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Navratri special 2023: पानीपत का प्राचीन मंदिर जिसे मराठों ने बनावाया, यहां लाखों की संख्या में पहुंचते हैं श्रद्धालु - कैसे करें कुष्मांडा मां की पूजा अर्चना

चैत्र नवरात्रि 2023 का आज चौथा (chaitra navratri 2023) दिन है. नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा अर्चना का विधान है. पानीपत में कुष्मांडा मां की पूजा के लिए भारी संख्या में भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ा. यहां के इतिहास के बारे में बात करें तो माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण मराठों ने कराया था. यहां देवी तुलजा की उन्होंने पूजा-अर्चना की थी.

Navratri special 2023
प्राचीन मराठा देवी मंदिर का इतिहास
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Published : Mar 25, 2023, 1:59 PM IST

मां कुष्मांडा की पूजा अर्चना

पानीपत: आज नवरात्रि का चौथा दिन है और इस दिन मां कुष्मांडा की पूजा अर्चना की जाती है. देवी मंदिर पानीपत में आज सुबह 5 बजे से ही श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने लगी है. पंडितों के अनुसार माता कुष्मांडा देवी की पूजा अर्चना नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है. मान्यता है कि माता कुष्मांडा नाव पर सवार होकर आती है. नाव कुष्मांडा देवी का वाहन है और जब-जब धरती पर माता नाव पर सवार होकर आती है भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है. चैत्र नवरात्रि 2023 के 9 दिन देवी मां की सच्चे मन से पूजा अर्चना करने पर प्रत्येक काम सिद्ध होते हैं.

पानीपत के इस प्राचीन देवी मंदिर में यहां दूर-दूर से लोग देवी के दर्शनों के लिए आते हैं. बता दें कि यह मंदिर पानीपत में मराठों द्वारा बनाया गया था. तीसरे युद्ध के दौरान मराठे अपनी देवी तुलजा भवानी की मूर्ति साथ लेकर आए थे और यहीं इस मूर्ति को स्थापित किया था. आज भी देवी तुलजा भवानी की मूर्ति यहां स्थापित है और उसी की पूजा अर्चना की जाती है. हर दिन देवी मंदिर में माता रानी के लिए एक फूलों का बंगला बनाया जाता है. इस फूलों के बंगले के लिए फूल ऑस्ट्रेलिया, थाईलैंड से मंगवाए जाते हैं. हर दिन लाखों रुपए के फूलों से मंदिर की सजावट की जाती है. नवरात्रि के 9 दिनों में अलग-अलग तरह के फूलों के बंगले में मां की मूर्ति स्थापित की जाती है.

Navratri special 2023
क्या है तुलजा मंदिर का इतिहास

क्या है तुलजा मंदिर का इतिहास: पानीपत के ऐतिहासिक व प्राचीन मराठा देवी मंदिर का इतिहास बहुत ही पुराना है. इस मंदिर का निर्माण 18वीं सदी में मराठा सरदार सदाशिव भाव द्वारा करवाया गया था. कहते हैं कि मराठों में देवी मां के प्रति अटूट श्रद्धा थी. लोगों का मानना है कि इस प्राचीन मराठा देवी मंदिर में जो भी सच्ची श्रद्धा के साथ मनोकामना मांगते हैं वह अवश्य पूर्ण होती है.

इतिहास के पन्नों में कुछ ऐसी सच्चाई भी छुपी हुई है, जिनसे लोग आज भी अनजान हैं. लोगों का मानना है कि ऐतिहासिक देवी मंदिर को मराठों द्वारा बनाया गया था और मराठों द्वारा ही इस मंदिर के बाहर बने तालाब का निर्माण करवाया गया था. इतिहासकार रमेश पुहाल की माने तो यहां मंदिर पहले से ही बना हुआ था. पर मंदिर इतना विशाल नहीं था जितना आज के युग में है. 1761 में मुगलों और मराठों की लड़ाई में जब सदाशिव भाऊ अपनी फौज के साथ दिल्ली फतह करने के बाद कुरुक्षेत्र की ओर जा रहे थे.

यह भी पढ़ें-Navratri special 2022: पानीपत के देवी मंदिर में मराठे करते थे पूजा, सदियों पुराना है इतिहास

तभी वहां से सदाशिव भाऊ की फौज जब इस बात को सुनती है कि अहमद शाह अब्दाली ने फिर से आक्रमण कर दिया है और वह सोनीपत के गन्नौर के पास आ पहुंचा है तो वहां से मराठों की फौज वापस पानीपत आ गई और एक सुरक्षित स्थान ढूंढते हुए पानीपत के उस जगह पहुंच गई जहां आज यहां देवी मंदिर है. देवी मंदिर में उस समय पुजारी बाले राम पंडित हुआ करते थे और उन्होंने वाले राम पंडित के साथ मिलकर पूरे देवी मंदिर का निरीक्षण किया और अपनी फौज को रोकने के लिए कहा. पेशवाओं की महिला अपने साथ देवी तुलजा की मूर्ति भी कराई थी, जिसकी वह सुबह शाम पूजा-आराधना किया करती थी. तालाब के साथ ही महिलाओं ने इस मूर्ति को स्थापित कर दिया और पूजा अर्चना करने लगी. 1761 के युद्ध के बाद मराठी यहां से गवालियर चले गए.

