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इस प्राचीन मंदिर में हर रोज सूरज की किरणें भगवान लक्ष्मी के चरण स्पर्श करने आती हैं! - लक्ष्मी नारायण मंदिर कुरुक्षेत्र

कुरुक्षेत्र में लक्ष्मी नारायण मंदिर की बेहद मान्यता है. ये मंदिर बेहद सुंदर है और प्राचीन भी. इस मंदिर को लेकर कई मान्यताएं हैं. इसका इतिहास भी काफी रोचक है. इस अद्भुत मंदिर के बारे में विस्तार से पढ़ें.

devine lakshmi narayan temple of kurukshetra
भगवान लक्ष्मी नारायण मंदिर
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Published : Jan 7, 2020, 9:06 PM IST

कुरुक्षेत्र: धर्मनगरी कुरुक्षेत्र मंदिरों और शिवालयों की धरती है. जहां नजर उठाएं वहीं कोई ना कोई प्राचीन धार्मिक स्थल नजर आ जाएगा. आज हम बात कर रहे हैं प्राचीन लक्ष्मी नारायण मंदिर के बारे में जो ऐतिहासिक भी है. कलात्मक दृष्टि से अद्भुद भी इस मंदिर की अद्भुत कलाकृति इस प्रकार की गई है कि जब सूर्य उदय होता है तो पहली किरण लक्ष्मीनारायण जी के चरणों पर पड़ती है.

कहा जाता है कि इस मंदिर को राजा हर्षवर्धन ने बनवाया था. लक्ष्मी नारायण मंदिर के समीप स्थित प्राचीन शिवालय मंदिर प्राचीन इतिहास संजोए हुए हैं. कहा जाता है कि शिवालय में स्थापित शिव लिंग नर्मदा नदी से लाया गया था. इस पर प्राकृतिक रूप से सर्प की आकृति स्पष्ट है. इन्हें भगवान नर्मदेश्वर के नाम से भी जाना जाता है.

इस रिपोर्ट में देखिए भगवान लक्ष्मी नारायण मंदिर की विशेषता.

शिवालय का है प्राचीन इतिहास
लक्ष्मी नारायण मंदिर के समीप स्थित प्राचीन शिवालय मंदिर प्राचीन इतिहास संजोए हुए हैं. कहा जाता है कि शिवालय में स्थापित शिव लिंग नर्मदा नदी से आया था. इस पर प्राकृतिक रूप से सर्प की आकृति स्पष्ट है. यह भगवान नर्मदेश्वर के नाम से भी जाना जाता है.

पांडवों ने बनाया था तालाब
श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर के समीप स्थित तोरावाला तालाब महाभारत के काल का है. कहा जाता है कि इस तालाब का निर्माण पांडवों ने करवाया था. एक किवदंती के अनुसार महाभारत के युद्ध के पश्चात पांडव इसी स्थान पर आकर रुके थे तथा उन्होंने इस स्थान पर तालाब खुदवा कर इसमें स्नान किया था इसके पश्चात पांडव कपाल मोचन गए थे. जहां के सरोवरों में उन्होंने अपने अस्त्र-शस्त्र धोए थे.

इसे भी पढ़ें: दानवीर कर्ण की नगरी करनाल, रोज सवा मन सोना दान करता था यहां का राजा

आज भी यहां सैकड़ों श्रद्धालु रोजाना दर्शन के लिए आते हैं, अमवस्या के दिन ये संख्या लाखों तक पहुंच जाती है. मान्यता है कि सूर्य ग्रहण के दिन यहां सभी देवी देवताओं का वास होता है.

कुरुक्षेत्र: धर्मनगरी कुरुक्षेत्र मंदिरों और शिवालयों की धरती है. जहां नजर उठाएं वहीं कोई ना कोई प्राचीन धार्मिक स्थल नजर आ जाएगा. आज हम बात कर रहे हैं प्राचीन लक्ष्मी नारायण मंदिर के बारे में जो ऐतिहासिक भी है. कलात्मक दृष्टि से अद्भुद भी इस मंदिर की अद्भुत कलाकृति इस प्रकार की गई है कि जब सूर्य उदय होता है तो पहली किरण लक्ष्मीनारायण जी के चरणों पर पड़ती है.

