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रोडवेज विभाग से नूंह की जनता का सवाल, क्यों किया जा रहा है दशकों से उनके साथ अन्याय?

बसों की कमी की वजह से यात्रियों प्रशासनिक अधिकारियों, कर्मचारियों को भी खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. निजी बस या डग्गामार वाहन के भरोसे परिवहन व्यवस्था टिकी हुई है. रोडवेज नूंह के बेड़े में कुल 89 बसें हैं, जिनकी संख्या दो-तीन महीने पहले 100 के करीब थी.

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Published : Nov 13, 2019, 10:54 PM IST

नूंह में जनता बे'बस'

नूंह: यात्रियों को ठीक ढंग से सुविधाएं नहीं दे पाने की वजह से रोडवेज विभाग पर लगातार गंभीर आरोप लगते रहे हैं. यात्रियों का कहना है कि विभाग मनमानी पर उतारु हो चुका है. विभाग नूंह को अनदेखा कर रहा है. नूंह डिपो से प्रदेश के लगभग दर्जन भर जिलों के लिए बसें जाती हैं, लेकिन नूंह जिले में सूबे के 21 डिपो की महज एक बस पलवल डिपो से नूंह आती है. आस-पास के जिले गुरुग्राम, रेवाड़ी, फरीदाबाद भी नूंह की तरफ बसों का संचालन नहीं करते हैं.

'पड़ोसी राज्यों से भी नहीं आती बसें'
नूंह डिपो में बसों कमी के बावजूद दूसरे जिलों के लिए बस मिलना आसान है, लेकिन सूबे के अन्य डिपो से नूंह जिले के लिए बस मिलने की उम्मीद नहीं कर सकते. गुरुग्राम, रेवाड़ी, फरीदाबाद जैसे पड़ोसी जिले भी इसमें पूरी कोताही बरतते हैं. यात्रियों, प्रशासनिक अधिकारियों, कर्मचारियों को भी परिवहन विभाग की इस बेतुकी नीति का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. निजी बस या डग्गामार वाहन के भरोसे परिवहन व्यवस्था टिकी हुई है. निजी वाहनों की वजह से यात्रियों को काफी कठिनाई तो होती है, दूसरा सड़क हादसे का खतरा भी बना रहता है.

नूंह डिपो पर है बसों की भारी कमी
बता दें कि रोडवेज नूंह के बेड़े में कुल 89 बसें हैं, जिनकी संख्या दो-तीन महीने पहले 100 के करीब थी. बसें कंडम होती गई और संख्या कम होती चली गई. 89 में से करीब 77 बसें ही रोड पर दौड़ रही हैं. दर्जन भर बस स्टाफ की कमी या तकनीकी खराबी के चलते नहीं चल पा रही हैं.

रोडवेज में बसों की कमीं की वजह से नूंह के यात्री हो रहे हैं परेशान, देखिए रिपोर्ट

'महज 50 बस आ जाए तो चल जाएगी गाड़ी'
नूंह की आबादी के हिसाब से करीब 250-300 बसें होनी चाहिए, लेकिन मौजूदा इंतजाम महज खानापूर्ति ही नजर आते हैं. नूंह जिले से जयपुर, अजमेर, चंडीगढ़, यमुनानगर, मथुरा, भिवानी, रोहतक जैसे शहरों को बस सेवा से जोड़ा हुआ है, लेकिन करीब नई 50 बस नूंह डिपो को मिलें या दूसरे डिपो की बसों को नूंह तक भेजा जाये तो परिवहन के हालात बेहतर हो सकते हैं.

