रेवाड़ी: गांव कोसली के रहने वाले 99 साल के स्वतंत्रता सेनानी मंगल सिंह उन वीर सपूतों में से हैं, जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद सेना में शामिल होकर अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी.
5 जनवरी 1921 को मंगल सिंह का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था. स्कूली शिक्षा ग्रहण करने के बाद मंगल सिंह 8 अगस्त 1940 को आईएनए में भर्ती हुए थे. आजाद हिंद सेना की सेवाओं के दौरान मंगल सिंह को जनरल मोहन सिंह, बाबू रास बिहारी बोस, जरनल शाहनवाज़ खां, जरनल सहगल, ब्रिगेडियर ढिल्लों और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के संपर्क में रहना अवसर मिला.
1945 में आत्मसमर्पण के बाद उन्हें कई कैम्पों और जेलों से गुजरना पड़ा. जिसमें मानसिक उत्पीड़न और भारी यातनाएं भी झेलनी पड़ी. इसके उपरांत भी ब्रिटिश शासन का शत्रु घोषित कर भारतीय सेना की सूची से मंगल सिंह का नाम खारिज कर खाली हाथ घर भेज दिया गया था. मंगल सिंह के दो बेटे धर्मवीर तथा उमेद सिंह और दो बेटियां इंदिरा देवी तथा लीलावती हैं. इनकी पत्नी श्रीमती शांति देवी एक कर्तव्य परायण महिला हैं जो हमेशा मंगल सिंह के कामों में हाथ बंटाती रही हैं.
मंगल सिंह का कहना है कि सरकार की ओर से उन्हें पेंशन और दो लोगों के लिए रेलवे का एसी पास मिलता है, 15 अगस्त और 26 जनवरी को याद भी किया जाता है. लेकिन सरकार से उनकी मांग है कि स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों के लिए सरकार को कुछ और भी करना चाहिए. आज 99 साल की उम्र में भी स्वतंत्रता सेनानी मंगल सिंह देश सेवा के लिए तैयार हैं. मंगल सिंह के खून में वहीं जोश बरकरार है जो 1940 में था. आज भी वो देश सेवा करना चाहते हैं.
जी हां कुछ ऐसे ही मां भारती के ये वीर सपूत. आजादी के परवानें कार्यक्रम की अगली कड़ी में हम आपको फिर देश के एक और वीर सपूत से मिलवाएंगे.