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सिरसा में कौन जीत रहा है? पढ़िए पूरा समीकरण

सिरसा में इन पांचों उम्मीदवारों के बीच रोचक मुकाबले की उम्मीद है. सिरसा संसदीय क्षेत्र में करीब 17 लाख 63 हजार वोटर है. सिरसा संसदीय क्षेत्र पंजाबी बहुल इलाका है. सिरसा एक आरक्षित लोकसभा सीट है,पिछले चुनाव में चरणजीत रोड़ी ने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर को हराया था.

सिरसा लोकसभा सीट का पूरा गणित, जानें कौन देगा किसे कड़ी टक्कर!
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Published : Apr 29, 2019, 5:03 PM IST

Updated : Apr 29, 2019, 5:15 PM IST

चरणजीत सिंह रोड़ी (इनेलो)
सिरसा लोकसभा क्षेत्र से इनेलो के चरणजीत सिंह रोड़ी निवर्तमान सांसद हैं. पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़कर सांसद बने चरणजीत सिंह रोड़ी मूल रूप से सिरसा के गांव रोड़ी के रहने वाले हैं. इससे पहले चरणजीत रोड़ी कालांवाली से विधायक रह चुके हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में चरणजीत रोड़ी ने कांग्रेस के अशोक तंवर को करीब सवा लाख वोट से हराया था.

सुनीता दुग्गल (बीजेपी)
सिरसा संसदीय सीट पर आज तक बीजेपी जीत नहीं पाई है. यहां अब तक हुए चुनावों में बीजेपी यहां एक बार भी जीत दर्ज नहीं कर सकी है. मई 2014 में मोदी लहर में भी यहां बीजेपी-हजकां गठबंधन उम्मदीवार तीसरे स्थान पर रहा. अब सुनीता दुग्गल सिरसा सीट पर लोकसभा की उम्मीदवार हैं. उन्होंने 2014 में अपनी सरकारी नौकरी भी छोड़ दी थी. चुनाव से कुछ समय पहले ही बीजेपी के हरियाणा जनहित कांग्रेस के साथ समझौता होने के चलते सिरसा की सीट हजकां के हिस्से आईं. हालांकि बाद में सुनीता दुग्गल को बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में रतिया से उम्मीदवार बनाया. सुनीता दुग्गल ने रतिया से 50452 वोट तो हासिल किए पर महज 453 वोटों से चुनाव हार गईं.

अशोक तंवर (कांग्रेस)
अशोक तंवर कांग्रेस से सिरसा लोकसभा की सीट पर प्रबल दावेदार है. अशोक तंवर सिरसा से सांसद भी रह चुके है. सिरसा लोकसभा सीट पर 2009 में पहली बार चुनाव लड़कर सांसद बने थे. 2009 में तंवर ने अपने निकटतम इनेलो के प्रतिद्वंदी डॉ सीता राम को 35 हजार 499 वोटों से हराया था. वहीं 2014 में वो इनेलो के उमीदवार चरणजीत सिंह रोड़ी से चुनाव हार गए.

निर्मल सिंह मलड़ी (जेजेपी)
जननायक जनता पार्टी के उम्मीदवार निर्मल सिंह मलड़ी का यह पहला लोकसभा चुनाव है. इससे पहले निर्मल सिंह मलड़ी ने पूर्व मंत्री गोपाल कांडा की हरियाणा लोकहित पार्टी से 2014 में कालांवाली से विधानसभा चुनाव लड़ा था . इस चुनाव में उन्होंने 16000 वोट हासिल किए थे. अभी इसी साल जनवरी में हलोपा को छोड़कर दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी में शामिल हुए हैं .