ये पढ़ें- दिखने लगा नए ट्रैफिक नियमों का असर, सख्ती ने लोगों को किया जागरूक

सुविधाओं की भी है भारी कमी
वर्कशॉप की अगर बात करें तो वहां कर्मचारियों की कमी, शेड, शौचालय जैसी कमी भी खल रही है. ठेके के कर्मचारियों से वर्कशॉप चलाया जा रहा है. वॉल्वो जैसी बस सेवा तो अभी यहां के 95 फीसदी लोग देख भी नहीं पाएं हैं, सफर करना तो बड़ी बात है. नूंह डिपो को नियमित जीएम तक विभाग ने नहीं दिया हुआ. झज्जर डिपो के जीएम एनके गर्ग को नूंह का अतिरिक्त प्रभार दिया हुआ है. आज देश बुलेट ट्रेन और स्मार्ट ट्रांस्पोर्टेशन की बात करता है, लेकिन नूंह में बदलाव की बयार तक नहीं बही. कुछ बदला तो बस जिले का नाम, फिर भी रफ्तार शून्य की शून्य ही रही.

नूंह: यात्रियों को ठीक ढंग से सुविधाएं नहीं दे पाने की वजह से रोडवेज विभाग पर लगातार गंभीर आरोप लगते रहे हैं. यात्रियों का कहना है कि विभाग मनमानी पर उतारु हो चुका है. विभाग नूंह को अनदेखा कर रहा है. नूंह डिपो से प्रदेश के लगभग दर्जन भर जिलों के लिए बसें जाती हैं, लेकिन नूंह जिले में सूबे के 21 डिपो की महज एक बस पलवल डिपो से नूंह आती है. आस-पास के जिले गुरुग्राम, रेवाड़ी, फरीदाबाद भी नूंह की तरफ बसों का संचालन नहीं करते हैं.

'पड़ोसी राज्यों से भी नहीं आती बसें'
नूंह डिपो में बसों कमी के बावजूद दूसरे जिलों के लिए बस मिलना आसान है, लेकिन सूबे के अन्य डिपो से नूंह जिले के लिए बस मिलने की उम्मीद नहीं कर सकते. गुरुग्राम, रेवाड़ी, फरीदाबाद जैसे पड़ोसी जिले भी इसमें पूरी कोताही बरतते हैं. यात्रियों, प्रशासनिक अधिकारियों, कर्मचारियों को भी परिवहन विभाग की इस बेतुकी नीति का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. निजी बस या डग्गामार वाहन के भरोसे परिवहन व्यवस्था टिकी हुई है. निजी वाहनों की वजह से यात्रियों को काफी कठिनाई तो होती है, दूसरा सड़क हादसे का खतरा भी बना रहता है.

नूंह डिपो पर है बसों की भारी कमी
बता दें कि रोडवेज नूंह के बेड़े में कुल 89 बसें हैं, जिनकी संख्या दो-तीन महीने पहले 100 के करीब थी. बसें कंडम होती गई और संख्या कम होती चली गई. 89 में से करीब 77 बसें ही रोड पर दौड़ रही हैं. दर्जन भर बस स्टाफ की कमी या तकनीकी खराबी के चलते नहीं चल पा रही हैं.

रोडवेज में बसों की कमीं की वजह से नूंह के यात्री हो रहे हैं परेशान, देखिए रिपोर्ट

'महज 50 बस आ जाए तो चल जाएगी गाड़ी'
नूंह की आबादी के हिसाब से करीब 250-300 बसें होनी चाहिए, लेकिन मौजूदा इंतजाम महज खानापूर्ति ही नजर आते हैं. नूंह जिले से जयपुर, अजमेर, चंडीगढ़, यमुनानगर, मथुरा, भिवानी, रोहतक जैसे शहरों को बस सेवा से जोड़ा हुआ है, लेकिन करीब नई 50 बस नूंह डिपो को मिलें या दूसरे डिपो की बसों को नूंह तक भेजा जाये तो परिवहन के हालात बेहतर हो सकते हैं.