Navratri special 2023
कैसे करें कुष्मांडा मां की पूजा अर्चना

कैसे करें कुष्मांडा मां की पूजा अर्चना:

  • कुष्मांडा माता की पूजा अर्चना के दौरान पीले वस्त्र धारण करने चाहिए.
  • पीले रंग की मोली चंदन और कुमकुम मां पर चढ़ाएं.
  • साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें और सात्विक भोजन करें.
  • एक पान के पत्ते में सर लेकर ओम बृं बृहस्पते नमः मंत्र बोलते हुए मां को अर्पित करें.
  • अब ओम कूष्माण्डायै नम: मंत्र का जाप करें.
  • पूजा अर्चना करने के बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ करें.

मां कुष्मांडा की पूजा अर्चना

पानीपत: आज नवरात्रि का चौथा दिन है और इस दिन मां कुष्मांडा की पूजा अर्चना की जाती है. देवी मंदिर पानीपत में आज सुबह 5 बजे से ही श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने लगी है. पंडितों के अनुसार माता कुष्मांडा देवी की पूजा अर्चना नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है. मान्यता है कि माता कुष्मांडा नाव पर सवार होकर आती है. नाव कुष्मांडा देवी का वाहन है और जब-जब धरती पर माता नाव पर सवार होकर आती है भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है. चैत्र नवरात्रि 2023 के 9 दिन देवी मां की सच्चे मन से पूजा अर्चना करने पर प्रत्येक काम सिद्ध होते हैं.

पानीपत के इस प्राचीन देवी मंदिर में यहां दूर-दूर से लोग देवी के दर्शनों के लिए आते हैं. बता दें कि यह मंदिर पानीपत में मराठों द्वारा बनाया गया था. तीसरे युद्ध के दौरान मराठे अपनी देवी तुलजा भवानी की मूर्ति साथ लेकर आए थे और यहीं इस मूर्ति को स्थापित किया था. आज भी देवी तुलजा भवानी की मूर्ति यहां स्थापित है और उसी की पूजा अर्चना की जाती है. हर दिन देवी मंदिर में माता रानी के लिए एक फूलों का बंगला बनाया जाता है. इस फूलों के बंगले के लिए फूल ऑस्ट्रेलिया, थाईलैंड से मंगवाए जाते हैं. हर दिन लाखों रुपए के फूलों से मंदिर की सजावट की जाती है. नवरात्रि के 9 दिनों में अलग-अलग तरह के फूलों के बंगले में मां की मूर्ति स्थापित की जाती है.

Navratri special 2023
क्या है तुलजा मंदिर का इतिहास

क्या है तुलजा मंदिर का इतिहास: पानीपत के ऐतिहासिक व प्राचीन मराठा देवी मंदिर का इतिहास बहुत ही पुराना है. इस मंदिर का निर्माण 18वीं सदी में मराठा सरदार सदाशिव भाव द्वारा करवाया गया था. कहते हैं कि मराठों में देवी मां के प्रति अटूट श्रद्धा थी. लोगों का मानना है कि इस प्राचीन मराठा देवी मंदिर में जो भी सच्ची श्रद्धा के साथ मनोकामना मांगते हैं वह अवश्य पूर्ण होती है.

इतिहास के पन्नों में कुछ ऐसी सच्चाई भी छुपी हुई है, जिनसे लोग आज भी अनजान हैं. लोगों का मानना है कि ऐतिहासिक देवी मंदिर को मराठों द्वारा बनाया गया था और मराठों द्वारा ही इस मंदिर के बाहर बने तालाब का निर्माण करवाया गया था. इतिहासकार रमेश पुहाल की माने तो यहां मंदिर पहले से ही बना हुआ था. पर मंदिर इतना विशाल नहीं था जितना आज के युग में है. 1761 में मुगलों और मराठों की लड़ाई में जब सदाशिव भाऊ अपनी फौज के साथ दिल्ली फतह करने के बाद कुरुक्षेत्र की ओर जा रहे थे.

यह भी पढ़ें-Navratri special 2022: पानीपत के देवी मंदिर में मराठे करते थे पूजा, सदियों पुराना है इतिहास

तभी वहां से सदाशिव भाऊ की फौज जब इस बात को सुनती है कि अहमद शाह अब्दाली ने फिर से आक्रमण कर दिया है और वह सोनीपत के गन्नौर के पास आ पहुंचा है तो वहां से मराठों की फौज वापस पानीपत आ गई और एक सुरक्षित स्थान ढूंढते हुए पानीपत के उस जगह पहुंच गई जहां आज यहां देवी मंदिर है. देवी मंदिर में उस समय पुजारी बाले राम पंडित हुआ करते थे और उन्होंने वाले राम पंडित के साथ मिलकर पूरे देवी मंदिर का निरीक्षण किया और अपनी फौज को रोकने के लिए कहा. पेशवाओं की महिला अपने साथ देवी तुलजा की मूर्ति भी कराई थी, जिसकी वह सुबह शाम पूजा-आराधना किया करती थी. तालाब के साथ ही महिलाओं ने इस मूर्ति को स्थापित कर दिया और पूजा अर्चना करने लगी. 1761 के युद्ध के बाद मराठी यहां से गवालियर चले गए.

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कैसे करें कुष्मांडा मां की पूजा अर्चना

कैसे करें कुष्मांडा मां की पूजा अर्चना:

  • कुष्मांडा माता की पूजा अर्चना के दौरान पीले वस्त्र धारण करने चाहिए.
  • पीले रंग की मोली चंदन और कुमकुम मां पर चढ़ाएं.
  • साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें और सात्विक भोजन करें.
  • एक पान के पत्ते में सर लेकर ओम बृं बृहस्पते नमः मंत्र बोलते हुए मां को अर्पित करें.
  • अब ओम कूष्माण्डायै नम: मंत्र का जाप करें.
  • पूजा अर्चना करने के बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ करें.
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