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कुरुक्षेत्र में ब्रह्मसरोवर के तट पर मनाई गई देवउठनी एकादशी, श्रद्धालुओं ने किया तुलसी पूजन - कुरुक्षेत्र में मनाई गई देवउठनी एकादशी

कुरुक्षेत्र में स्थित ब्रह्मसरोवर के तट पर आज देवउठनी एकादशी मनाई गई. इस दौरान श्रद्धालुओं ने तुलसी पूजन किया और शालिग्राम और तुलसी के विवाह की सभी रस्में भी अदा की.

कुरुक्षेत्र में ब्रह्मसरोवर के तट पर मनाई गई देवउठनी एकादशी
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Published : Nov 8, 2019, 11:12 PM IST

कुरुक्षेत्र: जिले में स्थित ब्रह्मसरोवर के तट पर आज देवउठनी एकादशी मनाई गई. ब्रह्मसरोवर तट पर पहुंचे श्रद्धालुओं ने तुलसी पूजन कर शालिग्राम और तुलसी के विवाह की सभी रस्में अदा की. मान्यता है कि इस एकादशी के व्रत को जो भी श्रद्धालु पूरा करते हैं, उनकी हर मनोकामना पूरी होती है.

तुलसी विवाह से मिलता है कन्यादान जैसा पुण्य
देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी और शालिग्राम का विवाह किया जाता है और विवाह से जुड़ी सभी रस्मों को उसी धूमधाम से मनाया जाता है. तुलसी विवाह की रस्में एक आम विवाह की तरह होती है, जिसमें विदाई भी जरूरी होता है. मान्यता है कि तुलसी विवाह से कन्यादान जैसा पुण्य फल प्राप्त होता है.

कुरुक्षेत्र में ब्रह्मसरोवर के तट पर मनाई गई देवउठनी एकादशी

पौराणिक मान्यताओं पर आधारित है देवउठनी एकादशी
पौराणिक कथा के अनुसार वृंदा ने विष्णु जी को ये शाप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है. इसलिए तुम पत्थर के बन जाओगे. वृंदा के शाप के बाद विष्णु जी ने कहा कि 'हे वृंदा! मैं तुम्हारे सतीत्व का आदर करता हूं लेकिन तुम तुलसी बनकर सदा मेरे साथ रहोगी.

भगवान विष्णु ने कहा कि जो मनुष्य कार्तिक एकादशी के दिन तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, उसकी हर मनोकामना पूरी होगी. उसके बाद विष्णु जी पत्थर के बन गए. यही पत्थर शालिग्राम कहलाया. शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का ही प्रतीकात्मक विवाह माना जाता है.

इसे भी पढ़ें: कुरुक्षेत्र में गुरुनानक देव जी ने अमावस्या के दिन जलाई थी आग, जानें क्या है पूरी कहानी

कुरुक्षेत्र: जिले में स्थित ब्रह्मसरोवर के तट पर आज देवउठनी एकादशी मनाई गई. ब्रह्मसरोवर तट पर पहुंचे श्रद्धालुओं ने तुलसी पूजन कर शालिग्राम और तुलसी के विवाह की सभी रस्में अदा की. मान्यता है कि इस एकादशी के व्रत को जो भी श्रद्धालु पूरा करते हैं, उनकी हर मनोकामना पूरी होती है.

तुलसी विवाह से मिलता है कन्यादान जैसा पुण्य
देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी और शालिग्राम का विवाह किया जाता है और विवाह से जुड़ी सभी रस्मों को उसी धूमधाम से मनाया जाता है. तुलसी विवाह की रस्में एक आम विवाह की तरह होती है, जिसमें विदाई भी जरूरी होता है. मान्यता है कि तुलसी विवाह से कन्यादान जैसा पुण्य फल प्राप्त होता है.

कुरुक्षेत्र में ब्रह्मसरोवर के तट पर मनाई गई देवउठनी एकादशी

पौराणिक मान्यताओं पर आधारित है देवउठनी एकादशी
पौराणिक कथा के अनुसार वृंदा ने विष्णु जी को ये शाप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है. इसलिए तुम पत्थर के बन जाओगे. वृंदा के शाप के बाद विष्णु जी ने कहा कि 'हे वृंदा! मैं तुम्हारे सतीत्व का आदर करता हूं लेकिन तुम तुलसी बनकर सदा मेरे साथ रहोगी.

भगवान विष्णु ने कहा कि जो मनुष्य कार्तिक एकादशी के दिन तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, उसकी हर मनोकामना पूरी होगी. उसके बाद विष्णु जी पत्थर के बन गए. यही पत्थर शालिग्राम कहलाया. शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का ही प्रतीकात्मक विवाह माना जाता है.

इसे भी पढ़ें: कुरुक्षेत्र में गुरुनानक देव जी ने अमावस्या के दिन जलाई थी आग, जानें क्या है पूरी कहानी

Intro:कुरुक्षेत्र स्थित ब्रह्मसरोवर के तट पर आज देवउठनी एकादशी मनाई गई ब्रह्मसरोवर पर पहुंचे श्रद्धलुओं ने आज तुलसी पूजन किया और शालिग्राम और तुलसी के विवाह की सभी रस्में भी अदा की इसी के साथ इस दिन तुलसी विवाह कराने की भी परंपरा है। तुलसी विवाह की रस्में एक आम विवाह की तरह ही होती है जिसमें विदाई भी जरूरी है। माना जाता है कि तुलसी विवाह से कन्या दान जैसा पुण्य फल प्राप्त होता है। यहां जानिए आखिर क्यों और कैसे कराया जाता है
एक पौराणिक कथा अनुसार वृंदा ने विष्णु जी को यह शाप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। अत: तुम पत्थर के बनोगे। यही पत्थर शालिग्राम कहलाया। विष्णु ने कहा, ‘हे वृंदा! मैं तुम्हारे सतीत्व का आदर करता हूं लेकिन तुम तुलसी बनकर सदा मेरे साथ रहोगी। जो मनुष्य कार्तिक एकादशी के दिन तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, उसकी हर मनोकामना पूरी होगी।’ शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का ही प्रतीकात्मक विवाह माना जाता है।

बाईट:-पंडित राकेश गोस्वामी

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