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नूंह में डिप्थीरिया का कहर ,11 की अब तक जा चुकी है जान और 3 की हालात नाजुक - डिप्थीरिया का कहर नूंह

रियाणा के सबसे पिछड़े नूंह जिला में डिप्थीरिया गलघोटू से अब तक 11 बच्चों की जान जा चुकी है. इतना ही नहीं 38 बच्चे डिप्थीरिया की बीमारी से जूझ रहे हैं. जिनमें से 3 की नाजुक हालत के चलते उन्हें जिले से बाहर अन्य अस्पतालों में रेफर कर दिया गया है.

11 children death due to diphtheria in Nuh
नूंह में डिप्थीरिया का कहर ,11 की अब तक जा चुकी हैं जान 3 की हालात नाजुक
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Published : Nov 25, 2020, 4:52 PM IST

नूंह: हरियाणा के सबसे पिछड़े नूंह जिला में डिप्थीरिया गलघोटू से अब तक 11 बच्चों की जान जा चुकी है. इतना ही नहीं 38 बच्चे डिप्थीरिया की बीमारी से जूझ रहे हैं. जिनमें से 3 की नाजुक हालत के चलते उन्हें जिले से बाहर अन्य अस्पतालों में रेफर कर दिया गया है. कुल मिलाकर नूंह जिले में कोरोना से कहीं अधिक गलघोटू की बीमारी लोगों को परेशान कर रही है. राजकीय शहीद हसन खां मेवाती मेडिकल कॉलेज नल्हड़ में डिप्थीरिया का इलाज करने के लिए एक स्पेशल वार्ड भी बनाया गया है जिसके अंदर अब तक कितने बच्चे दाखिल हो चुके हैं या फिर मौत का शिकार हो चुके हैं.

प्राप्त जानकारी के अनुसार नल्हड़ मेडिकल कॉलेज डिप्थीरिया के स्पेशल वार्ड में ड्यूटी कर रहे डॉ जितेंद्र कुमार सीएमओ की रिपोर्ट के मुताबिक जिले में बैंसी गांव में दो- दो मालब, अड़बर, पाटूका,गुरालता, राजपुर ,शिकरावा,पटकापुर में 1-1तथा बैंसी गांव में दो बच्चों की मौत सहित कुल 11 बच्चों की जान डिप्थीरिया की बीमारी से हो चुकी है. इसके अलावा जिले के जेवंत, पुन्हाना, हथनगांव, मेवली, मालब, चंदैनी, बडोजी, बैंसी, नौशेरा, उटोंन, शिकारपु,गुनावट, छारोडा,चीला, डिढारा, बुराका, पाटूका ,गुरालता, राजपुर, शिकरावां,लुहिंगाकलां, झरपुड़ी, पटाकपुर,इंदाना, घिड़ा, सुखपुरी, बनारसी, अगोन, कामेडा, महू, गांव में तकरीबन 38 बच्चे गलघोटू की बीमारी से पीड़ित है.

ध्यान रहे कि मरने वाले एवं पीड़ित सभी बच्चे डिप्थीरिया के संभावित मरीज बताए जा रहे हैं. स्वास्थ्य विभाग ने अभी कागजों में इन पर डिप्थीरिया बीमारी की अंतिम मुहर नहीं लगाई है. चिंता का विषय यह है कि जो संभावित केस मेवात जिले में मिले हैं. वह किसी एक इलाके में नहीं बल्कि जिले के लगभग सभी खंडों में मिले हैं. सिर्फ इंडरी खंड है जहां पर अभी तक डिप्थीरिया ने दस्तक नहीं दी है. कुल मिलाकर इतने बड़े पैमाने पर डिप्थीरिया के केसों के मिलने से स्वास्थ्य विभाग ही नहीं बल्कि इलाके के लोगों में भी हड़कंप मचा हुआ है.

