पलवल: मेवात के गौरवमयी इतिहास में 15 मार्च का दिन विशेष महत्व रखता है. हथीन क्षेत्र के गांव कोट में दादा बहाड और हसन खां मेवाती का शहीदी दिवस मनाया गया. बरसों पहले इसी दिन हसन खां मेवाती और दादा बहाड़ दोनों शूरवीरों ने देश की आन, बान और शान के लिए अपनी जान न्योछावर कर दिया.
क्या है इतिहास ?
हसन खां मेवाती ने देश के लिए मुगलों से लोहा लेते हुए 15 मार्च 1527 को कन्वाह के मैदान में अपनी जान गवां दी. तो वहीं दादा बहाड़ को अकबर बादशाह ने 15 मार्च 1599 को फांसी पर चढ़ा दिया था. जिनको आज भी ग्रामीण दोनों शूरवीरों का नाम गर्व से लेते हैं और दोनों की याद में एक ही दिन शहीद दिवस मनाते हैं.
हसन खां मेवाती ने राणा सांगा के साथ मिलकर 15 मार्च 1527 को कन्वाह के मैदान में बाबर की सेनाओं का डटकर मुकाबला किया था. दोनों तरफ से हुए इस युद्ध में हसन खां मेवाती वीरगति को प्राप्त हो गए थे. इससे पहले हसन खां के पिता अलावल खां भी पानीपत की लड़ाई में बाबर के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हो गए थे. खास बात यह है कि हसन खां मेवाती ने कभी बाबर व मुगलों की स्वाधीनता स्वीकार नहीं की.
वहीं ग्राम सचिव बिलाल खान ने बताया कि अकबर बादशाह की अन्यायपूर्ण नीतियों की विरोध के लिए 25 मई 1587 को मेवात के नई गांव में एक पंचायत हुई. इस पंचायत में अकबर बादशाह के चंगुल से रजनी नामक युवती को मुक्त कराने के लिए दादा बहाड़ को जिम्मेवारी सौंपी गई थी. दादा बहाड़ अकबर के महलों में कैद रजनी नामक युवती को छुड़ाकर लाए थे. जिसके बाद दादा बहाड़ काफी दिनों तक भूमिगत रहे थे. बाद में दादा बहाड़ को अकबर बादशाह ने गिरफ्तार कर लिया था. 15 मार्च 1599 को दादा बाहड़ को अकबर ने फांसी पर लटका दिया. दादा बहाड़ की कब्र आज भी उनके पैतृक गांव कोट में हैं.
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