करनाल: हरियाणा करनाल में किसानों को आलू के हाई क्वालिटी का बीज उपलब्ध हो और खुद बीज बनाकर न केवल आमदनी बढ़ा सकते हैं, बल्कि प्रदेश के अन्य किसानों को भी हाई क्वालिटी का बीज उपलब्ध करवाने में मददगार बन सकते हैं. इस काम को करने के लिए आलू प्रौद्योगिकी केंद्र शामगढ़ के वैज्ञानिक गंभीरता से काम कर रहे हैं. वैज्ञानिक न केवल केंद्र पर हाई क्वालिटी का बीज तैयार कर रहे हैं, बल्कि किसानों को सिखा रहे हैं कि वे कैसे खुद बीज का उत्पादन करके आमदनी को बढ़ा सकते हैं.
करनाल स्थित आलू केंद्र के वैज्ञानिकों की मानें तो प्रदेश में आलू के हाई क्वालिटी के बीज की भारी कमी रहती है, इसे पूरा करने के लिए शिमला से हाई क्वालिटी का कल्चर ट्यूब (सीपीआरएस) लेकर आते हैं. जिसे 7-8 महीने तक मल्टीप्लाई करके करीब 20 हजार माइक्रो प्लांट बनाए जाते हैं. उसके बाद उनकी हार्डनिंग की जाती हैं. इसके लिए केंद्र में करीब 3 हार्डनिंग यूनिट हैं. उसके बाद उसे नेट हाउस और एयरोपोनिक में लगा दिया जाता है.
वैज्ञानिक डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि नेट हाउस या एयरोपोनिक में लगाने के बाद हाई क्वालिटी का मिनी ट्यूबर मिल जाते हैं, जिसे किसानों को उचित रेट पर दिया जाता है. साथ ही खुद भी अगले सीजन के लिए फार्म पर लगाया जाता है, जिससे केंद्र को जीनोम भी प्राप्त हो जाता है. उन्होंने कहा कि, प्रदेश के जो किसान हरियाणा की योजना विलेज ऑफ एक्सीलेंस प्रोग्राम के तहत केंद्र से जुड़े हुए हैं. ऐसे किसानों को 40 फीसदी तक सब्सिडी दी जाती है, ताकि वे आलू से सम्बधित उपकरण खरीद सकें.
टिश्यू कल्चर लैब होने से नहीं होना पड़ता किसी पर निर्भर: वैज्ञानिक ने बताया कि टिश्यू कल्चर लैब होने से आलू के हाई क्वालिटी बीज के लिए किसी पर निर्भर होने की आवश्यकता नहीं पड़ती. माइक्रो प्लांट या बीज के लिए हाई क्वालिटी के मिनी ट्यूबर तैयार होते हैं, जिसे किसानों को देते हैं. किसान इन्हें मल्टी प्लाई करके आगे बेंच सकते हैं. इससे न केवल आलू का बढ़िया उत्पादन ले सकेंगे और इससे किसानों को काफी लाभ भी होगा. इसके अलावा नई तकनीक भी आई है, जिसमें किसान खुद भी कटिंग लगाकर भी बेच सकते हैं.
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केंद्र की साढ़े सात लाख माइक्रो प्लांट की क्षमता: आलू प्रौद्योगिकी केंद्र शामगढ़ केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि, केंद्र की क्षमता साढ़े सात लाख माइक्रो प्लांट की है, जिसे किसानों को उपलब्ध कराया जाता हैं. साथ ही अगले सीजन के लिए भी केंद्र में लगाते हैं. आलू की फसल कम समय की होती हैं, जो केवल 80 से 90 दिनों में तैयार हो जाती है. इस फसल के बाद किसान दूसरी फसल लगा सकते हैं. या फिर किसान बीज को तैयार करके दूसरे प्रदेशों में भी भेज सकते हैं.
उन्होंने कहा कि देश प्रदेश में इन दिनों आलू के बढ़िया बीज की काफी डिमांड हैं, जिसे पूरा करने के लिए सीड इंड्रस्ट्रीज में बूम करने के लिए टिश्यू कल्चर तकनीक काफी लाभकारी साबित हो रही है. उन्होंने कहा कि इस तकनीक से किसानों को काफी फायदा भी मिल रहा है. किसानों को बाकायदा ट्रेनिंग दी जाती है, उनके हर जीज के बारे में बताया जाता है कि कैसे वो हाई क्वालिब्टी का बीज कैसे पैदा करकें और उसे कैसे दूसरे प्रदेशों में भेजे. ताकि उनकी आय दोगुनी हो और किसानों को बढ़िया बीज मिले.
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