पिछले पांच चुनावों का इतिहास
पिछले पांच चुनावी नतीजे देखें तो यहां पर तीन बार लोकदल जबकि दो बार कांग्रेस को जीत मिली है. सन 1998 के चुनाव में लोकदल के सुशील इंदौरा ने 309451 वोट हासिल कर कांग्रेस की कुमारी सैलजा को करीब 94 हजार वोटों से हराया. 1999 के चुनाव में फिर से सुशील इंदौरा ने जीत हासिल की. इंदौरा ने 419278 वोट हासिल करते हुए कांग्रेस के ओमप्रकाश को करीब 2.19 लाख वोटों से हराया. 2004 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के आत्मा सिंह गिल ने 3 लाख 94 हजार 388 वोट लेते हुए इनेलो के सुशील इंदौरा को करीब 62 हजार वोट से हराया जबकि 2009 के चुनाव में कांग्रेस के अशोक तंवर ने इनेलो के सीताराम को करीब 35 हजार वोट से हराया. पिछले चुनाव में इनेलो के चरणजीत रोड़ी ने कांग्रेस के अशोक तंवर को करीब सवा लाख वोट से पराजित किया.

सिरसा से इन नेताओं ने मारी है लोकसभा चुनाव में बाजी
साल सांसद पार्टी वोट प्रतिशत
1977 चांदराम जनता पार्टी 68.44
1980 दलबीर सिंह कांग्रेस 37.04
1984 दलबीर सिंह कांग्रेस 54.66
1989 हेतराम जनता दल 49.08
1991 कुमारी सैलजा कांग्रेस 42.92
1996 कुमारी सैलजा कांग्रेस 33.05
1998 सुशील इदौरा हलोद(र) 42.33
1999 सुशील इंदौरा इनेलो 65.98
2004 आत्मा सिंह गिल कांग्रेस 41.51
2009 अशोक तंवर कांग्रेस 42.05
2014 चरणजीत सिंह रोडी इनोलो 39.58

सिरसा के बड़े चुनावी मुद्दे!
सिरसा में कॉटन का उत्पादन सबसे ज्यादा होता है,लकिन यहां पर कोई एग्रो बेस्ड इंडस्ट्रीज नहीं है. सिरसा में टेक्सटाइल मिल लग जाती है तो यहाँ उद्योगों का पिछड़ापन दूर होने के साथ-साथ बेरोजगारों को रोजगार भी मिलेगा. प्रधानमंत्री मोदी ने विधानसभा चुनाव से पहले सिरसा में एग्रो इंडस्ट्री लगाने, जबकि 2 साल पहले पानीपत की रैली में केंद्रीय कपडा मंत्री स्मृति ईरानी ने सिरसा में होजरी क्लस्टर बनाये जाने का ऐलान किया था. सिरसा ज़िले में बढ़ता नशा सबसे बड़ा मुद्दा है,किसी भी राजनीतिकदल ने नशे के खात्मे को लेकर कोई कदम नहीं उठाया. सिरसा के डबवाली इलाके में कैंसर के मरीजों की संख्या भी बहुत है,यहां पर कैंसर की बीमारी के इलाज के लिए कोई बड़ा अस्पताल नहीं है. इसके अलावा बेरोजगारी भी बहुत बड़ा मुद्दा है, कोई बड़ा उद्योग नहीं है. शिक्षा के क्षेत्र में भी सिरसा पिछड़ा हुआ इलाका है.

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सिरसा शहर की तस्वीर.

डेरा सच्चा सौदा फैक्टर
सिरसा लोकसभा क्षेत्र की बात करें तो चुनावों में यहां डेरा सच्चा सौदा का प्रभाव रहा है. यहां लगभग पिछले दो दशक से डेरा सच्चा सौदा लोकसभा चुनावों को प्रभावित करता रहा है. यही कारण है कि पिछले दिनों हरियाणा की कई बड़ी पार्टियों ने इस लोकसभा चुनाव में डेरे से समर्थन की मांग की है. सिरसा डेरे का प्रभाव हरियाणा के साथ पंजाब , राजस्थान और कुछ हद तक दिल्ली में भी पड़ता है.


