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कुरुक्षेत्र: शिल्प मेले में गोरखपुर के शिल्पकार द्वारा बनाई गई मिट्टी की आकृतियों ने भाया लोगों का मन - कुरुक्षेत्र शिल्प मेला

जब मिट्टी पानी और आग का संगम होता है तब एक कलाकृति जन्म लेती है जो सदियों तक याद रखी जाती है. इसी तरह की कलाकृति कुरुक्षेत्र के शिल्प मेले में देखने को मिल रही है जो लोगों को खूब भा रही है.

Kurukshetra Shilp Mela
शिल्प मेले में गोरखपुर के शिल्पकार द्वारा बनाई गई मिट्टी की आकृतियों ने भाया लोगों का मन
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Published : Mar 21, 2021, 7:56 AM IST

कुरुक्षेत्र: शहर के गांधी शिल्प बाजार में देशभर से लगभग 100 कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए पहुंचे हैं. जिनमें गोरखपुर से आए एक शिल्पकार जिनका काम मिट्टी से विभिन्न प्रकार की आकृतियां बनाना है उन्होंने अपना स्टॉल लगाया हुआ है.

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जब इस कलाकार से बात की गई तो उसने बताया कि इस कला को टेराकोटा कहा जाता है और ये कई सौ साल पुरानी कला है जिसमें मिट्टी के द्वारा विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का बनाया जाता है जो सजावट के साथ-साथ पूजा पाठ में भी काम आती है.

शिल्प मेले में गोरखपुर के शिल्पकार द्वारा बनाई गई मिट्टी की आकृतियों ने भाया लोगों का मन

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शिल्पकार विक्रम ने बताया कि ये उनका पुश्तैनी काम है और ये लगातार लम्बे समय से करते आ रहे हैं और साथ ही उन्होंने बताया कि उनके सामान की खासियत ये है कि ये प्राचीन समय से जुड़े हुए बर्तन और उन चीजों को फिर से पुनर्जीवित कर रहा है. उन्होंने बताया कि कोरोना महामारी की वजह से उनके काम पर काफी असर पड़ा था लेकिन अब लंबे समय बाद ये शिल्प मेले आयोजित हुआ तो वो फिर से अपनी कला को लोगों के सामने दिखा सकेंगे.

ये भी पढ़ें: हरियाणा के विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति प्रक्रिया कितनी पारदर्शी?

विक्रम ने बताया कि चायनीज चीजों के मुकाबले इस सामान की डिमांड ज्यादा है क्योंकि चायनीज सामान प्लास्टिक से बनती है जिसको फेंकने और तोड़ने से पर्यावरण का संतुलन बिगड़ता है लेकिन मिट्टी की बनी चीजों से पर्यावरण को किसी भी तरह का नुकसान नहीं होता है और सरकार की तरफ से भी उन्हें पूरी मदद दी जाती है.

कुरुक्षेत्र: शहर के गांधी शिल्प बाजार में देशभर से लगभग 100 कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए पहुंचे हैं. जिनमें गोरखपुर से आए एक शिल्पकार जिनका काम मिट्टी से विभिन्न प्रकार की आकृतियां बनाना है उन्होंने अपना स्टॉल लगाया हुआ है.

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जब इस कलाकार से बात की गई तो उसने बताया कि इस कला को टेराकोटा कहा जाता है और ये कई सौ साल पुरानी कला है जिसमें मिट्टी के द्वारा विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का बनाया जाता है जो सजावट के साथ-साथ पूजा पाठ में भी काम आती है.

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शिल्पकार विक्रम ने बताया कि ये उनका पुश्तैनी काम है और ये लगातार लम्बे समय से करते आ रहे हैं और साथ ही उन्होंने बताया कि उनके सामान की खासियत ये है कि ये प्राचीन समय से जुड़े हुए बर्तन और उन चीजों को फिर से पुनर्जीवित कर रहा है. उन्होंने बताया कि कोरोना महामारी की वजह से उनके काम पर काफी असर पड़ा था लेकिन अब लंबे समय बाद ये शिल्प मेले आयोजित हुआ तो वो फिर से अपनी कला को लोगों के सामने दिखा सकेंगे.

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विक्रम ने बताया कि चायनीज चीजों के मुकाबले इस सामान की डिमांड ज्यादा है क्योंकि चायनीज सामान प्लास्टिक से बनती है जिसको फेंकने और तोड़ने से पर्यावरण का संतुलन बिगड़ता है लेकिन मिट्टी की बनी चीजों से पर्यावरण को किसी भी तरह का नुकसान नहीं होता है और सरकार की तरफ से भी उन्हें पूरी मदद दी जाती है.

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