कुरुक्षेत्र: भारत की पहली आयुर्वेदिक यूनिवर्सिटी श्री कृष्णा आयुष विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र (Sri Krishna Ayush University Kurukshetra) आयुर्वेदिक चिकित्सा में नए-नए शोध कर रहा है. ये शोध आयुर्वेदिक चिकित्सा जगत में बेहद सराहे जा रहे हैं. राजकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय के शरीर रचना विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉक्टर सचिन शर्मा और उनकी टीम ने मानव अंगों का प्लास्टिनेशन करने की दिशा में बेहतरीन काम किया है. मानव अंगों का ये प्लास्टिनेशन पढ़ाई कर रहे विद्यार्थियों के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकता है.
मानव अंगों का प्लास्टिनेशन क्या है- प्लास्टिनेशन की प्रक्रिया (plastination of human organs) को समझाते हुए श्री कृष्णा आयुष विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉक्टर सचिन शर्मा बताते हैं कि जिस तरीके से एक मूर्ति बनाने वाला सांचे के अंदर मटेरियल डालकर मूर्ति बनाता है. उसी तरह से अंगों की जो खोखली संरचनाएं हैं, उनके अंदर प्लास्टिक डाला जाता है. इससे हम इन अंगों की अंदर तक की संरचनाओं को समझ सकते हैं. इस प्लास्टिनेशन से शरीर के छोटे से छोटे अंगों को भी सुरक्षित किया जा सकता है. साथ ही इन्हें समझने में भी आसानी होती है.
मानव अंगों का प्लास्टिनेशन ऐसी टेक्निक है जिसके जरिए उन्हें लंबे समय तक संरक्षित रखा जा सकता है. तीन साल से ज्यादा समय से यहां रिसर्च वर्क चल रहा है. प्लास्टिनेशन की जरुरत इसलिए है क्योंकि पढ़ाई करने वालाे छात्रों के शोध के लिए बॉडी की कमी रहती है. दूसरा केमिकल के जरिए लंबे समय तक उसे रखना मुश्किल होता है. इसी को ध्यान में रखते हुए हमने प्लास्टिनेशन की दिशा में काम किया. सचिन शर्मा, सहायक प्रोफेसर, श्री कृष्णा आयुष विश्वविद्यालय.
प्लास्टिनेशन की जरूरत क्यों है- डॉक्टर सचिन शर्मा ने बताया कि यहां कॉलेज में मानव देह की कमी के कारण आयुर्वेद में पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों को पर्याप्त मात्रा में बॉडी नहीं मिल रही हैं. एक बार डिसेक्शन होने के बाद शरीर के ऑर्गन डैमेज हो जाते हैं. बॉडी को केमिकल में रखने से बदबू आती है. इसलिए इन अंगों का प्लास्टिनेशन करके इन्हें म्यूजियम में लंबे समय तक रखा जा सकता है. सचिन शर्मा के मुताबिक प्लास्टिनेशन तकनीक मेडिकल कॉलेजों के विद्यार्थियों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी. खासकर उन संस्थानो के लिए जहां बॉडी को रखने की व्यवस्था नहीं है.
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इस तकनीक में ऑर्गन को अलग से रख रखाव की आवश्यकता नहीं है. यह लंबे समय तक विद्यार्थी की पढ़ाई में सहायक होगी, जो संग्रहालय में मॉडल के रूप में भी रखा जा सकता है. प्लास्टिनेशन के जरिए जरिए बीएएमएस के भावी डॉक्टर उन अंगों को बेहतर तरीके से समझ सकेंगे. इन ऑर्गन्स को म्यूजियम और लैब में लगभग 40 से 50 सालों तक सुरक्षित रखा जा सकता है. विश्वविद्यालय की टीम द्वारा बकरी के फेफड़े, इंसान के शरीर की सबसे छोटी हड्डी जो कान में होती हैं उन्हें भी प्लास्टिनेट करने में सफलता हासिल की है.
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खास बात ये है कि श्री कृष्णा आयुष विश्वविद्यालय में होने वाला ये प्लास्टिनेशन बेहद कम खर्चे में हो जाता है. देश और विदेशों में बड़े-बड़े सेंटर्स पर अत्याधुनिक मशीनों द्वारा प्लास्टिनेशन किया जाता है, जो काफी खर्चीला होता है. जबकि यहां कम खर्च में प्लास्टिनेशन किया गया है. जिसमें एक छोटे अंग का प्लास्टिनेशन खर्च मात्र सौ रुपये आया है. डॉक्टर सचिन शर्मा के मुताबिक दक्षिण भारत में ये प्लास्टिनेशन हो रहा है लेकिन पूरे उत्तर भारत में आयुर्वेदिक विभाग की तरफ से पहली बार ऐसा प्लास्टिनेशन किया गया है.
आयुष विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रही शोध छात्रा मोनिका शर्मा ने कहा कि हमारी टीम ने काफी मेहनत के बाद इन तरीकों को इजाद किया है. जो वह बहुत कम खर्चीला है. हमारे जैसे हजारों लाखों मेडिकल स्टूडेंट के लिए यह भविष्य में काफी मददगार सिद्ध होगा. जिसे हम बॉडी की बारीकियों को समझ पाएंगे. उनका अच्छे से इलाज कर पाएंगे.