ETV Bharat / state

कलायत विधानसभा सीट: हर चुनाव में यहां से बनता है नया विधायक, पढ़िए दिलचस्प किस्सा

कैथल जिले की कलायत विधानसभा सीट पर कभी कोई नेता दोबारा विधायक नहीं बना. यहां हुए 13 चुनावों में 13 अलग-अलग लोग विधायक बने हैं. सिर्फ 1982 और 1987 को छोड़कर हर चुनाव में जीतने वाले उम्मीदवार की पार्टी भी पिछले विधायक से अलग रही है.

author img

By

Published : Sep 2, 2019, 7:09 PM IST

Updated : Sep 7, 2019, 6:03 PM IST

kalayat assembly seat

कैथल: कलायत विधानसभा सीट पर नेताओं को बदलने का चलन यहां इस कदर रहा है कि 13 चुनावों में से 1982 और 1987 को छोड़कर हर बार दूसरे नंबर पर आने वाला उम्मीदवार भी हमेशा बदलता रहा है.

kalayat map
मैप.

कलायत विधानसभा क्षेत्र में एक ऐसा भी गांव है जहां केवल 3 मतदाता हैं. कलायत से मात्र 7 किलोमीटर की दूरी पर बसा है गांव खडालवा. राजस्व रिकॉर्ड में गांव खडालवा को एक गांव का दर्जा प्राप्त है. इस समय इस गांव की आबादी कुल 4 है. कलायत इलाका रामायण, महाभारत और आदिकाल के अन्य युगों से जुड़े गौरवशाली इतिहास का गवाह है. यहां कई धार्मिक स्थल बने हैं.

khadalwa village.
गांव खडालवा.

चुनाव की बात करें तो यहां से 2014 से पहले कोई भी निर्दलीय विधायक नहीं जीता, पहली बार 2014 के चुनाव में यहां से कोई निर्दलीय विधायक जीता था. यहां से ज्यादातर इनेलो का उम्मीदवार ही जीतता आया था.

jai prakash
जयप्रकाश.

हरियाणा के गठन के बाद से ही कलायत सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व रही थी लेकिन 2009 से ये सीट सामान्य वर्ग के लिए खोल दी गई. इसके बाद हुए चुनावों में पहले इनेलो के रामपाल माजरा और फिर निर्दलीय जयप्रकाश यहां से विधायक बने.

rampal majra
रामपाल माजरा.

2014 में इनेलो ने यहां से अपने विधायक रामपाल माजरा को ही टिकट दी थी. वे 2009 में अच्छे वोट लेकर जीते थे और 2014 लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को यहां से 18 हजार वोटों की बढ़त मिली थी.

rampal majra
इनेलो नेताओं के साथ रामपाल माजरा.

रामपाल माजरा 2000 में बनी चौटाला सरकार में मुख्य संसदीय सचिव भी रहे. ये हलका इनेलो का गढ़ है लेकिन 2014 में भाजपा की लहर और जयप्रकाश के निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में आने से वोट कई जगह बंट गए और रामपाल माजरा अपनी सीट नहीं बचा पाए. 2009 में मिले 43.18 प्रतिशत वोटों के मुकाबले रामपाल माजरा को 2014 में 27.95 प्रतिशत वोट मिल पाए.

ranveer maan.
रणवीर मान.

कांग्रेस का चुनाव यहां से 2009 में तेजिंदरपाल मान ने लड़ा था. जिनका कुछ साल बाद निधन हो गया. 2014 में टिकट के दावेदार के रूप में तेजेंद्र पाल के बेटे रणवीर मान सक्रिय हो चुके थे. हुड्डा सरकार में एक वरिष्ठ मंत्री के सहयोग से रणवीर मान टिकट लेने में कामयाब भी हो गए लेकिन कांग्रेस के खिलाफ इस क्षेत्र में विपरीत माहौल के चलते हुए मजबूती से टक्कर नहीं दे पाए.

