करनाल: भारत एक रूढ़िवादी देश है और यहां पर अभी तक लोगों पर रूढ़िवादिता हावी रहती है, चाहे वह किसी भी बात पर हो. एक समय ऐसा होता था, जब बेटों को बेटियों से ज्यादा महत्व दिया जाता था और बेटियों को पेट में ही मौत के घाट उतार दिया जाता था. वहीं अब कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है, जिसमें देश की बेटियों को योगदान नहीं है. ना सिर्फ योगदान है अपितु हर क्षेत्र में देश की बेटियों ने अपना परचम लहराकर साबित कर दिया है कि बेटियां भी बेटों से कम नहीं हैं. हम बात कर रहे है एक ऐसी बेटी की जिसने महज 5 साल की उम्र से ही सामाजिक कार्यो में जुड़कर पुरानी रूढ़िवादिता सोच को अपने हौसलों के तले रौंद दिया.
करनाल के रहने वाली संजौली (Karnal daughter Sanjauli) व अनन्या ये दोनों बेटियां बेहद कम उम्र में सामाजिक कार्यो में जुट गई थी. संजौली के पिता ने बताया कि उनकी बेटी संजौली के पैदा होने के 5 साल बाद उनकी दूसरी बेटी अनन्या पैदा हुई. उस दौरान समाज व आसपास के लोगों ने उनको दो बेटियां होने पर बहुत ताने मारे, संजौली और अनन्या के पिता ने दूसरी बेटी में कोई फर्क नहीं रखा. वहीं अनन्या के होने पर भारत में सबसे पहले 2004 में बेटी के नाम लोहड़ी कार्यक्रम इन लोगों ने शुरू किया. उससे पहले यह कार्यक्रम सिर्फ परिवार में बेटा होने पर ही बेटे के नाम पर लोहड़ी मनाई जाती थी, लेकिन उस दिन से उन्होंने एक पारंपरिक रीति को तोड़कर नई प्रथा (Lohri Daughter Karnal) शुरू की.
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सर्वश्रेष्ठ कार्यों के लिए हरियाणा सरकार से सम्मानित: संजौली के माता-पिता ने सोचा कि जैसी स्थिति हमारे सामने पैदा हुई, ऐसी स्थिति किसी भी माता-पिता के सामने पैदा ना हो. इसलिए उन्होंने भ्रूण हत्या के ऊपर काम करना शुरू किया और अपनी बेटी संजौली को 5 साल से ही सामाजिक कार्यक्रमों में लगा दिया. जिससे वह लोगों को भ्रूण हत्या के ऊपर जागरूक करने लगी और 7 साल की उम्र में ही उसको भारत की सबसे छोटी उम्र की बेटी जो सामाजिक कार्यों में काम करने लगी. वह दौर ऐसा था, जब हरियाणा कन्या भ्रूण हत्या को लेकर बदनाम था. 2006 में कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ जागरूकता मुहिम चलाने पर हरियाणा सरकार ने उसे सम्मानित भी किया.
सामाजिक कार्यों के लिए बनाई संस्था: संजौली ने बताया कि उसने 5 साल की उम्र से ही समाजिक कार्यों की तरफ कदम बढ़ा लिया था. उन्होंने कई कार्यक्रमों के माध्यम से समाज में संदेश देने का काम किया. उन्होंने भ्रूण हत्या पर तो काम किया ही, साथ ही अन्य कई समाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए अन्य कई काम शुरू किए और उन्होंने खुद की अपनी एक सारथी संस्था बनाई जिसको वह पूरे भारत में चला रहे हैं. बता दें कि संजौली व अनन्या ने करनाल का गांव दरड़ गोद लिया हुआ है. जहां वो बच्चों को फ्री में मोबाइल शिक्षा प्रदान कर रहे हैं और साथ ही लोगों को जागरूक करने के लिए उन बच्चों को तैयार कर रहे हैं.
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ऑस्ट्रेलिया में एक दिन की सांसद संजौली: गौरतलब है कि संजौली ने अपनी पढ़ाई ऑस्ट्रेलिया से की है, लेकिन उन्होंने वहां की चकाचौंध भरी जिंदगी को छोड़कर भारत में आना ही ज्यादा बेहतर समझा और यहां सामाजिक कार्यों में अपना पूरा योगदान दिया. उनके सामाजिक कार्यों को देखते हुए इंग्लैंड में डायना अवार्ड से भी सम्मानित किया गया था और ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने भी संजौली को 1 दिन के लिए पार्लियामेंट का सदस्य बनाया था. इसके साथ ही संजौली को विदेशों में कई अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है. संजौली की छोटी बहन अनन्या ने कहा कि वह लोगों को जागरूक करने के लिए नुक्कड़ नाटक और कई तरह की की रैली निकालते हैं. जिससे लोगों को जागरूक किया जाता है और कहीं ना कहीं उनको गर्व महसूस होता है कि वह समाज हित में काम कर रहे हैं.
बेटियों को जागरूक कर रही दोनों बहनें: संजौली और अनन्या दोनों बहनें अपने एनजीओ के जरिए बेटियों को गुड टच बैड टच से लेकर आत्मरक्षा करने तक की शिक्षा दे रही हैं. इसके साथ ही बेटियों के साथ या उनके आसपास हो रहे अत्याचारों के खिलाफ बोलने वाले और उनको सामने लाने के लिए बच्चों को तैयार कर रहे हैं. कहीं ना कहीं वह चाहती है कि हमारे देश की बेटी आगे बढ़े और जिस किसी पर कोई अत्याचार हो रहा है वह अत्याचार सहने के बजाए उनके खिलाफ लड़ना सीखे.
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वहीं सरकार के बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान से परिप्रेक्ष्य में संजौली ने कहा कि बेटियों को शिक्षा देने के लिए कोई भी उचित स्थान नहीं मिल रहा है. कभी वह गुरुद्वारे में बच्चों को पढ़ाते हैं, तो कभी किसी चौपाल में, तो कभी मंदिर में. ऐसे में उन्होंने सरकार से बच्चों को पढ़ाने के लिए कोई स्थान मुहैया कराने की अपील की है. जिससे वह अपने इस अभियान को आगे बढ़ा सके. गौरतलब है कि यह दोनों बेटियां पूरे भारत और विदेशों में करनाल का परचम लहरा रही हैं और लगातार सोशल वर्क करके लोगों को जागरूक भी कर रही हैं.
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