अगर डेरे के प्रभाव की हरियाणा में बात करें तो खासकर सिरसा , फतेहाबाद , कैथल , नरवाना और टोहाना जैसे क्षेत्रों में इसका अधिक प्रभाव डालता है. सूबे के यही वो क्षेत्र हैं जहां से डेरा सच्चा सौदा में श्रद्धालू बड़ी संख्या में आते थे. पिछले चुनावों में जब डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम पर किसी भी तरह का आरोप साबित नही हुआ था और डेरे में हर तरह के कार्यक्रम आयोजित होते थे. तब हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और दिल्ली के लगभग सभी पार्टियों के बड़े नेता डेरा सच्चा सौदा में राम रहीम से मिलने आते थे. डेरा प्रमुख के कहने पर ही डेरा की राजनीतिक मीडिया विंग फैसला लेती थी . और किसी पार्टी को स्पोर्ट करते थे, लेकिन इस बार का मंजर कुछ और है. डेरा प्रमुख रोहतक सुनारिया जेल में सजा काट रहा है . और उसके श्रद्धालुओं की संख्या में काफी हद तक कमी आयी है. इसलिए पहले डेरे में जो श्रद्धालु लाखों की संख्या में आते थे , अब वो सिमट कर चंद कुछ हजारों में रह गए हैं.

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सिरसा लोकसभा क्षेत्र की तस्वीर

गौरतलब है कि डेरा सच्चा सौदा का पिछले काफी समय से सियासत में दखल रहा है. इस बार डेरा की राजनीतिक मीडिया विंग का चुनाव को लेकर मीटिंग की चर्चाएं हुई . लेकिन डेरे की इस सियासी हस्तक्षेप का मामला इस बार चुनाव आयोग एवं कोर्ट के पास भी पहुंच गया है.

किसान और युवाओं की बड़ी भूमिका
अगर किसानों और युवाओं की बात करें तो केंद्र और हरियाणा सरकार की तरफ से किसानो और युवाओं के हित के लिए बहुत सी योजनाएं शुरू की गई हैं. सिरसा के कई किसानों का कहना है कि सरकार ने योजनाएं तो अच्छी शुरू की गई हैं, लेकिन उन योजनाओं में काम अच्छी तरह नहीं हो रहा है. किसानों को जो लाभ पहुंचना चहिए वो नहीं मिल रहा है. वहीं दूसरी तरफ युवाओं का कहना है कि सरकार की तरफ़ से नोकरियां तो मिली हैं लेकिन उसकी संख्या कम है . नोकरियों की संख्या और अधिक होनी चाहिए थी. साथ ही शिक्षा के स्तर में और सुधार की आवश्यकता है.

सिरसा संसदीय क्षेत्र में मतदाता
विधानसभा पुरुष महिला कुल
नरवाना 1,06,691 90,554 1,97,245
टोहाना 1,13,444 1,02,039 2,15,483
फतेहाबाद 1,22,693 1,07,879 2,30,572
रतिया 1,08,198 98,137 2,06,335
कालांवली 90,638 79,508 1,70,146
डबवाली 1,01,073 88,494 1,89,567
रानियां 91,945 81,196 1,73,141
सिरसा 1,02,462 91,535 1,93,997
ऐलनाबाद 93,217 81,361 1,74,578
कुल 9,30,361 8,20,703 17,51,064


सिरसा में ये जातीय समीकरण अहम मायने रखते हैं.
पिछले चुनाव में जहां पूरे देश और हरियाणा में मोदी लहर चल रही थी. वहीं इस बार परिस्थितियां थोड़ी अलग है. यही वजह है कि कांग्रेस के अलावा इनेलो और जेजेपी के उमीदवार भी अपने जीत के समीकरण बनाने जुटे हुए हैं. जिसके लिए हरियाणा में जजपा जहां आप के साथ गठबंधन कर आगे बढ़ रही है. वहीं बसपा ने भी एलएसपी का हाथ थामा है. मौजूदा सरकार में होने के बाद भी बीजेपी को हरियाणा में अकाली दल को साथ लेना पड़ा है. कांग्रेस इस चुनाव में अकेले चल रही है. सिरसा एक आरक्षित लोकसभा सीट है इसलिए यहां हर पार्टी के उम्मीदवारों के लिए जातीय समीकरण में बहुत अहम हो जाता है.

