान बनवाने में इस्तेमाल कर लिए.
वक्त के थपेड़ों ने दुर्ग को बना दिया थेहड़
सिरसा के दक्षिणी पश्चिमी भाग में रानिया रोड पर दो बड़े टीले हैं. एक बड़ा है और एक छोटा. ऐसा माना जाता है कि बड़े थेहड़ पर बड़ा दुर्ग था और छोटे थेहड़ पर आम लोग निवास करते थे. इस मलबे को ही यहां के लोग इसे अपनी भाषा में थेहड़ कहते हैं.
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यहां के कुछ बुजुर्गों का कहना है की यह नगर सरस्वती नदी में बाढ़ आने से तबाह हो गया तो वहीं कुछ का कहना है कि यहां आए भयानक भूकंप की वजह से यह महल टूट कर बिखर गया. जिसके बाद सालों तक खंडर पड़े रहने और राजस्थान की तरफ से धूल मिट्टी उड़ने की वजह से यह महल के खंडहर मिट्टी में दब गए. जिसे अब स्थानीय भाषा में थेहड़ कहा जाता है.
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