पंचकूला: कोरोना संक्रमण के साथ प्रदेश में टेस्टिंग किट की मांग भी तेजी से बढ़ रही है. कोरोना महामारी से उबरने के लिए सरकार रोजाना ज्यादा से ज्यादा टेस्ट करने पर जोर दे रही है. बात की जाए पंचकूला की तो जिले में RT PCR किट के तहत कोरोना का टेस्ट हो रहा है. ये किट स्वास्थ्य विभाग के पास पर्याप्त मात्रा में मौजूद है.
इसके अलावा IGG एलिसा और रैपिड एंटीजन किट आनी भी शुरू हो गई है. जिससे कि कोरोना टेस्ट में तेजी आएगी. जिले में आईजीजी एलिसा की 1800 किट्स आ चुकी हैं. इस किट का इस्तेमाल असिम्टोमैटिक यानी उन लोगों पर होता है जिसमें कोरोना के लक्षण ना हो.
बढ़ रही है टेस्टिंग किट्स की मांग
जिले में रैपिड एंटीजन की 2500 किट्स आ चुकी हैं. इस किट से कोरोना का रिजल्ट 1 घंटे के अंदर आ जाता है. जरूरत के हिसाब से उनके पास पर्याप्त टेस्टिंग किट्स आ रही हैं. ईटीवी भारत की टीम ने जब क्वारंटीन किट के बारे में जानने की कोशिश की तो नागरिक अस्पताल के डिप्टी सीएमओ डॉक्टर राजीव नरवाल ने दावा किया कि उनके पास क्वारंटीन किट्स की कोई कमी नहीं हैं. राजीव नरवाल ने क्वारंटीन किट्स यानी अइसोलेशन किट के बारे में भी समझाया.
RT PCR और रैपिड एंटीजन किट अस्पताल में आए मरीजों के टेस्ट के लिए इस्तेमाल की जाती हैं. जबकि क्वारंटाइन किट्स का इस्तेमाल उन मरीजों के लिए किया जाता है जिनको घर में ही आइसोलेट किया जाता है.
क्वारंटीन किट्स में क्या होता है?
- इन किट्स में दवाई
- मास्क
- सैनिटाइजर
- दस्ताने
- विटामिन सी की गोलियां
- बुकलेट होती हैं
बुकलेट में स्वास्थ्य विभाग की गाइडलाइन्स होती हैं. जैसे मरीजों को किन-किन सावधानियों को बरतना है. मरीजों को इस गाइडलाइन का पालन करना होता है.
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RT PCR और रैपिड एंटीजन किट की अगर बात करें तो प्राइवेट अस्पताल में 2400 रुपये का टेस्ट होता है, 2400 रुपये से ज्यादा रुपये लिए जाने पर मरीज इसकी शिकायत कर सकता है. जबकि सरकारी अस्पताल में ये टेस्ट फ्री ऑफ कॉस्ट होता है. आईजीजी एलिसा किट से टेस्ट फिलहाल सरकारी अस्पतालों में ही हो रहा है जो फ्री ऑफ कॉस्ट है. प्राइवेट अस्पताल में अभी इस किट से टेस्ट नहीं हो रहा. वहीं रैपिड एंटीजन किट का इस्तेमाल इमरजेंसी के लिए किया जाता है. फिलहाल तो अधिकारियों का दावा है कि उनके पास पर्याप्त किट हैं. और वो हर तरह की स्थिति से निपटने के लिए तैयार हैं.
कैसे होता है कोरोना का टेस्ट?
डॉक्टर्स के मुताबिक, नाक और गले के पिछले हिस्से, दो ऐसी जगहें हैं जहां वायरस के मौजूद होने की संभावना ज्यादा होती हैं. स्वैब के जरिए इन्हीं कोशिकाओं को उठाया जाता है. स्वैब को ऐसे सॉल्यूशन में डाला जाता है जिनसे कोशिकाएं रिलीज होती हैं. स्वैब टेस्ट का इस्तेमाल सैंपल में मिले जेनेटिक मैटेरियल को कोरोना वायरस के जेनेटिक कोड से मिलाने में किया जाता है. डॉक्टर्स के मुताबिक वो हर तरह की स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं.
कोरोना के टेस्ट के लिए फिलहाल इन टेस्ट किटों का इस्तेमाल किया जा रहा है. हाल ही में ICMR (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) ने दक्षिण कोरिया की स्टैंडर्ड क्यू कोविड-19 एंटीजन डिटेक्शन किट से जांच की मंजूरी दी है.