आपको बता दें कि डिप्थीरिया को गलघोटू बीमारी भी कहा जाता है. अकसर यह बीमारी पशुओं में देखने को मिलती थी. इस बीमारी के बाद पशु चारा खाना छोड़ देता है क्योंकि इस बीमारी से गले में दिक्कत होती है और सांस लेना कठिन हो जाता है. लेकिन पिछले दो-तीन वर्षों से यह बीमारी इंसान में भी पाई जा रही है. खासकर बच्चे इस बीमारी का शिकार हो रहे हैं. जिले में ही पिछले दो-तीन सालों में डिप्थीरिया की बीमारी की वजह से कई दर्जन बच्चों की मौत हो चुकी है. जिन बच्चों में डिप्थीरिया की बीमारी पाई जा रही है मौत का शिकार हो रहे हैं. उनमें 1- 15 वर्ष तक के बच्चों की संख्या अधिक है.

ये भी पढ़ें:किसानों के दिल्ली कूच के बीच सामान्य है फतेहाबाद-पंजाब बॉर्डर के हालात

शिक्षा, स्वास्थ्य विभाग वैसे तो गलगोटू की बीमारी पर कंट्रोल करने का दवा पिछले कई सालों से कर रहा है. लेकिन यह बीमारी लाख कोशिशों के बावजूद साल दर साल बढ़ती जा रही है. डिप्थीरिया का टीका बहुत ज्यादा महंगा है. इसलिए कई बार बच्चों की जान बचाने के लिए एक टीका चार -चार मरीजों में लगाया जाता है. स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक उनके पास डिप्थीरिया इलाज के टीकों की कोई कमी नहीं है. लेकिन कई बार अज्ञानता ,अनपढ़ता के साथ-साथ लापरवाही में इलाके के लोग नीम हकीम के पास दवाई कराते हैं. जिससे बच्चों की तबीयत लगातार बिगड़ती जाती है जिसकी वजह से उनकी मौत तक हो जाती है.

जिला नोडल अधिकारी डॉक्टर बसंत दुबे ने माना कि यह केस डिप्थीरिया के संभावित केस है. स्वास्थ्य विभाग हर संभव कोशिश कर रहा है कि कैसे बच्चों की जान बचाई जाए इसके लिए नल्हड़ मेडिकल कॉलेज में स्पेशल वार्ड भी बनवाया हुआ है. उन्होंने जिले के लोगों से आह्वान किया है कि अगर बच्चे को गले में किसी प्रकार की कोई तकलीफ होती है. तो तुरंत सरकारी अस्पताल में जांच के लिए पहुंचे. ताकि समय पर उसका इलाज किया जा सके और बच्चे की जान बचाई जा सके.

नूंह: हरियाणा के सबसे पिछड़े नूंह जिला में डिप्थीरिया गलघोटू से अब तक 11 बच्चों की जान जा चुकी है. इतना ही नहीं 38 बच्चे डिप्थीरिया की बीमारी से जूझ रहे हैं. जिनमें से 3 की नाजुक हालत के चलते उन्हें जिले से बाहर अन्य अस्पतालों में रेफर कर दिया गया है. कुल मिलाकर नूंह जिले में कोरोना से कहीं अधिक गलघोटू की बीमारी लोगों को परेशान कर रही है. राजकीय शहीद हसन खां मेवाती मेडिकल कॉलेज नल्हड़ में डिप्थीरिया का इलाज करने के लिए एक स्पेशल वार्ड भी बनाया गया है जिसके अंदर अब तक कितने बच्चे दाखिल हो चुके हैं या फिर मौत का शिकार हो चुके हैं.