ये है सिरसा का जातीय समीकरण
अनुसुचित जाति 7,25,000
जाट समुदाय 3,25,000
जट्ट सिख 1,82,000
पंजाबी 1,11,000
बनिया 87,000
कंबोज 85,000
ब्राह्मण 55,000
बिश्नोई 48,000
पिछड़ा वर्ग 1,30,000
अन्य 15,000
कुल 17,63,000

सिरसा लोकसभा क्षेत्र की खासियत
सिरसा संसदीय क्षेत्र का मिजाज अनूठा है. कई रोचक पहलू और किस्से जुड़े हैं. इस संसदीय क्षेत्र से पिता-पुत्री सांसद रह चुके हैं. हरियाणा गठन के बाद 1967 के आम चुनाव में दलबीर सिंह यहां से सांसद रहे. दलबीर सिंह ही सबसे ज्यादा चार बार सांसद रहे. दो बार उनकी बेटी कुमारी सैलजा भी यहां से सांसद बनी. सबसे रोचक पहलू यह है कि यहां पर अधिकतर बाहरी उम्मीदवार की विजय हुई है. 1967 लेकर अब यहां 13 आम चुनाव हुए, जिनमें दस चुनावों में बाहरी उम्मीदवार यानी सिरसा संसदीय क्षेत्र से अलग जगह के निवासी को जीत मिली है.

1967, 1971, 1980 और 84 में सांसद बने दलबीर सिंह मूल रूप से हिसार के गांव प्रभुवाला के रहने वाले थे. वहीं 1977 में जनता पार्टी से सांसद बने चांदराम झज्जर के गांव खरड़ से ताल्लुक रखते थे. 1991 और 1996 में सांसद बनी कुमारी सैलजा भी हिसार से ताल्लुक रखती हैं, जबकि 1998 और 1999 में सांसद बने सुशील इंदौरा मूल रूप से राजस्थान के गंगानगर के रहने वाले हैं.

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सिरसा में मौजूद चौधरी देवी लाल विश्विद्यालय

2009 में सांसद बने अशोक तंवर झज्जर के गांव चिमनी के रहने वाले हैं. यहां पर तीन ऐसे सांसद हैं जो मूल रूप से इसी इलाके से ताल्लुक रखते हैं. इनमें आत्मा सिंह गिल फतेहाबाद जिला के गांव बलियाला के रहने वाले हैं, जबकि 1989 में सांसद बने हेतराम सिरसा निवासी हैं. इसी तरह से वर्तमान सांसद चरणजीत सिंह सिरसा जिला के गांव रोड़ी के रहने वाले हैं. यह भी एक रोचक पहलू है कि अब भी कुछ प्रमुख दलों की ओर से बाहरी उम्मीदवारों के आसरे जीत की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं.

चरणजीत सिंह रोड़ी (इनेलो)
सिरसा लोकसभा क्षेत्र से इनेलो के चरणजीत सिंह रोड़ी निवर्तमान सांसद हैं. पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़कर सांसद बने चरणजीत सिंह रोड़ी मूल रूप से सिरसा के गांव रोड़ी के रहने वाले हैं. इससे पहले चरणजीत रोड़ी कालांवाली से विधायक रह चुके हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में चरणजीत रोड़ी ने कांग्रेस के अशोक तंवर को करीब सवा लाख वोट से हराया था.

सुनीता दुग्गल (बीजेपी)
सिरसा संसदीय सीट पर आज तक बीजेपी जीत नहीं पाई है. यहां अब तक हुए चुनावों में बीजेपी यहां एक बार भी जीत दर्ज नहीं कर सकी है. मई 2014 में मोदी लहर में भी यहां बीजेपी-हजकां गठबंधन उम्मदीवार तीसरे स्थान पर रहा. अब सुनीता दुग्गल सिरसा सीट पर लोकसभा की उम्मीदवार हैं. उन्होंने 2014 में अपनी सरकारी नौकरी भी छोड़ दी थी. चुनाव से कुछ समय पहले ही बीजेपी के हरियाणा जनहित कांग्रेस के साथ समझौता होने के चलते सिरसा की सीट हजकां के हिस्से आईं. हालांकि बाद में सुनीता दुग्गल को बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में रतिया से उम्मीदवार बनाया. सुनीता दुग्गल ने रतिया से 50452 वोट तो हासिल किए पर महज 453 वोटों से चुनाव हार गईं.

