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पलवल में दिवाली से बड़ा माना जाता है गोवर्धन पर्व, निभाई जा रही सालों पुरानी परंपरा

पलवल जिला ब्रज क्षेत्र से जुड़ा होने के कारण यहां गोवर्धन पर्व दीपावली से भी ज्यादा उल्लास से मनाया जाता है. आज भी यहां के लोग सालों पुरानी परंपरा को जिम्मेदारी और उत्साह के साथ निभा रहे हैं.

govardhan puja celebration palwal
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Published : Nov 15, 2020, 1:47 PM IST

पलवल: दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पर्व पर पलवल में विशेष पूजा-अर्चना का प्रचलन आज भी कायम है. पलवल जिला ब्रज क्षेत्र से जुड़ा होने के कारण यहां गोवर्धन पर्व दीपावली से भी ज्यादा उल्लास व परंपरागत ढंग से मनाया जाता है.

पलवल में दीपावली से बड़ा त्योहार है गोवर्धन पूजा

गोवर्धन पर्व दीपावली के ठीक एक दिन बाद मनाया जाता है. ग्रामीण इसे बड़ी दीपावली के नाम से पुकारते हैं. इस दिन दीपावली की अपेक्षा दीये व पटाखे भी अधिक जलाए जाते हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि मानो दीपावली इसी दिन हो. गांव के कुम्हार अपने आप मिट्टी के कुल्हों (मिट्टी का छोटा सा पात्र) व दीये बनाकर हर घर में पहुंचाते हैं, जहां उन्हें उसके बदले में अनाज दिया जाता है.

पलवल में दिवाली से बड़ा माना जाता है गोवर्धन पर्व, निभाई जा रही सालों पुरानी परंपरा

स्थानीय निवासी हरेंद्र तेवतिया व राजबाला ने बताया कि पलवल जिला ब्रज क्षेत्र से जुड़ा होने के कारण यहां गाय व उसके गोबर का अपना अलग ही महत्व है. भारतीय संस्कृति में गाय की पूजा तथा उसके गोबर को शुद्ध व पवित्र माना जाता है. प्राचीन समय से ही ग्रामीण गोवर्धन पर्व पर गोबर से आंगन को लेपना, गोबर से जमीन में गोवर्धन भगवान की आकृति बनाकर उसकी पूजा करना तथा गाय को रोटी खिलाने को धर्म मानते हैं.

गोवर्धन पूजा के दिन सुबह होते ही घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन भगवान की आकृति बनाई जाती है. इसमें हल्दी, आटा आदि अन्य पूजा सामग्री का भी इस्तेमाल किया जाता है तथा उसमें सीकें लगाकर रुई में लगाई जाती हैं. मिट्टी के कुल्हों में खील बताशे भरकर उन पर रखे जाते हैं. कुछ ग्रामीण महिलाएं पहले आंगन में गोबर का चौका लगाकर उसकी पूजा कर गोबर की बीस गोल टिकियां बनाती हैं.

ये भी पढ़ें- हरियाणा सरकार करेगी 579 फ्लैटों की ई-नीलामी, ये है नए रेट

शाम होने पर घर में पकवान बनाए जाते हैं और गोवर्धन भगवान की आकृति को भोग लगाकर पूजा अर्चना की जाती है. पूजा के समय मीठी खील, गेहूं व बाजरा आदि से भरी हुई कुल्हों को भगवान के सामने रखा जाता है और पूजा समाप्ति के बाद उन्हें मंदिर आदि में चढ़ा दिया जाता है. पूजा अर्चना के बाद गोवर्धन भगवान की आकृति पर ही पटाखे फोड़कर खुशी मनाई जाती है, और साल दर साल ये परंपरा ऐसे ही निभाई जा रही है.

गोवर्धन पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा

मान्यता ये है कि ब्रजवासियों की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति से विशाल गोवर्धन पर्वत को छोटी उंगली में उठाकर हजारों जीव-जतुंओं और इंसानी जिंदगियों को भगवान इंद्र के कोप से बचाया था. श्रीकृष्‍ण ने इन्‍द्र के घमंड को चूर-चूर कर गोवर्धन पर्वत की पूजा की थी. इस दिन लोग अपने घरों में गाय के गोबर से गोवर्धन बनाते हैं. कुछ लोग गाय के गोबर से गोवर्धन का पर्वत मनाकर उसे पूजते हैं तो कुछ गाय के गोबर से गोवर्धन भगवान को जमीन पर बनाते हैं.