प्राप्त जानकारी के अनुसार नल्हड़ मेडिकल कॉलेज डिप्थीरिया के स्पेशल वार्ड में ड्यूटी कर रहे डॉ जितेंद्र कुमार सीएमओ की रिपोर्ट के मुताबिक जिले में बैंसी गांव में दो- दो मालब, अड़बर, पाटूका,गुरालता, राजपुर ,शिकरावा,पटकापुर में 1-1तथा बैंसी गांव में दो बच्चों की मौत सहित कुल 11 बच्चों की जान डिप्थीरिया की बीमारी से हो चुकी है. इसके अलावा जिले के जेवंत, पुन्हाना, हथनगांव, मेवली, मालब, चंदैनी, बडोजी, बैंसी, नौशेरा, उटोंन, शिकारपु,गुनावट, छारोडा,चीला, डिढारा, बुराका, पाटूका ,गुरालता, राजपुर, शिकरावां,लुहिंगाकलां, झरपुड़ी, पटाकपुर,इंदाना, घिड़ा, सुखपुरी, बनारसी, अगोन, कामेडा, महू, गांव में तकरीबन 38 बच्चे गलघोटू की बीमारी से पीड़ित है.

ध्यान रहे कि मरने वाले एवं पीड़ित सभी बच्चे डिप्थीरिया के संभावित मरीज बताए जा रहे हैं. स्वास्थ्य विभाग ने अभी कागजों में इन पर डिप्थीरिया बीमारी की अंतिम मुहर नहीं लगाई है. चिंता का विषय यह है कि जो संभावित केस मेवात जिले में मिले हैं. वह किसी एक इलाके में नहीं बल्कि जिले के लगभग सभी खंडों में मिले हैं. सिर्फ इंडरी खंड है जहां पर अभी तक डिप्थीरिया ने दस्तक नहीं दी है. कुल मिलाकर इतने बड़े पैमाने पर डिप्थीरिया के केसों के मिलने से स्वास्थ्य विभाग ही नहीं बल्कि इलाके के लोगों में भी हड़कंप मचा हुआ है.

आपको बता दें कि डिप्थीरिया को गलघोटू बीमारी भी कहा जाता है. अकसर यह बीमारी पशुओं में देखने को मिलती थी. इस बीमारी के बाद पशु चारा खाना छोड़ देता है क्योंकि इस बीमारी से गले में दिक्कत होती है और सांस लेना कठिन हो जाता है. लेकिन पिछले दो-तीन वर्षों से यह बीमारी इंसान में भी पाई जा रही है. खासकर बच्चे इस बीमारी का शिकार हो रहे हैं. जिले में ही पिछले दो-तीन सालों में डिप्थीरिया की बीमारी की वजह से कई दर्जन बच्चों की मौत हो चुकी है. जिन बच्चों में डिप्थीरिया की बीमारी पाई जा रही है मौत का शिकार हो रहे हैं. उनमें 1- 15 वर्ष तक के बच्चों की संख्या अधिक है.

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शिक्षा, स्वास्थ्य विभाग वैसे तो गलगोटू की बीमारी पर कंट्रोल करने का दवा पिछले कई सालों से कर रहा है. लेकिन यह बीमारी लाख कोशिशों के बावजूद साल दर साल बढ़ती जा रही है. डिप्थीरिया का टीका बहुत ज्यादा महंगा है. इसलिए कई बार बच्चों की जान बचाने के लिए एक टीका चार -चार मरीजों में लगाया जाता है. स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक उनके पास डिप्थीरिया इलाज के टीकों की कोई कमी नहीं है. लेकिन कई बार अज्ञानता ,अनपढ़ता के साथ-साथ लापरवाही में इलाके के लोग नीम हकीम के पास दवाई कराते हैं. जिससे बच्चों की तबीयत लगातार बिगड़ती जाती है जिसकी वजह से उनकी मौत तक हो जाती है.

जिला नोडल अधिकारी डॉक्टर बसंत दुबे ने माना कि यह केस डिप्थीरिया के संभावित केस है. स्वास्थ्य विभाग हर संभव कोशिश कर रहा है कि कैसे बच्चों की जान बचाई जाए इसके लिए नल्हड़ मेडिकल कॉलेज में स्पेशल वार्ड भी बनवाया हुआ है. उन्होंने जिले के लोगों से आह्वान किया है कि अगर बच्चे को गले में किसी प्रकार की कोई तकलीफ होती है. तो तुरंत सरकारी अस्पताल में जांच के लिए पहुंचे. ताकि समय पर उसका इलाज किया जा सके और बच्चे की जान बचाई जा सके.

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