अशोक तंवर (कांग्रेस)
अशोक तंवर कांग्रेस से सिरसा लोकसभा की सीट पर प्रबल दावेदार है. अशोक तंवर सिरसा से सांसद भी रह चुके है. सिरसा लोकसभा सीट पर 2009 में पहली बार चुनाव लड़कर सांसद बने थे. 2009 में तंवर ने अपने निकटतम इनेलो के प्रतिद्वंदी डॉ सीता राम को 35 हजार 499 वोटों से हराया था. वहीं 2014 में वो इनेलो के उमीदवार चरणजीत सिंह रोड़ी से चुनाव हार गए.

निर्मल सिंह मलड़ी (जेजेपी)
जननायक जनता पार्टी के उम्मीदवार निर्मल सिंह मलड़ी का यह पहला लोकसभा चुनाव है. इससे पहले निर्मल सिंह मलड़ी ने पूर्व मंत्री गोपाल कांडा की हरियाणा लोकहित पार्टी से 2014 में कालांवाली से विधानसभा चुनाव लड़ा था . इस चुनाव में उन्होंने 16000 वोट हासिल किए थे. अभी इसी साल जनवरी में हलोपा को छोड़कर दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी में शामिल हुए हैं .

पिछले पांच चुनावों का इतिहास
पिछले पांच चुनावी नतीजे देखें तो यहां पर तीन बार लोकदल जबकि दो बार कांग्रेस को जीत मिली है. सन 1998 के चुनाव में लोकदल के सुशील इंदौरा ने 309451 वोट हासिल कर कांग्रेस की कुमारी सैलजा को करीब 94 हजार वोटों से हराया. 1999 के चुनाव में फिर से सुशील इंदौरा ने जीत हासिल की. इंदौरा ने 419278 वोट हासिल करते हुए कांग्रेस के ओमप्रकाश को करीब 2.19 लाख वोटों से हराया. 2004 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के आत्मा सिंह गिल ने 3 लाख 94 हजार 388 वोट लेते हुए इनेलो के सुशील इंदौरा को करीब 62 हजार वोट से हराया जबकि 2009 के चुनाव में कांग्रेस के अशोक तंवर ने इनेलो के सीताराम को करीब 35 हजार वोट से हराया. पिछले चुनाव में इनेलो के चरणजीत रोड़ी ने कांग्रेस के अशोक तंवर को करीब सवा लाख वोट से पराजित किया.

सिरसा से इन नेताओं ने मारी है लोकसभा चुनाव में बाजी
साल सांसद पार्टी वोट प्रतिशत
1977 चांदराम जनता पार्टी 68.44
1980 दलबीर सिंह कांग्रेस 37.04
1984 दलबीर सिंह कांग्रेस 54.66
1989 हेतराम जनता दल 49.08
1991 कुमारी सैलजा कांग्रेस 42.92
1996 कुमारी सैलजा कांग्रेस 33.05
1998 सुशील इदौरा हलोद(र) 42.33
1999 सुशील इंदौरा इनेलो 65.98
2004 आत्मा सिंह गिल कांग्रेस 41.51
2009 अशोक तंवर कांग्रेस 42.05
2014 चरणजीत सिंह रोडी इनोलो 39.58

सिरसा के बड़े चुनावी मुद्दे!
सिरसा में कॉटन का उत्पादन सबसे ज्यादा होता है,लकिन यहां पर कोई एग्रो बेस्ड इंडस्ट्रीज नहीं है. सिरसा में टेक्सटाइल मिल लग जाती है तो यहाँ उद्योगों का पिछड़ापन दूर होने के साथ-साथ बेरोजगारों को रोजगार भी मिलेगा. प्रधानमंत्री मोदी ने विधानसभा चुनाव से पहले सिरसा में एग्रो इंडस्ट्री लगाने, जबकि 2 साल पहले पानीपत की रैली में केंद्रीय कपडा मंत्री स्मृति ईरानी ने सिरसा में होजरी क्लस्टर बनाये जाने का ऐलान किया था. सिरसा ज़िले में बढ़ता नशा सबसे बड़ा मुद्दा है,किसी भी राजनीतिकदल ने नशे के खात्मे को लेकर कोई कदम नहीं उठाया. सिरसा के डबवाली इलाके में कैंसर के मरीजों की संख्या भी बहुत है,यहां पर कैंसर की बीमारी के इलाज के लिए कोई बड़ा अस्पताल नहीं है. इसके अलावा बेरोजगारी भी बहुत बड़ा मुद्दा है, कोई बड़ा उद्योग नहीं है. शिक्षा के क्षेत्र में भी सिरसा पिछड़ा हुआ इलाका है.