ये पढ़ें- दिखने लगा नए ट्रैफिक नियमों का असर, सख्ती ने लोगों को किया जागरूक

सुविधाओं की भी है भारी कमी
वर्कशॉप की अगर बात करें तो वहां कर्मचारियों की कमी, शेड, शौचालय जैसी कमी भी खल रही है. ठेके के कर्मचारियों से वर्कशॉप चलाया जा रहा है. वॉल्वो जैसी बस सेवा तो अभी यहां के 95 फीसदी लोग देख भी नहीं पाएं हैं, सफर करना तो बड़ी बात है. नूंह डिपो को नियमित जीएम तक विभाग ने नहीं दिया हुआ. झज्जर डिपो के जीएम एनके गर्ग को नूंह का अतिरिक्त प्रभार दिया हुआ है. आज देश बुलेट ट्रेन और स्मार्ट ट्रांस्पोर्टेशन की बात करता है, लेकिन नूंह में बदलाव की बयार तक नहीं बही. कुछ बदला तो बस जिले का नाम, फिर भी रफ्तार शून्य की शून्य ही रही.

Intro:संवाददाता नूह मेवात
स्टोरी ;- परिवहन विभाग कर रहा नूह के साथ दोगला बर्ताव
रोडवेज विभाग मनमानी और लालफीताशाही पर उतारु है। नूह डिपो से प्रदेश के लगभग दर्जन भर जिलों के लिए बसें जाती हैं , लेकिन नूह जिले में सूबे के 21 डिपो की महज एक बस पलवल डिपो की नूह तक आती है। नूह डिपो में बसों कमी के बावजूद दूसरे जिलों को बस मिलना आसान है , लेकिन सूबे के अन्य डिपो से नूह जिले के लिए बस मिलने की उम्मीद नहीं कर सकते। गुरुग्राम , रेवाड़ी , फरीदाबाद जैसे पडोसी जिले भी इसमें पूरी कोताही बरतते हैं। यात्रियों - प्रशासनिक अधिकारियों , कर्मचारियों को भी परिवहन विभाग की इस दोगली नीति का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। ये तब है जब जिले में रेल यात्रा देश की आजादी के समय से सपना बना हुआ है। बस या डग्गामार वाहन के भरोसे परिवहन व्यवस्था टिकी हुई है। निजी वाहनों की वजह से यात्रियों को काफी कठिनाई तो होती है , दूसरा सड़क हादसे का खतरा भी बना रहता है।
रोडवेज नूह के बेड़े में कुल 89 बसें हैं , जिनकी संख्या दो - तीन महीने पहले 100 के करीब थी। बसें कंडम होती गई और संख्या कम होती चली गई। 89 में से करीब 77 बसें ही रोड पर दौड़ रही हैं। दर्जन भर बस स्टाफ की कमी या तकनीकी खराबी के चलते नहीं चल पा रही हैं। आबादी के हिसाब से करीब 250 - 300 बसें होनी चाहियें , लेकिन मौजूदा इंतजाम महज खानापूर्ति ही नजर आते हैं। नूह जिले से जयपुर , अजमेर , चंडीगढ़ , यमुनानगर , मथुरा , भिवानी , रोहतक जैसे शहरों को बस सेवा से जोड़ा हुआ है , लेकिन करीब नई 50 बस नूह डिपो को मिलें या दूसरे डिपो की बसों को नूह तक भेजा जाये तो परिवहन के हालात बेहतर हो सकते हैं। वर्कशाप की अगर बात करें तो वहां कर्मचारियों की कमी , शैड , शौचालय जैसी कमी भी खल रही है। ठेके के कर्मचारियों से वर्कशॉप चलाया जा रहा है। वॉल्वो जैसी बस सेवा तो अभी यहां के 95 फीसदी लोग देख भी नहीं पाएं हैं , सफर करना तो बड़ी बात है। नूह डिपो को नियमित जीएम तक विभाग ने नहीं दिया हुआ। झज्जर डिपो के जीएम एनके गर्ग को नूह का अतिरिक्त प्रभार दिया हुआ है। कुल मिलाकर 2005 में वजूद में आये मेवात जिले ने जिले का नाम नूह बदलने से लेकर बहुत से उतार चढ़ाव देखे , लेकिन इस जिले के विकास की रफ़्तार कुंद ही रही। यात्रियों से बात की गई तो उन्होंने भी बसों की कमी का रोना रोया। उन्होंने कहा कि कई - कई घंटे बसों का इंतजार करना पड़ता है।
बाइट;- इक़बाल बस अड्डा सुपरवाइजर एवं यूनियन नेता
-बाइट; बाबूलाल सुप्रिडेंट नूह डिपो
बाइट;- दिनेश शर्मा यात्री
बाइट;- राकेश यात्री
संवाददाता कासिम खान नूह मेवात

