करनाल: खेती मौजूदा दौर में एक ऐसा व्यवसाय बन गई है जहां पर लागत बढ़ती जा रही है. नई तकनीकों का इस्तेमाल करने के लिए महंगी मशीने, महंगे खाद और महंगे बीज ने खेती की लागत को बढ़ा दिया है. ऐसे में किसान खेती में ऐसा विकल्प चुन रहे है जिसमे लागत तो कम है ही साथ ही मुनाफा भी अच्छा हो रहा हैं. इसी कड़ी में कुरुक्षेत्र के मेहरा गांव के रहने वाले राजकुमार आर्य का नाम भी शामिल है. राजकुमार पिछले 15 सालों से जीरो बजट खेती करते आ रहे (Zero Budget Farming In Karnal) हैं.
कैसे शुरू की जीरो बजट खेती- जीरो बजट खेती से पहले राजकुमार भी कैमिकल वाली ही खेती किया करते थे. इस बीच राजकुमार के भाई की फसल में पड़ने वाले कैमिकल के चलते उनकी मौत हो गई. इसके बाद ही राजकुमार ने कैमिकल युक्त खेती करनी छोड़ दी और जीरो बजट फार्मिंग करने की ठान ली. आज वह लगभग 13 एकड़ में जीरो बजट फार्मिंग कर रहे हैं. इसमें वह हर तरीके की फल, सब्जियां, दालें, अनाज उगा रहे हैं. यही नहीं चंडीगढ़, दिल्ली जैसे बड़े शहरों में अच्छे दाम पर फसलें बेच कर अच्छा मुनाफा ले रहे हैं.
शुरआत में आई दिक्कतें- राकुमार ने बताया कि रसायन वाली खेती छोड़ने के बाद राजकुमार को शुरू- शुरू में थोड़ी बहुत मुश्किलें का भी सामना करना पड़ा. उन्होंने बताया कि शुरूआत के दो-तीन साल तक पैदावार थोड़ी कम हुई. इन तीनों साल तक उन्होंने लगातार इस खेती की बारीकियों को सीखा. उसके बाद ही उन्होंने खेती करना शुरू किया है. अब राजकुमार आर्य अपने खेतों में हर तरह के सब्जी उगाते हैं. राजकुमार का कहना है कि उनकी जितने भी उत्पाद होते हैं सभी हाथों-हाथ बिक जाते हैं. उनके बंधे हुए ही ग्राहक होते हैं जिन तक वह अपने उत्पाद पहुंचा रहे हैं. उनके ज्यादा उत्पाद चंडीगढ़ में बेचे जाते हैं. जहां पर उनको रसायन वाले उत्पाद से अच्छा पैसा मिलता है.
ऐसे कर सकते हैं नेचुरल फार्मिंग- राजकुमार ने कहा कि अगर किसी किसान के पास एक देशी गाय है तो उसके गोमूत्र और गोबर से 30 एकड़ तक में वह प्राकृतिक खेती कर सकता हैं. उन्होंने कहा कि जो रसायन वाली खेती करते हैं उसमें लागत ज्यादा हो गई है और बचत कम है. इसलिए अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए सभी किसानों को कम से कम अपने खाने के लिए जीरो बजट फार्मिंग प्राकृतिक खेती करनी चाहिए. नेचुरल फार्मिंग से किसान की फसल में रसायन वाली खेती के मुकाबले बीमारियां भी कम आती हैं. दूसरी सबसे बड़ी बात यह है कि जितनी जमीन पर वह जीरो बजट फार्मिंग प्राकृतिक खेती कर रहे हैं वह जमीन पानी को अपने अंदर सोखने में भी पूरी तरीके से समर्थ हो चुकी होती है. इससे जलभराव जैसी समस्या भी पैदा नहीं होती.
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जीरो बजट प्राकृतिक खेती क्या है?- जीरो बजट प्राकृतिक खेती देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र पर आधारित है. एक देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र से एक किसान तीस एकड़ जमीन पर जीरो बजट खेती कर सकता है. देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत तथा जामन बीजामृत बनाया जाता है. इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है. जीवामृत का महीने में एक अथवा दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है. जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है.
इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है. फसलों की सिंचाई के लिये पानी एवं बिजली भी मौजूदा खेती-बाड़ी की तुलना में दस प्रतिशत ही खर्च होती है. गाय से मिला हफ्तेभर के गोबर एवं गौमूत्र से निर्मित घोल का खेत में छिड़काव खाद का काम करता है और भूमि की उर्वरकता को भी नुकसान नहीं होता है. इसके इस्तेमाल से एक ओर जहां गुणवत्तापूर्ण उपज होती है. वहीं दूसरी ओर उत्पादन लागत लगभग शून्य रहती है.
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