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सिरसा शहर की तस्वीर.

डेरा सच्चा सौदा फैक्टर
सिरसा लोकसभा क्षेत्र की बात करें तो चुनावों में यहां डेरा सच्चा सौदा का प्रभाव रहा है. यहां लगभग पिछले दो दशक से डेरा सच्चा सौदा लोकसभा चुनावों को प्रभावित करता रहा है. यही कारण है कि पिछले दिनों हरियाणा की कई बड़ी पार्टियों ने इस लोकसभा चुनाव में डेरे से समर्थन की मांग की है. सिरसा डेरे का प्रभाव हरियाणा के साथ पंजाब , राजस्थान और कुछ हद तक दिल्ली में भी पड़ता है.


अगर डेरे के प्रभाव की हरियाणा में बात करें तो खासकर सिरसा , फतेहाबाद , कैथल , नरवाना और टोहाना जैसे क्षेत्रों में इसका अधिक प्रभाव डालता है. सूबे के यही वो क्षेत्र हैं जहां से डेरा सच्चा सौदा में श्रद्धालू बड़ी संख्या में आते थे. पिछले चुनावों में जब डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम पर किसी भी तरह का आरोप साबित नही हुआ था और डेरे में हर तरह के कार्यक्रम आयोजित होते थे. तब हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और दिल्ली के लगभग सभी पार्टियों के बड़े नेता डेरा सच्चा सौदा में राम रहीम से मिलने आते थे. डेरा प्रमुख के कहने पर ही डेरा की राजनीतिक मीडिया विंग फैसला लेती थी . और किसी पार्टी को स्पोर्ट करते थे, लेकिन इस बार का मंजर कुछ और है. डेरा प्रमुख रोहतक सुनारिया जेल में सजा काट रहा है . और उसके श्रद्धालुओं की संख्या में काफी हद तक कमी आयी है. इसलिए पहले डेरे में जो श्रद्धालु लाखों की संख्या में आते थे , अब वो सिमट कर चंद कुछ हजारों में रह गए हैं.

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सिरसा लोकसभा क्षेत्र की तस्वीर

गौरतलब है कि डेरा सच्चा सौदा का पिछले काफी समय से सियासत में दखल रहा है. इस बार डेरा की राजनीतिक मीडिया विंग का चुनाव को लेकर मीटिंग की चर्चाएं हुई . लेकिन डेरे की इस सियासी हस्तक्षेप का मामला इस बार चुनाव आयोग एवं कोर्ट के पास भी पहुंच गया है.

किसान और युवाओं की बड़ी भूमिका
अगर किसानों और युवाओं की बात करें तो केंद्र और हरियाणा सरकार की तरफ से किसानो और युवाओं के हित के लिए बहुत सी योजनाएं शुरू की गई हैं. सिरसा के कई किसानों का कहना है कि सरकार ने योजनाएं तो अच्छी शुरू की गई हैं, लेकिन उन योजनाओं में काम अच्छी तरह नहीं हो रहा है. किसानों को जो लाभ पहुंचना चहिए वो नहीं मिल रहा है. वहीं दूसरी तरफ युवाओं का कहना है कि सरकार की तरफ़ से नोकरियां तो मिली हैं लेकिन उसकी संख्या कम है . नोकरियों की संख्या और अधिक होनी चाहिए थी. साथ ही शिक्षा के स्तर में और सुधार की आवश्यकता है.

