पानीपत: जिले में हरियाणा शारीरिक शिक्षक संघर्ष समिति का धरना लगातार 18वें दिन भी जारी है. बर्खास्त पीटीआई शिक्षक बहाली की मांग कर रहे हैं, लेकिन अभी तक सरकार की तरफ से कोई संतुष्ट आश्वासन नहीं मिला है.
बर्खास्त पीटीआई अध्यापक का कहना है कि कोरोना महामारी के दौर में सभी टीचर बेघर हो गए हैं. उन्हें लगभग एक महीना हो गया है. सरकार की हठधर्मिता की वजह से 1983 परिवारों की रोजी-रोटी की समस्या पैदा हो गई है.
फिलहाल सभी सामाजिक, कर्मचारियों के संगठनों ने इन शिक्षकों को अपना समर्थन दिया है. इन्होंने सरकार से आह्वान किया है कि सरकार अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए सभी 1983 पीटीआई टीचरों को तुरंत प्रभाव से बहाल करें, नहीं तो बहुत बड़ा जन आंदोलन किया जाएगा.
क्या है शिक्षकों की मांग?
शिक्षकों ने कहा नियुक्त हुए टीचर दस साल से अधिक की सेवाएं पूरी कर चुके हैं, ऐसे में उनके सामने अब कोई और विकल्प भी नहीं है. उन्हें दोबारा नियुक्त किया जाए. साथ ही कहा कि जिन पीटीआई टीचरों की सेवा के दौरान मृत्यु हुई है, उनके परिजनों को भी नौकरी देनी चाहिए.
क्या है पीटीआई शिक्षकों का मामला ?
साल 2010 में कांग्रेस की भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार थी. उस समय हरियाणा में 1983 पीटीआई शिक्षकों की भर्ती की गई थी. भर्ती में अनियमतिता का आरोप लगाते हुए इसके खिलाफ पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. याचिका में कहा गया था कि सैकड़ों चयनित उम्मीदवारों का शैक्षिक रिकॉर्ड बेहद खराब है. आरोप में ये भी कहा गया था कि 90 फीसदी मेधावी उम्मीदवार मौखिक परीक्षा में असफल रहे. उन्हें 30 में से 10 नंबर भी नहीं आए.
इसी के साथ यह भी आरोप लगा था कि इंटरव्यू के लिए तय किए गए 25 अंक को बदलकर 30 कर दिया गया. इन सबके मद्देनजर 30 सितंबर 2013 को पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने पीटीआई भर्ती को रद्द कर दिया था.
इसके खिलाफ पीटीआई शिक्षकों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए आठ अप्रैल को अपना फैसला सुनाया. फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने हाइकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि साल 2010 में पीटीआई भर्ती में नियमों का उल्लंघन किया गया था.
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