पलवल: कृषि कानूनों (Agriculture Law) को रद्द करने की मांग को लेकर दिल्ली से लगती सीमाओं पर किसानों का धरना जारी है. किसानों के धरने को 200 दिन (Farmers Agitation 200 Day) से ज्यादा का समय हो चला है. करीब 11 दौर की बातचीत के बाद भी सरकार और किसानों के बीच तीन कृषि कानून पर सहमति नहीं बन पाई है.
पलवल जिले में नेशनल हाईवे 19 पर अटोहां चौक के पास भी किसान करीब सात महीने से धरने पर बैठे हैं. किसानों का कहना है कि जबतक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जाती उनका धरना प्रदर्शन जारी रहेगा.
किसानों ने कहा कि इन 200 दिनों में काफी परेशानी हुई, कई तरह के संघर्ष किए और कई जगह प्रदर्शन भी किए. किसानों ने बताया कि पलवल के किसानों ने नेशनल हाईवे 19 पर चक्का जाम किया. रेलवे ट्रैक को जाम किया. केएमपी-केजीपी को जाम किया. ट्रैक्टर रैली निकाली. कृषि कानून की प्रतियां भी जलाई. गर्मी, सर्दी और बरसात में भी किसान सड़कों पर डटे रहें.
किसान बोले- रुकेंगे नहीं
किसानों का कहना है कि अपनी मांग मंगवाने के लिए वो ये सब सहने के लिए तैयार हैं. पलवल के किसानों का कहना है कि किसान संघर्ष समिति नेताओं ने उनके साथ किसी तरह की कोई बातचीत नहीं की. किसानों ने कहा कि आने वाले दिनों में वो एक विशाल प्रदर्शन करने जा रहे हैं. प्रदर्शन को लेकर अभी रणनीति तैयार की जा रही है. किसानों ने कहा कि उत्तर प्रदेश और पंजाब के चुनाव में किसान बीजेपी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करेंगे. किसानों ने कहा कि जहां भी चुनाव होंगे वहां किसान प्रदर्शन करेंगे.
शंभू बॉर्डर से शुरू हुआ सफर!
दरअसल, किसानों की ओर से 26 नवंबर की सुबह कृषि कानूनों (three agriculture laws 2020) के विरोध में दिल्ली कूच का ऐलान तिया गया था. यही नहीं हरियाणा पुलिस की ओर से भी कई नेशनल हाइवे कई जगह से खोद दिए गए, ताकि किसान किसी भी हाल में देश की राजधानी तक ना पहुंच पाएं. भले ही पुलिस की ओर से सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे, लेकिन किसान तो दिल्ली जाने की ठान चुके थे. जिसका नतीजा ये हुआ कि हरियाणा-पंजा के शंभू बॉर्डर पर किसानों ने बेरिकेट्स को तोड़ दिया. जिसके बाद पुलिस की ओर से किसानों पर वॉटर कैनन का भी इस्तेमाल किया गया. कई जगह पुलिस और किसानों में टकराव हुआ और किसानों पर पानी की बौछारें की गई, लेकिन सभी बाधाओं को लांघते हुए किसान आखिरकार 27 नवंबर की सुबह दिल्ली की सीमाओं पर पहुंच ही गए.
लाल किला उपद्रव
भारत के इतिहास का वो 'काला' दिन, जब लाल किले पर धार्मिक झंडा फहराया गया था. दरअसल, 26 जनवरी को किसानों ने ट्रैक्टर परेड निकालने का ऐलान किया था. इस दौरान नई दिल्ली में प्रदर्शनकारी किसान और पुलिस भिड़ गए थे. प्रदर्शनकारियों में से कई ट्रैक्टर लेकर लाल किले तक पहुंच गए और स्मारक में घुसकर धार्मिक झंडा भी फहराया.
किसान आंदोलन और टूल किट विवाद!
टूलकिट विवाद स्वीडन की जानी-मानी पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग के एक ट्वीट के बाद शुरू हुआ था. इस मामले में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने बेंगलुरु से 21 साल की क्लाइमेट एक्टिविस्ट दिशा रवि को गिरफ्तार किया था. दिशा पर किसान आंदोलन से जुड़ी टूलकिट को एडिट करने और इससे जुड़ी चीजे आगे भेजने का आरोप था.
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किसान आंदोलन का चुनावों पर असर
किसान आंदोलन के दौरान कई चुनाव हुए जिसमें सत्ताधारी बीजेपी को खासा नुकसान हुआ. किसान आंदोलन से बीजेपी को सबसे ज्यादा नुकसान उत्तर प्रदेश में हुआ. जहां पंचायत चुनाव में योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी बुरी तरह से पिछड़ गई. हरियाणा और पश्चिम बंगाल में भी बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा, जिसे किसानों ने अपनी जीत के तौर पर पेश किया.