सिरसा संसदीय क्षेत्र में मतदाता
विधानसभा पुरुष महिला कुल
नरवाना 1,06,691 90,554 1,97,245
टोहाना 1,13,444 1,02,039 2,15,483
फतेहाबाद 1,22,693 1,07,879 2,30,572
रतिया 1,08,198 98,137 2,06,335
कालांवली 90,638 79,508 1,70,146
डबवाली 1,01,073 88,494 1,89,567
रानियां 91,945 81,196 1,73,141
सिरसा 1,02,462 91,535 1,93,997
ऐलनाबाद 93,217 81,361 1,74,578
कुल 9,30,361 8,20,703 17,51,064


सिरसा में ये जातीय समीकरण अहम मायने रखते हैं.
पिछले चुनाव में जहां पूरे देश और हरियाणा में मोदी लहर चल रही थी. वहीं इस बार परिस्थितियां थोड़ी अलग है. यही वजह है कि कांग्रेस के अलावा इनेलो और जेजेपी के उमीदवार भी अपने जीत के समीकरण बनाने जुटे हुए हैं. जिसके लिए हरियाणा में जजपा जहां आप के साथ गठबंधन कर आगे बढ़ रही है. वहीं बसपा ने भी एलएसपी का हाथ थामा है. मौजूदा सरकार में होने के बाद भी बीजेपी को हरियाणा में अकाली दल को साथ लेना पड़ा है. कांग्रेस इस चुनाव में अकेले चल रही है. सिरसा एक आरक्षित लोकसभा सीट है इसलिए यहां हर पार्टी के उम्मीदवारों के लिए जातीय समीकरण में बहुत अहम हो जाता है.

ये है सिरसा का जातीय समीकरण
अनुसुचित जाति 7,25,000
जाट समुदाय 3,25,000
जट्ट सिख 1,82,000
पंजाबी 1,11,000
बनिया 87,000
कंबोज 85,000
ब्राह्मण 55,000
बिश्नोई 48,000
पिछड़ा वर्ग 1,30,000
अन्य 15,000
कुल 17,63,000

सिरसा लोकसभा क्षेत्र की खासियत
सिरसा संसदीय क्षेत्र का मिजाज अनूठा है. कई रोचक पहलू और किस्से जुड़े हैं. इस संसदीय क्षेत्र से पिता-पुत्री सांसद रह चुके हैं. हरियाणा गठन के बाद 1967 के आम चुनाव में दलबीर सिंह यहां से सांसद रहे. दलबीर सिंह ही सबसे ज्यादा चार बार सांसद रहे. दो बार उनकी बेटी कुमारी सैलजा भी यहां से सांसद बनी. सबसे रोचक पहलू यह है कि यहां पर अधिकतर बाहरी उम्मीदवार की विजय हुई है. 1967 लेकर अब यहां 13 आम चुनाव हुए, जिनमें दस चुनावों में बाहरी उम्मीदवार यानी सिरसा संसदीय क्षेत्र से अलग जगह के निवासी को जीत मिली है.

1967, 1971, 1980 और 84 में सांसद बने दलबीर सिंह मूल रूप से हिसार के गांव प्रभुवाला के रहने वाले थे. वहीं 1977 में जनता पार्टी से सांसद बने चांदराम झज्जर के गांव खरड़ से ताल्लुक रखते थे. 1991 और 1996 में सांसद बनी कुमारी सैलजा भी हिसार से ताल्लुक रखती हैं, जबकि 1998 और 1999 में सांसद बने सुशील इंदौरा मूल रूप से राजस्थान के गंगानगर के रहने वाले हैं.

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सिरसा में मौजूद चौधरी देवी लाल विश्विद्यालय

2009 में सांसद बने अशोक तंवर झज्जर के गांव चिमनी के रहने वाले हैं. यहां पर तीन ऐसे सांसद हैं जो मूल रूप से इसी इलाके से ताल्लुक रखते हैं. इनमें आत्मा सिंह गिल फतेहाबाद जिला के गांव बलियाला के रहने वाले हैं, जबकि 1989 में सांसद बने हेतराम सिरसा निवासी हैं. इसी तरह से वर्तमान सांसद चरणजीत सिंह सिरसा जिला के गांव रोड़ी के रहने वाले हैं. यह भी एक रोचक पहलू है कि अब भी कुछ प्रमुख दलों की ओर से बाहरी उम्मीदवारों के आसरे जीत की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं.

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Last Updated : Apr 29, 2019, 5:15 PM IST
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