कहा जाता है कि इस मंदिर को राजा हर्षवर्धन ने बनवाया था. लक्ष्मी नारायण मंदिर के समीप स्थित प्राचीन शिवालय मंदिर प्राचीन इतिहास संजोए हुए हैं. कहा जाता है कि शिवालय में स्थापित शिव लिंग नर्मदा नदी से लाया गया था. इस पर प्राकृतिक रूप से सर्प की आकृति स्पष्ट है. इन्हें भगवान नर्मदेश्वर के नाम से भी जाना जाता है.

इस रिपोर्ट में देखिए भगवान लक्ष्मी नारायण मंदिर की विशेषता.

शिवालय का है प्राचीन इतिहास
लक्ष्मी नारायण मंदिर के समीप स्थित प्राचीन शिवालय मंदिर प्राचीन इतिहास संजोए हुए हैं. कहा जाता है कि शिवालय में स्थापित शिव लिंग नर्मदा नदी से आया था. इस पर प्राकृतिक रूप से सर्प की आकृति स्पष्ट है. यह भगवान नर्मदेश्वर के नाम से भी जाना जाता है.

पांडवों ने बनाया था तालाब
श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर के समीप स्थित तोरावाला तालाब महाभारत के काल का है. कहा जाता है कि इस तालाब का निर्माण पांडवों ने करवाया था. एक किवदंती के अनुसार महाभारत के युद्ध के पश्चात पांडव इसी स्थान पर आकर रुके थे तथा उन्होंने इस स्थान पर तालाब खुदवा कर इसमें स्नान किया था इसके पश्चात पांडव कपाल मोचन गए थे. जहां के सरोवरों में उन्होंने अपने अस्त्र-शस्त्र धोए थे.

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आज भी यहां सैकड़ों श्रद्धालु रोजाना दर्शन के लिए आते हैं, अमवस्या के दिन ये संख्या लाखों तक पहुंच जाती है. मान्यता है कि सूर्य ग्रहण के दिन यहां सभी देवी देवताओं का वास होता है.

Intro:कुरुक्षेत्र के ऐतिहासिक तालाब के किनारे स्थित प्राचीन लक्ष्मी नारायण मंदिर अद्भुत कला के नमूने से सजाया गया है यह मंदिर यहां के राजा हर्षवर्धन द्वारा बनाया गया था।

हरियाणा राज्य के कुरुक्षेत्र जिले बना सनहित सरोवर इस तीर्थ स्थान में अहम महत्व रखता है यह सरोवर महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने बनवाया था और इसी सनी सरोवर पर कहा जाता है भगवान लक्ष्मी नारायण जी भी प्रकट हुए थे इसके बाद से यहां पांडवों ने लक्ष्मी नारायण भगवान की मूर्ति की स्थापना की थी और उसके बाद राजा हर्षवर्धन ने इस मंदिर का निर्माण बड़े स्तर पर करवाया था इस मंदिर की अद्भुत कलाकृति इस प्रकार की गई है कि जब सूर्य उदय होता है तो पहली किरण लक्ष्मीनारायण जी के चरणों पर पड़ती है।

बताया जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद जब सहित सरोवर पर युद्ध में मारे गए योद्धाओं का पिंडदान किया जा रहा था तो यहां लक्ष्मी नारायण भगवान भी प्रकट हुए थे और उसके बाद से हर अमावस्या पर यहां लोग स्नान करने के लिए पहुंचने लगे कुरुक्षेत्र में बने ब्रह्मसरोवर से भी प्राचीन यह सरोवर है और इसी सरोवर के मुहाने पर बना यह लक्ष्मी नारायण मंदिर भी प्राचीन है इस मंदिर में देश विदेश से भी लोग पहुंचते हैं दक्षिण भारत के अधिकांश श्रद्धालु यहां दर्शनों के लिए आते।
इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि सूर्यग्रहण के अवसर पर इस मंदिर में सभी देवी देवता गण आते हैं और इसी ब्रह्मसरोवर पर स्नान करते हैं
बाईट:- पंडित अनूप गिरी



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