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सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम से कंबाइन मालिकों पर दोहरी मार, कैसे होगी धान की कटाई? - धान की फसल कटाई कंबाइन हरियाणा

कंबाइन मालिकों ने ईटीवी भारत हरियाणा से बातचीत में बताया कि सरकार को इसकी जगह वेलर उपकरण को अनिवार्य करना चाहिए. वेलर उपकरण पराली के बॉक्स बना देता है.

super straw management system
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Published : Sep 23, 2020, 7:42 PM IST

कुरुक्षेत्र: सूबे में धान की फसल पककर लगभग तैयार है. किसान भी धान की कटाई की तैयारियों में जुट गए हैं. लेकिन उनके सामने बड़ी समस्या ये है कि कटाई करें तो कैसे. क्योंकि धान की कटाई दो तरीके से होती है. एक हाथों के जरिए और दूसरा कंबाइन मशीन के जरिए. लॉकडाउन की वजह से ज्यादातर मजदूर घर लौट गए. जो अभी तक वापस नहीं लौटे हैं. लिहाजा इस बार मजदूर नहीं होने की वजह से हाथ से फसल की कटाई करना ना मुमकिन सा नजर आ रहा है.

एसएसएमएस बना नई मुसीबत!

ऐसे में कंबाइन मशीन ही ऐसा साधन है जो समय की बचत के साथ फसल की कटाई कर सकती है. लेकिन सरकार ने पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए कंबाइन मालिकों के लिए एसएसएमएस (सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम) लगवाना जरूरी कर दिया है. जिससे कंबाइन से धान की कटाई भी किसानों के लिए महंगी साबित हो सकती है.

सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम से कंबाइन मालिकों पर दोहरी मार, क्लिक कर देखें रिपोर्ट

इसे एसएसएमएस या एसएमएस (स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम) भी कहते हैं. जो कंबाइन मशीन पर लगने वाला एक अतिरिक्त उपकरण है. जो कंबाइन के पीछे से निकलने वाली पराली को पहले से ज्यादा बारीक टुकड़ों में काट देगा, जिससे किसानों को पराली जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. पराली के बारिक टुकड़े मिट्टी के साथ मिलकर खेत की उर्वरक क्षमता बढ़ाने का काम करेंगे. इस डिवाइस को लगाने के लिए लगभग 1 लाख रुपये का खर्च आता है.

किसानों और कंबाइन मालिकों पर बढ़ेगा बोझ?

इंजीनियर्स ने भी माना कि सरकार के इस फैसले से कंबाइन मालिकों पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा. कंबाइन मालिकों ने ईटीवी भारत हरियाणा से बातचीत में बताया कि सरकार को इसकी जगह वेलर उपकरण को अनिवार्य करना चाहिए. वेलर उपकरण पराली के बॉक्स बना देता है. जिससे किसानों को पराली स्टोर करने में आसानी होती है. दरअसल पराली जलाने को लेकर हर बार किसान और सरकार के सामने पर्यावरण के बचाने के लिए नई समस्या पैदा होती है. उससे से बचने के लिए सरकार ने कंबाइन में एसएमएस सिस्टम लगाने का फैसला किया है. अगर किसी कंबाइन मालिक ने ये सिस्टम नहीं लगवाया तो उसकी कंबाइन को इंपाउंड कर लिया जाएगा.

सरकार ने जरूरी किया एसएसएमएस

कंबाइन मालिकों के मुताबिक सरकार के इस फैसले से उनपर दोहरी मार पड़ेगी. क्योंकि पहले जहां कंबाइन 1 दिन में 15 से 16 एकड़ फसल काट देती थी. अब वो 8 से 10 एकड़ फसल ही काट सकेगी. एसएमएस उपकरण लगने के बाद कंबाइन का इंजन भी ज्यादा डीजल की खपत करेगा. जिससे उन्हें आर्थिक नुकसान ज्यादा होगा. किसान नेता गुरनाम चढूनी ने सरकार के इस फैसले को गलत बताया.

ये भी पढ़ें- 'राइट टू सर्विस कमीशन' का मुख्य आयुक्त बनाने के लिए कमेटी का गठन

एक पहलु ये भी है कि पराली को गलने में ज्यादा वक्त लगता है. जिसकी वजह से आगे बोई जाने वाली गेहूं की फसल में कीड़ा लग सकता है. खेतों की पैदावार कम हो सकती है. धान की फसल के बाद आलू की खेती करने वाले किसानों के लिए भी ये घाटे का सौदा साबित हो सकता है. दूसरा पहलु ये है कि पहले कंबाइन मालिक 1 एकड़ फसल काटने के लिए पहले 15 सौ रुपये लेते थे. लेकिन एसएमएस सिस्टम लगाने के बाद अब उन्हें इस राशि को बढ़ाना पड़ेगा. अब सवाल ये है कि किया इस किसान इस बढ़ी हुई राशि को स्वीकार कर पाएगा?

