कुरुक्षेत्र: बचपन में भूत, प्रेत, पिशाच और जिन्नों की कहानियां तो खूब सुनी होंगी. उन कहानियों के किरदारों की कल्पना कर, डर भी लगा होगा. लेकिन हरियाणा में एक ऐसी जगह है. जहां के लोग 22 सौ साल से एक जिन्न के खौफ के साये में रहते हैं. जी हां, 'किस्सा हरियाणे का' के तीसरे एपिसोड में हम आपको लिए चलते हैं विलुप्त हो चुकी सरस्वती नदी के किनारे बसे पिहोवा कस्बे में.
'फिल्म नहीं, सच है ये'
कहा जाता है कि यहां एक समाधि है. और इस समाधि में दफ्न है एक जिन्न. अब हम आपको जो कहानी बताने जा रहे हैं वो किसी फिल्म का हिस्सा तो नहीं है, मगर कहानी सुनते ही आपके जहन में फिल्म हातिम ताई का ख्याल जरूर आएगा. फिल्म तो काल्पनिक थी. स्थानीय लोगों का मानना है कि यहां जो भी है. वो बिल्कुल सच है जिसके तथ्य भी हैं और अटूट मान्यता भी.
जिन्न मांगता था नई नवेली दुल्हन!
लोगों का मानना है कि 22 सौ साल पहले जब भी पिहोवा में किसी की शादी होती थी तो शादी की पहली रात को आई नई नवेली दुल्हन को इस जिन्न के पास गुफा में भेजना पड़ता था. दुल्हन के साथ 50 लोगों के खाने के साथ शराब भी भेजनी पड़ती थी. अगर कोई शख्स इस बात को नहीं मानता. तो ये जिन्न उसके पूरे परिवार को मौत के घाट उतार देता था. जिन्न कई सौ सालों तक लोगों को यूं ही परेशान करता था. स्थानीय लोग उस जिन्न से दुखी हो चुके थे लेकिन उनके पास कोई चारा भी नहीं था.
'जब बाबा ने ली जिन्न के साथ समाधि'
लोगों को किसी तरह पता चला कि इस जिन्न के प्रकोप का तोड़ महान बाबा पंचमनाथ के पास है. पूरे इलाके के लोग इकट्ठा होकर बाबा पंचमनाथ से मिले. बाबा ने भी उन्हें आश्वस्त किया कि, जल्द ही उन्हें इस समस्या से निजात मिल जाएगी. उन्होंने लोगों को गुफा के पास ही एक बड़ा गड्ढा खोदने के लिए भी कहा. कहा जाता है कि, अगली बार जब पिहोवा में नई नवेली दुल्हन आई तो. बाबा पंचम नाथ खुद लाल लिबास में दुल्हन बनकर जिन्न के पास चले गए, जिन्न बाबा को दुल्हन समझ कर जब उनकी तरफ आया. तो बाबा उसे पकड़कर उस गड्ढे में ले गए. वहां दोनों में काफी देर झगड़ा होता रहा. बाबा जिन्न की छाती पर बैठ गए और बाहर खड़े लोगों को मिट्टी डालने के लिए आदेश दिया. बताया जाता है बाबा ने जिन्न के साथ इसी जगह जिंदा समाधि ले ली.
'शिलालेख पर प्रमाण भी है'
इस मंदिर में इसका प्रमाण भी है. 1791 में ब्रह्मलिपि में लिखी प्राचीन शिलालेख आज भी यहां मौजूद है. माना जाता है जब बाबा ने समाधि ली. तभी ये शिलालेख भी लगा दिया गया था. आज भी वही पुरानी प्रथा उसी तरह से चली आ रही है. जब भी पिहोवा में कोई नई नवेली दुल्हन आती है.. तो दूल्हा-दुल्हन बाबा की समाधि पर माथा टेकते हैं. वहां महंत उनकी झोली में आटे की रोटी डालकर दूल्हा-दुल्हन को आशीर्वाद देते हैं. 'किस्सा हरियाणे का' के इस एपिसोड में फिलहाल इतना ही.. अगले एपिसोड में फिर पेश होंगे एक नई कहानी के साथ.