पलवल: दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पर्व पर पलवल में विशेष पूजा-अर्चना का प्रचलन आज भी कायम है. पलवल जिला ब्रज क्षेत्र से जुड़ा होने के कारण यहां गोवर्धन पर्व दीपावली से भी ज्यादा उल्लास व परंपरागत ढंग से मनाया जाता है.

पलवल में दीपावली से बड़ा त्योहार है गोवर्धन पूजा

गोवर्धन पर्व दीपावली के ठीक एक दिन बाद मनाया जाता है. ग्रामीण इसे बड़ी दीपावली के नाम से पुकारते हैं. इस दिन दीपावली की अपेक्षा दीये व पटाखे भी अधिक जलाए जाते हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि मानो दीपावली इसी दिन हो. गांव के कुम्हार अपने आप मिट्टी के कुल्हों (मिट्टी का छोटा सा पात्र) व दीये बनाकर हर घर में पहुंचाते हैं, जहां उन्हें उसके बदले में अनाज दिया जाता है.

पलवल में दिवाली से बड़ा माना जाता है गोवर्धन पर्व, निभाई जा रही सालों पुरानी परंपरा

स्थानीय निवासी हरेंद्र तेवतिया व राजबाला ने बताया कि पलवल जिला ब्रज क्षेत्र से जुड़ा होने के कारण यहां गाय व उसके गोबर का अपना अलग ही महत्व है. भारतीय संस्कृति में गाय की पूजा तथा उसके गोबर को शुद्ध व पवित्र माना जाता है. प्राचीन समय से ही ग्रामीण गोवर्धन पर्व पर गोबर से आंगन को लेपना, गोबर से जमीन में गोवर्धन भगवान की आकृति बनाकर उसकी पूजा करना तथा गाय को रोटी खिलाने को धर्म मानते हैं.

गोवर्धन पूजा के दिन सुबह होते ही घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन भगवान की आकृति बनाई जाती है. इसमें हल्दी, आटा आदि अन्य पूजा सामग्री का भी इस्तेमाल किया जाता है तथा उसमें सीकें लगाकर रुई में लगाई जाती हैं. मिट्टी के कुल्हों में खील बताशे भरकर उन पर रखे जाते हैं. कुछ ग्रामीण महिलाएं पहले आंगन में गोबर का चौका लगाकर उसकी पूजा कर गोबर की बीस गोल टिकियां बनाती हैं.

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शाम होने पर घर में पकवान बनाए जाते हैं और गोवर्धन भगवान की आकृति को भोग लगाकर पूजा अर्चना की जाती है. पूजा के समय मीठी खील, गेहूं व बाजरा आदि से भरी हुई कुल्हों को भगवान के सामने रखा जाता है और पूजा समाप्ति के बाद उन्हें मंदिर आदि में चढ़ा दिया जाता है. पूजा अर्चना के बाद गोवर्धन भगवान की आकृति पर ही पटाखे फोड़कर खुशी मनाई जाती है, और साल दर साल ये परंपरा ऐसे ही निभाई जा रही है.

गोवर्धन पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा

मान्यता ये है कि ब्रजवासियों की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति से विशाल गोवर्धन पर्वत को छोटी उंगली में उठाकर हजारों जीव-जतुंओं और इंसानी जिंदगियों को भगवान इंद्र के कोप से बचाया था. श्रीकृष्‍ण ने इन्‍द्र के घमंड को चूर-चूर कर गोवर्धन पर्वत की पूजा की थी. इस दिन लोग अपने घरों में गाय के गोबर से गोवर्धन बनाते हैं. कुछ लोग गाय के गोबर से गोवर्धन का पर्वत मनाकर उसे पूजते हैं तो कुछ गाय के गोबर से गोवर्धन भगवान को जमीन पर बनाते हैं.

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