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हरियाणा में सात चिलम वाला ये हुक्का बना हुआ है लोगों के आकर्षण का केंद्र

नूंह जिले के गांव लुहिंगाकला में एक हुक्का आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. लोग इस हुक्के की गुड़गुड़ाहट लेने के लिए दूरदराज के क्षेत्रों से यहां पहुंचते हैं. इस रिपोर्ट में देखिए कि ये हुक्का आखिर इतना खास क्यों है.

seven chillam hookah nuh
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Published : Nov 12, 2020, 2:26 PM IST

Updated : Nov 12, 2020, 3:06 PM IST

नूंह: पंचों का प्याला हुक्का कहलाता है. हरियाणा में ही नहीं देश के कई राज्यों में इसी हुक्के की गुड़गुड़ाहट के बीच गांव के बुजुर्ग राजनीति से लेकर कई तरह के मुद्दों पर चर्चा करते हैं. कुछ युवा भी बुजुर्गों से ज्ञान लेने के लिए इसी हुक्के को एक दूसरे के लिए घुमाने और बुजुर्गों से सीख लेने के लिए उनके पास बैठते हैं.

हरियाणा में सात चिलम वाला ये हुक्का बना हुआ है लोगों के आकर्षण का केंद्र

दो दशक पहले रेवाड़ी से खरीदा था

आज हम आपको कोई आम नहीं बल्कि एक खास हुक्के के बारे में बताने जा रहे हैं. नूंह जिले के पुन्हाना उपमंडल में लुहिंगाकला गांव है. इस गांव की आबादी करीब 15 हजार है और इसी गांव के रहने वाले ताहिर हुसैन के पूर्वजों ने सात चिलम वाला एक हुक्का खरीदा था. पीतल का बना, करीब 60 किलो वजनी ये हुक्का दो दशक पहले हरियाणा के रेवाड़ी से लगभग 15 हजार रुपये में खरीदा गया था.

इस हुक्के को लोग हर मौसम के हिसाब से इस्तेमाल करते आ रहे हैं. हुक्के पर जो सात चिलम हैं, उन्हें अलग-अलग जगह से खरीदा गया है. इलाके में ये हुक्का पर्यटन का केंद्र बना हुआ है, और कुछ लोग तो इस हुक्के की गुड़गुड़ाहट लेने के लिए दूरदराज के क्षेत्रों से यहां पहुंचते हैं. ताहिर हुसैन ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि उनके पूर्वजों को हुक्के, पलंग और लकड़ी से बने अन्य सामानों को खरीदने का शौक था.

ये भी पढ़ें- निजी नौकरियों में 75% आरक्षण के फैसले को हरियाणा के उद्योगपति क्यों बता रहे चुनौतीपूर्ण?

इस हुक्के के अलावा ताहिर ने अपने पूर्वजों की और भी कई चीजें संभाल के रखी हैं. ताहिर ने बताया कि ये हुक्का इलाके के साथ-साथ दूर-दराज के क्षेत्रों में खासा लोकप्रिय है, और हर रोज लोग ये हुक्का देखने के लिए आते हैं. बिरादरी में शादी व अन्य कार्यक्रमों में इस हुक्के की खास तौर पर मांग की जाती है.

ग्रामीण भी बताते हैं कि ताहिर हुसैन के पूर्वज अपने हुक्कों और बाकी चीजों से बेहद प्यार करते थे इसलिए उन्होंने कहा था कि उनके इस दुनिया से रुखस्त होने के बाद भी हुक्के और बाकी चीजों का ख्याल रखा जाए. ताहिर इस हुक्का खास तौर पर ध्यान रखते हैं.

ताहिर हुसैन के बुजुर्ग तो इस दुनिया में अब नहीं है, लेकिन उनकी निशानियां आज भी चर्चा का विषय बनी हुई हैं. हालांकि तंबाकू का सेवन सेहत के लिए हानिकारक है, लेकिन ग्रामीण आंचल में आज भी हुक्के की गुड़गुड़ाहट पर बड़े-बड़े फैसले लिए जाते हैं, और फिलहाल ये सात चिल्मी हुक्का नूंह के साथ-साथ कई जिलों के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.

