कुरुक्षेत्र: धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में महाभारत काल और इतिहास के पन्नों में बहुत से ऐसे रोचक किस्से हैं जिनसे हम और आप अनजान है. जिससे लोग जानना चाहते हैं समझना चाहते हैं. ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट में किस्सा हरियाणा का में आज हम बता रहे हैं, अदिति वन तीर्थ के बारे में. जहां पर माता अदिति ने मार्तंड को जन्म दिया था. यह तीर्थ कुरुक्षेत्र जिले के अभिमन्यु पुर गांव में स्थित है. महाभारत कालीन कुरुक्षेत्र की 48 कोस की भूमि में इस तीर्थ को शुमार किया गया है. जो एक महाभारत कालीन तीर्थ है.
अदिति माता के दर्शन से दोषमुक्त की मान्यता: अदिति वन तीर्थ कुरुक्षेत्र से लगभग 9 किमी दूर अभिमन्यु पुर ग्राम में स्थित है. प्राचीनकाल के इतिहास में अदिति वन और अदिति क्षेत्र के नाम से इसे जाना जाता है. वामन पुराण में कहा है कि यहां स्नान करने एवं देवताओं की माता अदिति का दर्शन करने वाली स्त्री सभी दोषों से मुक्त हो जाती है और शूरवीर पुत्र को जन्म देती है. मान्यता है कि इसी स्थान पर देवमाता अदिति ने सहस्रों वर्षों तक तपस्या करके मार्तण्ड (आदित्य) को पुत्र रुप में प्राप्त किया था. वो मार्तंड ही थे जिन्होंने दानवों को युद्ध में हरा दिया और अपने भ्राता इंद्र को फिर से स्वर्ग के सिंहासन पर बैठाया था.
इसलिए गांव का नाम अभिमन्यु पूर रखा: अभिमन्यु पुर नामक स्थान का सम्बन्ध जनश्रुतियां महाभारत से भी जोड़ती है. ऐसा कहा जाता है कि ये वही जगह है जिस स्थान पर महाभारत युद्ध में कौरव सेनापति गुरु द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना की थी. ये वही चक्रव्यूह है जिसका भेदन अर्जुन पुत्र वीर अभिमन्यु ने किया था. जिस दौरान वीर अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हुए थे. इसलिए आज ये स्थान अभिमन्युखेड़ा के नाम से प्रचलित है. कालान्तर में अभिमन्युखेड़ा का अपभ्रंश ही अमीन नाम से जाना जाने लगा. जिसके बाद अब बीजेपी सरकार ने एक बार फिर से गांव का नाम अभिमन्यु पूर रख दिया है.
यक्ष पूजा की परम्परा: यक्ष पूजा की प्राचीन परम्परा: लोगों का मानना है कि यहां पर चक्रव्यूह पुरातात्त्विक टीले के ही अवशेष हैं. . यहां स्थित सरोवर को सूर्य कुण्ड भी कहा जाता है. धर्मनगरी में और भी कई तरह के सूर्यकुंड मिलते हैं. जो कि इस क्षेत्र में प्राचीन काल में प्रचलित सूर्य उपासना के महत्त्व को सांकेतित करते हैं. तीर्थ के पश्चिम में अमीन से प्राप्त यक्ष और यक्षिणी की शुभ कालीन की प्रतिमाएं मिली है.
अदिति माता का परिचय: मुनियों ने ब्रह्मा जी से पूछा कि सूर्य भगवान का जन्म किस स्त्री से हुआ ? जिसका उत्तर देते हुए ब्रह्मा जी बोले कि दक्ष प्रजापति की साठ कन्याएं थीं. उनके अदिति, दिति, दनु और विनता आदि नाम थे. उनमें से तेरह कन्याए, कश्यप जी से विवाही गई. अदिति ने तीनों लोगों के स्वामी देवताओं को जन्म दिया. दिति से दैत्य और दनु से बलाभिमानी भयंकर क्रोधी दानव पैदा हुए. विनता आदि अन्य स्त्रियों से स्थावर जंगम विष तथा भूतों की उत्पत्ति हुई. इन दक्ष सुताओं के पुत्र, पौत्र और दोहित्र आदि से सम्पूर्ण जगत व्याप्त हो गया.
दैत्य और दानवों में शत्रुता: कश्यप के पुत्रों में देवता प्रधान हैं, वे सात्विक गुणों से युक्त हैं. इनके अतिरिक्त दैत्य आदि राजस और तामस गुण वाले हैं. देवताओं को यज्ञ का भागी बनाया. दैत्य और दानव उनसे शत्रुता रखने लगे और मिलकर देवताओं को कष्ट पहुंचाने लगे. तथा यज्ञ भाग भी उनसे छीन लिया गया. माता अदिति ने देखा कि दैत्य और दानवों ने मेरे पुत्रों को उचित स्थान से हटा दिया है और सारी त्रिलोकी नष्ट प्राय कर दी है. तब वह भगवान सूर्य की अराधना के लिए एकाग्रचित होकर स्तवन करने लगी.
