कुरुक्षेत्रः धर्मनगरी पिहोवा के बीचोबीच निकलती सरस्वती नदी अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है. किसी भी चुनाव में चुनाव से पहले हर नेता सरस्वती नदी को मुद्दा बनाकर वोट तो ले जाते हैं लेकिन उसके बाद यहां कोई भी सुध लेने के लिए नहीं आता. करोड़ों रुपये की ग्रांट मिलने के बाद भी इस नदी की हालत बद से बदतर होती जा रही है. यही नहीं पिहोवा में सरस्वती नदी किनारे बना घाट भी आज गंदगी, कुड़े और मच्छरों से भरा रहता है लेकिन प्रशासन का इस ओर कोई ध्यान नहीं है.
पीएम और सीएम का ड्रीम प्रोजेक्ट फ्लॉप
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सूबे के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर सरस्वती नदी को अपना ड्रीम प्रोजेक्ट बताते हैं. करोड़ों रुपए की ग्रांट मिलने के बाद भी इस नदी की हालत बद से बदतर हो चुकी है. यहां के मौजूदा हालात बीते 5 सालों में ड्रीम प्रोजेक्ट पर हुए काम को अच्छे से बयां करते हैं.
जानकारी के मुताबिक हर साल सरस्वती नदी किनारे बने इस घाट के रखरखाव के लिए लाखों रूपये की ग्रांट दी जाती है लेकिन उसके बावजूद कोई सुधार नहीं होता. ऐसे में ये भी सवाल उठता है कि घाट के लिए मिटी लाखों रूपये की ग्रांट आखिर जाती कहां है.
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राजनेताओं के दौरे से पहले सफाई- स्थानीय लोग
श्रद्धालु सरस्वती में स्नान कर अपने पापों से मुक्ती पाने के लिए यहां आते हैं. लेकिन जिस पानी में भक्त डुबती लगाते हैं वो दरअसल लोगों से घरों से निकला गंदा पानी होता है. स्थानीय लोगों की माने तो नदीं में हर समय पानी नहीं छोड़ा जाता.
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यानी जब कोई नेता, मंत्री या विधायक यहां दौरे पर आता है तभी नदी के आसपास सफाई की जाती है और पानी छोड़ा जाता है. स्थानीय लोगों का ये भी कहना है कि घाट के आस-पास रहने वाले लोग इसमें गंदा पानी, कचरा और अपने पशुओं को बांधते हैं जिससे ये घाट और गंदा हो रहा है.
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सरस्वती नदी बनी चुनावी स्टंट
कुरुक्षेत्र से सांसद रह चुके नवीन जिंदल, राजकुमार सैनी और हाल ही में सांसद बने नायब सिंह सैनी का ये वादा करना और जनता के बीच जाकर सरस्वती के नाम पर वोट बटोरना सभी पार्टियों का एक चुनावी स्टंट नजर आता है. क्योंकि चुनाव से पहले हर नेता सरस्वती नदी को मुद्दा बनाकर वोट तो ले जाते हैं लेकिन उसके बाद यहां कोई भी सुध लेने के लिए नहीं आता. सरस्वती नदी राजनीतिक दलों के महज एक चुनावी स्टंट नजर आने लगी है.
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