कुरुक्षेत्र: सूबे में धान की फसल पककर लगभग तैयार है. किसान भी धान की कटाई की तैयारियों में जुट गए हैं. लेकिन उनके सामने बड़ी समस्या ये है कि कटाई करें तो कैसे. क्योंकि धान की कटाई दो तरीके से होती है. एक हाथों के जरिए और दूसरा कंबाइन मशीन के जरिए. लॉकडाउन की वजह से ज्यादातर मजदूर घर लौट गए. जो अभी तक वापस नहीं लौटे हैं. लिहाजा इस बार मजदूर नहीं होने की वजह से हाथ से फसल की कटाई करना ना मुमकिन सा नजर आ रहा है.

एसएसएमएस बना नई मुसीबत!

ऐसे में कंबाइन मशीन ही ऐसा साधन है जो समय की बचत के साथ फसल की कटाई कर सकती है. लेकिन सरकार ने पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए कंबाइन मालिकों के लिए एसएसएमएस (सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम) लगवाना जरूरी कर दिया है. जिससे कंबाइन से धान की कटाई भी किसानों के लिए महंगी साबित हो सकती है.

सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम से कंबाइन मालिकों पर दोहरी मार, क्लिक कर देखें रिपोर्ट

इसे एसएसएमएस या एसएमएस (स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम) भी कहते हैं. जो कंबाइन मशीन पर लगने वाला एक अतिरिक्त उपकरण है. जो कंबाइन के पीछे से निकलने वाली पराली को पहले से ज्यादा बारीक टुकड़ों में काट देगा, जिससे किसानों को पराली जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. पराली के बारिक टुकड़े मिट्टी के साथ मिलकर खेत की उर्वरक क्षमता बढ़ाने का काम करेंगे. इस डिवाइस को लगाने के लिए लगभग 1 लाख रुपये का खर्च आता है.

किसानों और कंबाइन मालिकों पर बढ़ेगा बोझ?

इंजीनियर्स ने भी माना कि सरकार के इस फैसले से कंबाइन मालिकों पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा. कंबाइन मालिकों ने ईटीवी भारत हरियाणा से बातचीत में बताया कि सरकार को इसकी जगह वेलर उपकरण को अनिवार्य करना चाहिए. वेलर उपकरण पराली के बॉक्स बना देता है. जिससे किसानों को पराली स्टोर करने में आसानी होती है. दरअसल पराली जलाने को लेकर हर बार किसान और सरकार के सामने पर्यावरण के बचाने के लिए नई समस्या पैदा होती है. उससे से बचने के लिए सरकार ने कंबाइन में एसएमएस सिस्टम लगाने का फैसला किया है. अगर किसी कंबाइन मालिक ने ये सिस्टम नहीं लगवाया तो उसकी कंबाइन को इंपाउंड कर लिया जाएगा.

सरकार ने जरूरी किया एसएसएमएस

कंबाइन मालिकों के मुताबिक सरकार के इस फैसले से उनपर दोहरी मार पड़ेगी. क्योंकि पहले जहां कंबाइन 1 दिन में 15 से 16 एकड़ फसल काट देती थी. अब वो 8 से 10 एकड़ फसल ही काट सकेगी. एसएमएस उपकरण लगने के बाद कंबाइन का इंजन भी ज्यादा डीजल की खपत करेगा. जिससे उन्हें आर्थिक नुकसान ज्यादा होगा. किसान नेता गुरनाम चढूनी ने सरकार के इस फैसले को गलत बताया.

ये भी पढ़ें- 'राइट टू सर्विस कमीशन' का मुख्य आयुक्त बनाने के लिए कमेटी का गठन

एक पहलु ये भी है कि पराली को गलने में ज्यादा वक्त लगता है. जिसकी वजह से आगे बोई जाने वाली गेहूं की फसल में कीड़ा लग सकता है. खेतों की पैदावार कम हो सकती है. धान की फसल के बाद आलू की खेती करने वाले किसानों के लिए भी ये घाटे का सौदा साबित हो सकता है. दूसरा पहलु ये है कि पहले कंबाइन मालिक 1 एकड़ फसल काटने के लिए पहले 15 सौ रुपये लेते थे. लेकिन एसएमएस सिस्टम लगाने के बाद अब उन्हें इस राशि को बढ़ाना पड़ेगा. अब सवाल ये है कि किया इस किसान इस बढ़ी हुई राशि को स्वीकार कर पाएगा?

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