सूर्यकुंड पवित्र धाम कैसे बना: भगवान सूर्य प्रसन्न हुए और मार्तण्ड' नाम से अदिति-गर्भ से उत्पन्न होने का वचन अदिति माता को दिया. इसी अदिति आश्रम में इसी सूर्यकुंड पर अदिति ने तपस्या की थी और सूर्य के जन्म स्थान होने के कारण ही सूर्यकुंड पवित्र धाम बना. मार्तदण्ड नामक सूर्य ने असुरों का संहार किया और माता की कृपा से देवताओं को फिर से यज्ञ भाग मिलने लगा.
महाभारत कालीन नाम का वर्णन: अदिति वन तीर्थ के परिसर में मौजूद सीता राम मंदिर के महंत बाबा विप्रदास का मानना है कि अदिति वन तीर्थ पर महाभारत काल में जब पांडव अपना वनवास काट रहे थे. वह भी इसी तीर्थ के पास वन मे आए थे. उस समय भी यहां पर यह सूर्य कुंड मौजूद था. उस समय इसको सूर्यकुंड ना कह कर यक्ष तालाब कहा जाता था. इसी तालाब के आसपास के जंगलों में भीम को हडिंबा मिली थी और उसके उपरांत दोनों का विवाह हुआ था.
महाभारत काल में गांव का नाम: हिडम्बा के चले जाने के बाद पांडव उदास रहने लगे और उस स्थान को छोड़ने का निश्चय कर लिया. वे योजना बना ही रहे थे, कि अब कहां जाना है. तभी वेदव्यास जी प्रकट होते हैं और उन्हें समीप वाली नगर, जिसका नाम चक्रापुरी था. अब अभिमन्यु पुर (अमीन) गांव के नाम से प्रसिद्ध है. उसमें ठहरने का सुझाव देकर चले गए. वह गांव में आकर ठहरे जिसको महाभारत काल मे चक्रापुरी गांव के नाम से जाना जाता था.
अदिति वन तीर्थ के सूर्य कुंड की महत्वता: महात्माओं को तेज देने वाला, अदिति आश्रम में स्थित तीनों लोकों में प्रसिद्ध सूर्यकुण्ड सरोवर में स्नान करें. फिर सूर्य देव का पूजन करें, तो सूर्यलोक की प्राप्ति होती है. कुल का उद्धार हो जाता है. इसी कुण्ड में एक और कुण्ड "गंगाहृद" है, जिसके पाताल में तीन कोटि तीर्थो का जल नीचे ही नीचे आता है. इसलिए उसमें स्नान से तीन कोटि तीर्थों की यात्रा का फल प्राप्त हो जाता है.
इस दिन है पूजा पाठ का विशेष महत्व: जल का पान करने से धर्मज्ञता प्राप्त होती है. द्वारपाल अरन्तुक यक्ष का निवास इसी अमृत जल की रक्षा हेतु यहां निश्चित किया गया है. सरस्वती देवी की कृपा से कण्ठ में माधुर्य गुण उत्पन्न होता है. परशुराम जी ने त्रेताकृत पापों से मुक्ति इसी सरोवर की अराधना से रक्त प्रवाहण करके प्राप्त की थी. फिर दोबारा उसी महानता को प्राप्त हो गए थे. भृगु संहिता भाद्रपद शुक्ला षष्टी पर्व पर सूर्यकुण्ड पर एक विशाल मेले का आयोजन भी किया जाता है. इस दिन यहां पर पूजा पाठ करने का विशेष महत्व बताया गया है.
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सूर्यकुंड में प्रवाहित की जाती है अस्थियां: बाबा विप्रदास ने बताया कि मंदिर के परिसर में बने सूर्यकुंड तालाब में आप भी महाभारत कालीन तथ्य मिलते हैं. बताया जाता है, कि इस सूर्यकुंड तलाब में महाभारत युद्ध में वीरगति प्राप्त हुए. बहुत से वीर अभिमन्यु जैसे बड़े योद्धाओं की अस्थि विसर्जन यहीं की गई थी. इसलिए मान्यता है, कि इस गांव में अगर किसी का स्वर्गवास हो जाता है, तो उसकी अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करने के लिए नहीं ले जाया जाता. उनकी अस्थियों को इसी सूर्यकुंड में प्रवाहित किया जाता है जिनको मोक्ष की प्राप्ति होती है.
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