करनाल: पेशे से इंजीनियर नितिन ललित ने वेस्ट प्लास्टिक से गमलों के कारोबार का स्टार्टअप (pots making startup in haryana) खड़ा किया है. नितिन ने गमले को इस तरह से डिजाइन किया है जिसमें पौधे को विकसित करने के लिए मात्र डेढ़ से 2 लीटर पानी की आवश्यकता होती है, जबकि सामान्य पौधे को बड़ा करने के लिए लगभग 600 से 700 लीटर पानी की आवश्यकता होती है. नितिन ने दावा किया ये तकनीक ऐसे क्षेत्रों के लिए कारगर साबित हो सकती है, जहां पानी की उपलब्धता नहीं है.
नितिन की इस तकनीक पर बागवानी विशेषज्ञ अब शोध करेंगे, ताकि इसे मान्यता दिलाई जा सके. करनाल के रहने वाले नितिन ललित वैसे तो पेशे से बीटेक इंजीनियर हैं, लेकिन अब उन्होंने खुद को कृषि के लिए समर्पित कर दिया है. करनाल में ही एक छोटी सी जगह में वर्कशॉप बनाकर उन्होंने प्लास्टिक वेस्ट से ऐसे गमले तैयार किए हैं. जो ना केवल वजन में हल्के हैं, बल्कि वो कई दिनों तक पानी को अपने अंदर स्टोर करके रख सकते हैं. इससे पौधों को बार-बार पानी देने की आवश्यकता नहीं रहती. उनकी इस तकनीक से हर साल लाखों लीटर पानी बचाया जा सकता है.
क्यों छोड़ी इंजीनियर की नौकरी? अल्फा प्लांटर्स के नाम से कंपनी चलाने वाले नितिन ललित ने बताया कि वो पेशे से इंजीनियर हैं. अमेरिका में वो करीब 4 हजार डॉलर प्रतिमाह की सैलरी पर काम करते थे. उन्होंने वहां देखा कि वहां के लोग पानी बचाने के लिए अलग-अलग तरह का अविष्कार कर रहे थे. तब नितिन को लगा कि भारत में तो पानी की बर्बादी ज्यादा होती है. लिहाजा उन्होंने पानी बचाने के प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया. ताकि गिरते भूजल स्तर को बचाया जा सके. यहीं सोचकर इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ ललित करनाल आ गए और यहां गमले बनाने का काम शुरू किया. ललित ने गमले को बनाने के लिए प्लास्टिक की बेकार बोतलों और अन्य चीजों का इस्तेमाल किया.
आकर्षक है गमलों का डिजाइन: नितिन ललित के डिजाइन किए गमले ऐसे हैं कि हर कोई उन्हें देखने के लिए एक बार ठहर जाता है. गमले वेस्ट प्लास्टिक शीट से बने हैं. इनके अंदर प्लास्टिक के ही स्क्रू लगाए गए हैं. उन्हें पूरी तरह खोला जा सकता है. प्लास्टिक शीट का नुकीला उभार गमले को आकर्षक (designer pots of waste material) बनाता है. नुकीला उभार इसलिए दिया गया है ताकि गमले के अंदर हवा और पानी के कण रह सकें और पौधे में लंबे समय तक नमी कायम रखी जा सके.
80 प्रतिशत तक बचाया जा सकता है पानी: इन गमलों में नीचे वॉटर कंटेनर लगा है. पौधे को दिया अतिरिक्त पानी उस वॉटर कंटेनर में चला जाता है, जो उसमें जमा रहता है. पौधे की जड़ें इस वॉटर कंटेनर में डूबी होने के कारण वहां से पानी लेती रहती हैं. वॉटर कंटेनर अगर भरा हो तो करीब एक महीने तक पानी देने की जरूरत नहीं है. नितिन बताते हैं कि वो इसका टेस्ट कर चुके हैं. इससे पानी की बचत होती है. उन्होंने इतना बड़ा गमला भी बनाया गया है कि उनमें सब्जियां उगाई जा सकती हैं.
100 से ज्यादा लोगों को दे चुके रोजगार: इस स्टॉर्टअप के जरिए नितिन 100 से ज्यादा लोगों को रोजगार दो चुके हैं. नितिन के मुताबिक बाहर रहकर उन्होंने जितना कमाया. लभगभ सारा पैसा वो इसपर लगा चुके हैं. अब उन्हें इससे आमदनी होनी शुरू हुई है. नितिन के मुताबिक प्रति महीने अब वो इस स्टार्टअप से करीब दो लाख रुपये कमा रहे हैं. नितिन ने बताया कि इसके लिए कंपोस्ट खाद की जरूरत पड़ती है. जिसे किसी भी मौसम में बागवानी की जा सकती है.
करनाल में महाराणा प्रताप बागवानी विश्वविद्यालय (Maharana Pratap Horticulture University Karnal) के उपकुलपति डॉक्टर समर सिंह ने कहा कि नितिन ललित ने जो तकनीक विकसित की है. वओ काफी कारगर है. किसानों के लाभ के लिए इस तकनीक पर शोध करने के निर्देश दे दिए हैं, ताकि इस तकनीक को मान्यता दिलाई जा सके. उन्होंने कहा कि बागवानी विभाग द्वारा किसानों के लिए अच्छे बीज देने और कम पानी का इस्तेमाल करने के लिए अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं. इसमें नितिन जैसे अन्य युवाओं को भी आगे आना चाहिए और बागवानी के विकास में योगदान देना चाहिए. बागवानी करने वाले किसानों ने कहा कि नितिन की तकनीक से पानी और लेबर की काफी बचत होती है. इससे पौधे की नलाई और गुड़ाई भी बड़ी आसानी से हो जाती है.
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