Body:संवाददाता नूह मेवात
स्टोरी ;- परिवहन विभाग कर रहा नूह के साथ दोगला बर्ताव
रोडवेज विभाग मनमानी और लालफीताशाही पर उतारु है। नूह डिपो से प्रदेश के लगभग दर्जन भर जिलों के लिए बसें जाती हैं , लेकिन नूह जिले में सूबे के 21 डिपो की महज एक बस पलवल डिपो की नूह तक आती है। नूह डिपो में बसों कमी के बावजूद दूसरे जिलों को बस मिलना आसान है , लेकिन सूबे के अन्य डिपो से नूह जिले के लिए बस मिलने की उम्मीद नहीं कर सकते। गुरुग्राम , रेवाड़ी , फरीदाबाद जैसे पडोसी जिले भी इसमें पूरी कोताही बरतते हैं। यात्रियों - प्रशासनिक अधिकारियों , कर्मचारियों को भी परिवहन विभाग की इस दोगली नीति का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। ये तब है जब जिले में रेल यात्रा देश की आजादी के समय से सपना बना हुआ है। बस या डग्गामार वाहन के भरोसे परिवहन व्यवस्था टिकी हुई है। निजी वाहनों की वजह से यात्रियों को काफी कठिनाई तो होती है , दूसरा सड़क हादसे का खतरा भी बना रहता है।
रोडवेज नूह के बेड़े में कुल 89 बसें हैं , जिनकी संख्या दो - तीन महीने पहले 100 के करीब थी। बसें कंडम होती गई और संख्या कम होती चली गई। 89 में से करीब 77 बसें ही रोड पर दौड़ रही हैं। दर्जन भर बस स्टाफ की कमी या तकनीकी खराबी के चलते नहीं चल पा रही हैं। आबादी के हिसाब से करीब 250 - 300 बसें होनी चाहियें , लेकिन मौजूदा इंतजाम महज खानापूर्ति ही नजर आते हैं। नूह जिले से जयपुर , अजमेर , चंडीगढ़ , यमुनानगर , मथुरा , भिवानी , रोहतक जैसे शहरों को बस सेवा से जोड़ा हुआ है , लेकिन करीब नई 50 बस नूह डिपो को मिलें या दूसरे डिपो की बसों को नूह तक भेजा जाये तो परिवहन के हालात बेहतर हो सकते हैं। वर्कशाप की अगर बात करें तो वहां कर्मचारियों की कमी , शैड , शौचालय जैसी कमी भी खल रही है। ठेके के कर्मचारियों से वर्कशॉप चलाया जा रहा है। वॉल्वो जैसी बस सेवा तो अभी यहां के 95 फीसदी लोग देख भी नहीं पाएं हैं , सफर करना तो बड़ी बात है। नूह डिपो को नियमित जीएम तक विभाग ने नहीं दिया हुआ। झज्जर डिपो के जीएम एनके गर्ग को नूह का अतिरिक्त प्रभार दिया हुआ है। कुल मिलाकर 2005 में वजूद में आये मेवात जिले ने जिले का नाम नूह बदलने से लेकर बहुत से उतार चढ़ाव देखे , लेकिन इस जिले के विकास की रफ़्तार कुंद ही रही। यात्रियों से बात की गई तो उन्होंने भी बसों की कमी का रोना रोया। उन्होंने कहा कि कई - कई घंटे बसों का इंतजार करना पड़ता है।
बाइट;- इक़बाल बस अड्डा सुपरवाइजर एवं यूनियन नेता
-बाइट; बाबूलाल सुप्रिडेंट नूह डिपो
बाइट;- दिनेश शर्मा यात्री
बाइट;- राकेश यात्री
संवाददाता कासिम खान नूह मेवात