ये भी पढ़ें- पंचकूला में बन रही है एशिया की सबसे बड़ी सेब मंडी, फिर भी लोगों में क्यों है नाराजगी? देखिए ये रिपोर्ट

नूंह: पंचों का प्याला हुक्का कहलाता है. हरियाणा में ही नहीं देश के कई राज्यों में इसी हुक्के की गुड़गुड़ाहट के बीच गांव के बुजुर्ग राजनीति से लेकर कई तरह के मुद्दों पर चर्चा करते हैं. कुछ युवा भी बुजुर्गों से ज्ञान लेने के लिए इसी हुक्के को एक दूसरे के लिए घुमाने और बुजुर्गों से सीख लेने के लिए उनके पास बैठते हैं.

हरियाणा में सात चिलम वाला ये हुक्का बना हुआ है लोगों के आकर्षण का केंद्र

दो दशक पहले रेवाड़ी से खरीदा था

आज हम आपको कोई आम नहीं बल्कि एक खास हुक्के के बारे में बताने जा रहे हैं. नूंह जिले के पुन्हाना उपमंडल में लुहिंगाकला गांव है. इस गांव की आबादी करीब 15 हजार है और इसी गांव के रहने वाले ताहिर हुसैन के पूर्वजों ने सात चिलम वाला एक हुक्का खरीदा था. पीतल का बना, करीब 60 किलो वजनी ये हुक्का दो दशक पहले हरियाणा के रेवाड़ी से लगभग 15 हजार रुपये में खरीदा गया था.

इस हुक्के को लोग हर मौसम के हिसाब से इस्तेमाल करते आ रहे हैं. हुक्के पर जो सात चिलम हैं, उन्हें अलग-अलग जगह से खरीदा गया है. इलाके में ये हुक्का पर्यटन का केंद्र बना हुआ है, और कुछ लोग तो इस हुक्के की गुड़गुड़ाहट लेने के लिए दूरदराज के क्षेत्रों से यहां पहुंचते हैं. ताहिर हुसैन ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि उनके पूर्वजों को हुक्के, पलंग और लकड़ी से बने अन्य सामानों को खरीदने का शौक था.

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इस हुक्के के अलावा ताहिर ने अपने पूर्वजों की और भी कई चीजें संभाल के रखी हैं. ताहिर ने बताया कि ये हुक्का इलाके के साथ-साथ दूर-दराज के क्षेत्रों में खासा लोकप्रिय है, और हर रोज लोग ये हुक्का देखने के लिए आते हैं. बिरादरी में शादी व अन्य कार्यक्रमों में इस हुक्के की खास तौर पर मांग की जाती है.

ग्रामीण भी बताते हैं कि ताहिर हुसैन के पूर्वज अपने हुक्कों और बाकी चीजों से बेहद प्यार करते थे इसलिए उन्होंने कहा था कि उनके इस दुनिया से रुखस्त होने के बाद भी हुक्के और बाकी चीजों का ख्याल रखा जाए. ताहिर इस हुक्का खास तौर पर ध्यान रखते हैं.

ताहिर हुसैन के बुजुर्ग तो इस दुनिया में अब नहीं है, लेकिन उनकी निशानियां आज भी चर्चा का विषय बनी हुई हैं. हालांकि तंबाकू का सेवन सेहत के लिए हानिकारक है, लेकिन ग्रामीण आंचल में आज भी हुक्के की गुड़गुड़ाहट पर बड़े-बड़े फैसले लिए जाते हैं, और फिलहाल ये सात चिल्मी हुक्का नूंह के साथ-साथ कई जिलों के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.

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Last Updated : Nov 12, 2020, 3:06 PM IST
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