रोहतक: विश्व ग्लूकोमा सप्ताह के अंतर्गत सोमवार को पीजीआईएमएस रोहतक परिसर में जागरूकता रैली निकाली गई. इस दौरान पीजीआईएमएस के वरिष्ठ नेत्र चिकित्सकों ने लोगों को जागरूक किया और काला मोतिया से बचाव ही इसका इलाज है. चिकित्सकों का कहना है कि समय रहते अगर पहचान कर ली जाए तो आंखों की रोशनी को बचाया जा सकता है. इसलिए लोगों को 40 की उम्र के बाद नियमित तौर पर आंखों की स्क्रीनिंग करानी चाहिए, ताकि अगर ग्लूकोमा के शुरुआती लक्षण हैं तो उसका इलाज किया जा सके. दरअसल इस बार 12 मार्च से 18 मार्च तक विश्व ग्लूकोमा सप्ताह का आयोजन किया जा रहा है.
पीजीआईएमएस रोहतक के नेत्र रोग विभागाध्यक्ष डॉ. आरएस चौहान ने बताया कि संस्थान में सभी सुविधाएं निशुल्क हैं. लोगों को इनका फायदा उठाना चाहिए. बहुत-सी दवाएं ऐसी भी हैं, जोकि निजी अस्पतालों में काफी महंगी मिलती हैं. लेकिन यहां पर मरीज की सर्जरी और लेजर पूरी तरह से निशुल्क होता है, जिसका उनको फायदा उठाना चाहिए.
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वहीं, पीजीआईएमएस रोहतक के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. मनीषा राठी और डॉ. सुमित सचदेवा ने बताया कि काला मोतिया की अगर समय से जांच कर ली जाए तो उसका इलाज संभव है. जागरूकता की कमी के कारण लोग सरकारी संस्थानों तक नहीं पहुंच पाते. पूरी दुनिया विश्व ग्लूकोमा सप्ताह मना रही है, जिसका मकसद यही है कि लोगों को ग्लूकोमा यानी काला मोतिया से जागरूक किया जा सके, ताकि समय रहते अगर इसकी स्क्रीनिंग हो जाए तो इलाज किया जा सके. रोहतक पीजीआई में वह सभी सुविधाएं मौजूद हैं, जिससे मरीज की आंखों की बीमारियों का इलाज किया जा सके, ताकि वह एक अच्छा जीवन जी सके.
क्या होता है ग्लूकोमा?: ग्लूकोमा को काला मोतिया के नाम से जाना जाता है. डॉक्टर के अनुसार आंखों की ऑप्टिक नर्व के क्षतिग्रस्त होने से जुड़ी कुछ समस्याएं ग्लूकोमा की श्रेणी में रखी जाती हैं. ग्लूकोमा तीन तरह के होते हैं. पहला- ओपन-एंगल ग्लूकोमा, एंगल-क्लोजर ग्लूकोमा और तीसरा नॉर्मल-टेंशन ग्लूकोमा. ग्लूकोमा का असर आमतौर पर 60 साल से अधिक उम्र को लोगों पर होता है.