Conclusion:संवाददाता नूह मेवात
स्टोरी ;- परिवहन विभाग कर रहा नूह के साथ दोगला बर्ताव
रोडवेज विभाग मनमानी और लालफीताशाही पर उतारु है। नूह डिपो से प्रदेश के लगभग दर्जन भर जिलों के लिए बसें जाती हैं , लेकिन नूह जिले में सूबे के 21 डिपो की महज एक बस पलवल डिपो की नूह तक आती है। नूह डिपो में बसों कमी के बावजूद दूसरे जिलों को बस मिलना आसान है , लेकिन सूबे के अन्य डिपो से नूह जिले के लिए बस मिलने की उम्मीद नहीं कर सकते। गुरुग्राम , रेवाड़ी , फरीदाबाद जैसे पडोसी जिले भी इसमें पूरी कोताही बरतते हैं। यात्रियों - प्रशासनिक अधिकारियों , कर्मचारियों को भी परिवहन विभाग की इस दोगली नीति का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। ये तब है जब जिले में रेल यात्रा देश की आजादी के समय से सपना बना हुआ है। बस या डग्गामार वाहन के भरोसे परिवहन व्यवस्था टिकी हुई है। निजी वाहनों की वजह से यात्रियों को काफी कठिनाई तो होती है , दूसरा सड़क हादसे का खतरा भी बना रहता है।
रोडवेज नूह के बेड़े में कुल 89 बसें हैं , जिनकी संख्या दो - तीन महीने पहले 100 के करीब थी। बसें कंडम होती गई और संख्या कम होती चली गई। 89 में से करीब 77 बसें ही रोड पर दौड़ रही हैं। दर्जन भर बस स्टाफ की कमी या तकनीकी खराबी के चलते नहीं चल पा रही हैं। आबादी के हिसाब से करीब 250 - 300 बसें होनी चाहियें , लेकिन मौजूदा इंतजाम महज खानापूर्ति ही नजर आते हैं। नूह जिले से जयपुर , अजमेर , चंडीगढ़ , यमुनानगर , मथुरा , भिवानी , रोहतक जैसे शहरों को बस सेवा से जोड़ा हुआ है , लेकिन करीब नई 50 बस नूह डिपो को मिलें या दूसरे डिपो की बसों को नूह तक भेजा जाये तो परिवहन के हालात बेहतर हो सकते हैं। वर्कशाप की अगर बात करें तो वहां कर्मचारियों की कमी , शैड , शौचालय जैसी कमी भी खल रही है। ठेके के कर्मचारियों से वर्कशॉप चलाया जा रहा है। वॉल्वो जैसी बस सेवा तो अभी यहां के 95 फीसदी लोग देख भी नहीं पाएं हैं , सफर करना तो बड़ी बात है। नूह डिपो को नियमित जीएम तक विभाग ने नहीं दिया हुआ। झज्जर डिपो के जीएम एनके गर्ग को नूह का अतिरिक्त प्रभार दिया हुआ है। कुल मिलाकर 2005 में वजूद में आये मेवात जिले ने जिले का नाम नूह बदलने से लेकर बहुत से उतार चढ़ाव देखे , लेकिन इस जिले के विकास की रफ़्तार कुंद ही रही। यात्रियों से बात की गई तो उन्होंने भी बसों की कमी का रोना रोया। उन्होंने कहा कि कई - कई घंटे बसों का इंतजार करना पड़ता है।
बाइट;- इक़बाल बस अड्डा सुपरवाइजर एवं यूनियन नेता
-बाइट; बाबूलाल सुप्रिडेंट नूह डिपो
बाइट;- दिनेश शर्मा यात्री
बाइट;- राकेश यात्री
संवाददाता कासिम खान नूह मेवात

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