नूंह: कोरोना की दूसरी लहर की वजह से देश में हाहाकार है. देश का शायद कोई ऐसा जिला या कस्बा नहीं बचा जहां कोरोना ने कोहराम नहीं मचाया, किसी इंसान की सांसें नहीं रोकी. परिस्थितियां बेहद गंभीर हो चली हैं और इन सबका जिम्मा स्वास्थ्य कर्मियों पर आ टिका है. हालांकि कोरोना वैक्सीनेशन की शुरूआत हो चुकी है. देशभर में लोग वैक्सीनेशन करवा रहे हैं, लेकिन संक्रमित मरीजों की मौतों का आंकड़ा टिका नहीं है. अगर किसी के परिवार में कोई सदस्य कोरोना संक्रमित मरीज मिल जाता है, तो पूरे परिवार की जान हलक में आ जाती है और यही दुआ करते हैं कि किसी तरह से उसकी जान बचा ली जाए.
हालात ये हैं कि इस महामारी में देश को बचाने की जिम्मेदारी अस्पतालों पर है, लेकिन ये बड़ी दुख की बात है महामारी से पहले कभी देश में अस्पताओं और स्वास्थ्य केंद्रों की अधारभूत जरूरतों पर गंभीरता से काम ही नहीं किया गया. शहर-शहर अस्पताल और स्वास्थ्य केंद्र तो खोल दिए गए लेकिन वहां ना जरूरत की सुविधाएं मुहैया करवाई गईं और ना ही डॉक्टर्स की भर्ती की गई. यही वजह है कि आज अस्पताल मरीजों और उनके परिजनों से खचा-खच भर चुके हैं. अगर मरीजों को बेड मिल भी जाए तो मरीजों के साथ आए परिजनों के लिए कोई सुरक्षित जगह नहीं है.
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ईटीवी भारत हरियाणा की टीम ने नूंह के नल्हड़ मेडिकल कॉलेज का जायजा लिया. नूंह हरियाणा का एक छोटा-सा जिला है. जहां कोई बड़ी धर्मशाला या होटल नहीं है. यहां खाने-पीने के लिए अच्छे रेस्टोरेंट या ढ़ाबों की भी कमी है. शाम के वक्त ये इलाका सुनसान हो जाता है. ऐसे में नूंह में कोरोना संक्रमित मरीजों के साथ आए तीमारदारों (मरीज के साथ आए परिजन) को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
अस्पताल में तो मरीजों के लिए जगह नहीं है, ऐसे में मरीजों के परिजनों को अस्पताल के बाहर बने पार्क में अपना ठिकाना ढूंड़ना पड़ता है. दिन-रात पेड़ों के नीचे लोग रात गुजारने को मजबूर हैं. मच्छरों और कीड़े काटने का भी खतरा रहता है, लेकिन अपनों को बचाने के लिए तीमारदारों को सब झेलना पड़ता है. गर्मियों की वजह से दिन के समय पारा लगातार बढ़ रहा है. तीमारदार अस्पताल प्रांगण में पेड़ों के नीचे छांव ढूंड़ते हैं, और वहीं सारा दिन गुजारते हैं.
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हमारी टीम ने इस बारे में अस्पताल प्रशासन से भी बातचीत की. कॉलेज की निदेशक डॉक्टर संगीता सिंह ने भी कहा कि इस बारे में उपायुक्त धीरेंद्र खडगटा के साथ बातचीत हुई है. जल्दी ही कोई हल मरीजों के साथ आने वाले तीमारदारों को लेकर निकाला जाएगा.
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जब सवाल हुआ तो प्रशासन को जवाब देना मजबूरी-सी हो जाती है. कैमरे के सामने आश्वासन देना पड़ता है. हम भी जानते हैं कि महामारी के दौर में मरीजों की जान बचाना पहली प्राथमिकता है, लेकिन जनता की सेवा करना, उन्हें सुविधाएं देना सिस्टम का काम है. इस संकट की घड़ी में ये लोग लाख मुश्किलें झेल लेंगे, क्योंकि अभी इनके घर से कोई अपना जिंदगी और मौत से जूझ रहा है, लेकिन सरकार के वादे और प्रशासन के दावों की सच्चाई इन तस्वीरों में साफ नजर आती है.