पानीपत: देश के जाने माने आरटीआई एक्टिविस्ट पीपी कपूर ने एक बार फिर बड़ा खुलासा किया है. एक और आरटीआई के जरिए पीपी कपूर ने ये खुलासा किया है कि मुख्य सूचना आयुक्त यशपाल सिंघल राज्य सूचना आयोग में केसों का निपटारा करने में नम्बर वन पर हैं, जबकि अधिकांश सूचना आयुक्त केसों का फैलसा करने में फिसड्डी साबित हुए हैं. केस का देरी से निपटारा होने की वजह से एक साल आयोग में हजारों मामले लंबित हो चुके हैं.
पीपी कपूर के आरटीआई के मुताबिक राज्य सूचना आयोग में एक वर्ष में लम्बित केसों की संख्या 6080 पहुंच गई है. पिछले वर्षों में सूचना आयोग का वार्षिक बजट 25 लाख से 35 गुणा बढ़कर 8.75 करोड़ पहुंच गया है. इन 14 वर्षों में कुल 52.41 करोड़ रूपये की बजट राशि खर्च की गई, जबकि पिछले 9 वर्षों में आरटीआई के प्रचार प्रसार पर सूचना आयोग व राज्य सरकार ने फूटी कौड़ी तक खर्च नहीं की है.
सूचना अधिकार प्रहरी पीपी कपूर ने बताया कि राज्य सूचना आयोग में अपीलकर्ताओं को सुनवाई की लम्बी-लम्बी तारीखें दी जाती हैं. नतीजन प्रदेश में आरटीआई एक्ट मजाक बन कर रह गया है। इसी बारे में उन्होंने राज्य सूचना आयोग हरियाणा में आरटीआई लगाई थी. इस पर राज्य सूचना आयोग के अवर सचिव यज्ञदत्त चुघ ने 23 जनवरी को चौंकाने वाली सूचनाएं दी हैं.
जनवरी में आयोग में लम्बित केसों की कुल संख्या 2019 में 3731 से 63 प्रतिशत की बेहतहाशा वृद्धि होने से दिसम्बर 2019 तक ये संख्या 6080 हो गई. वहीं साल 2018 में पूरे प्रदेश के विभिन्न कार्यालयों में सूचना लेने के लिए कुल 68,393 आवेदन लोगों ने लगाए. सबसे ज्यादा आरटीआई आवेदन 41888 पुलिस विभाग में लगाए गए, जबकि एमडीयू रोहतक में 3995, खाद्य आपूर्ति विभाग में 2832, जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग में 2057 आरटीआई आवेदन लगाए गए.
सूचना आयुक्तों का रिपोर्ट कार्ड
वर्ष 2019 की प्रगति रिपोर्ट के अनुसार सूचना आयुक्तों द्वारा अपील केसों का निपटारा करने की संख्या में भारी अंतर है. जहां मुख्य सूचना आयुक्त यशपाल सिंघल ने गत वर्ष औसतन 154 केस प्रति महीना निपटाए. वहीं सूचना आयुक्त कमलदीप भंडारी ने मात्र 40 केस हर महीना और लै० जनरल कमलजीत सिंह ने सिर्फ 65 केस ही निपटाए. इसी तरह सूचना आयुक्त कुमारी रेखा ने 89 केस, शिवरमन गौड़ ने 65 केस, भूपेन्द्र धर्माणी ने 87 केस, सुखबीर गुलिया ने 154 केस, नरेन्द्र यादव 111 ने केस, चन्द्र प्रकाश ने 100 केस, अरूण सांगवान ने 112 केस, जय सिंह बिश्नोई ने प्रति महीना औसतन 93 केस की दर से कुल 10,533 केसों का निपटारा किया.
कपूर ने कहा कि अधिकांश सूचना आयुक्तों की तरफ से धीमी गति से केसों को निपटाने का खामियाजा अपीलकर्ताओं को अदालतों से भी ज्यादा लम्बी-लम्बी तारीखों से भुगतना पड़ रहा है. जब मुख्य सूचना आयुक्त हर महीना औसतन 154 केसों को निपटा सकते हैं तो अन्य सूचना आयुक्त क्यों नहीं ? गौरतलब है कि प्रत्येक सूचना आयुक्त को प्रति महीना लाखों रूपये के वेतन भत्ते मिलते हैं,
आरटीआई के प्रचार पर शून्य खर्च
जहां सूचना आयुक्तों व स्टाफ के वेतन भत्तों, ऑफिस खर्च के कुल बजट पर पिछले 14 वर्षों में 52.41 करोड़ रूपये खर्च किए गए. वहीं आरटीआई के प्रचार-प्रसार पर इन 14 वर्षों में इस कुल बजट का मात्र 0.03 प्रतिशत यानी कुल रुपये 1,59,778 खर्च किए गए.
वार्षिक निगरानी रिपोर्ट ना देने के डिफॉल्टर
आरटीआई एक्ट 2005 के सेक्शन 25(3) के तहत राज्य सूचना आयेाग को दी जाने वाली वार्षिक निगरानी रिपोर्ट ना देने वालों में गृह विभाग, विधानसभा, लोकायुक्त, राजनीति विभाग, कार्मिक विभाग जैसे प्रमुख 32 प्रशासकीय सचिव शामिल हैं. इसके अलावा 32 विभाग प्रमुखों व 44 बोर्डों, निगमों ने भी अपनी वार्षिक रिर्पोट सूचना आयोग को नहीं दी. इनमें हरियाणा लोकसेवा आयोग, एचएसवीपी, प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड, कृषि विपणन बोर्ड, समाज कल्याण बोर्ड जैसे संस्थान शामिल हैं.
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पीपी कपूर ने लम्बित 6080 अपील केसों पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार से विशेष अभियान चलाकर इन सभी लम्बित केसों का निपटारा करने की, मांग राज्य सूचना आयोग से की है. वहीं हरियाणा सरकार से सूचना आयुक्तों के के रिक्त पड़े तीन पद भी तत्काल भरे जाने की मांग की है.