रणवीर मान चौथे नंबर पर आए और 2009 में उनके पिता को मिले 35.88 प्रतिशत वोटों के मुकाबले 15.3 प्रतिशत वोट ही ले पाए. कांग्रेस यहां इतनी कमजोर कभी नहीं रही थी और 13 में से 11 चुनाव में तो यहां जीती थी या दूसरे स्थान पर रही थी.

jai prakash
पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा के साथ जयप्रकाश.

वहीं जयप्रकाश तीन बार (1989 जनता दल, 1996 हविपा, 2004 कांग्रेस) हिसार से सांसद और एक बार 2000 में बरवाला से विधायक रह चुके हैं. 1990 में चंद्रशेखर सरकार में भी पेट्रोलियम और गैस विभाग के केंद्रीय राज्य मंत्री रहे. जयप्रकाश 1988 में चौधरी देवीलाल की ग्रीन बिग्रेड के प्रमुख के रूप में भी चर्चा में आए थे और तब वे उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद सीट पर वीपी सिंह के चुनाव में मदद करने गए थे. जिसमें वीपी सिंह की जीत हुई थी. इसी के इनाम के रूप में उन्हें बाद में केंद्र में मंत्री बनाया गया था.

जयप्रकाश ने 2009 का विधानसभा चुनाव आदमपुर सीट से लड़ा था. जहां वे कुलदीप बिश्नोई से लगभग 6000 वोटों से हारे. यह भजन लाल परिवार की आदमपुर सीट पर सबसे छोटी जीत थी. हिसार सीट से 2009 लोकसभा चुनाव और 2011 के चुनाव में जयप्रकाश की कांग्रेस की टिकट पर करारी हार भी हुई और 2011 में तो जमानत तक जब्त हो गई क्योंकि वहां मुकाबला मुख्य रूप से इनेलो और हजकां के बीच ही हो गया था.

kuldeep bishnoi
कुलदीप बिश्नोई और चौ. भजनलाल.

2014 में जयप्रकाश अपने गृह क्षेत्र कलायत से कांग्रेस की टिकट चाहते थे क्योंकि उन्हें अपने राजनीतिक जीवन को नई जान देनी थी. टिकट बंटवारे के आखिरी दिनों में जब यह साफ हो गया कि कांग्रेस अपना उम्मीदवार रणवीर मान को बनाने जा रही है. तो जयप्रकाश ने घोषणा से पहले ही अपने कार्यकर्ताओं को इकट्ठा कर चुनाव आजाद उम्मीदवार के रूप में लड़ने के संकेत दे दिए थे.

जानकार कहते हैं कि टिकट न मिलने से जयप्रकाश के लिए अच्छा रहा क्योंकि टिकट कटने से उन्हें लोगों की सहानुभूति मिली और कांग्रेस से नाराजगी का भी वोट सारा इनेलो या भाजपा को जाने की बजाय बंट गया. निर्दलीय लड़ते हुए जयप्रकाश दूसरी बार विधानसभा पहुंचे. लोगों से जुड़ने के लिए नामांकन के फॉर्म में उन्होंने अपना नाम भाई जयप्रकाश लिखा और वही यही नाम इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में भी आया.

dharampal sharma
धर्मपाल शर्मा.

भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर धर्मपाल शर्मा को उतारा था. जो इस हलके के रहने वाले नहीं थे. धर्मपाल शर्मा का गांव कोयल जींद जिले में पड़ता है और नरवाना विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है. वह काफी समय से कैथल में रहते थे. कांग्रेस छोड़ भाजपा में गए चौधरी बीरेंद्र सिंह के नजदीकी धर्मपाल शर्मा को पूरी उम्मीद मोदी लहर और बीरेंद्र सिंह के समर्थकों से ही थी.

jai prakash
जयप्रकाश.

भाजपा ने इस हलके में कभी अपनी उपस्थिति मजबूत तरीके से दर्ज नहीं करवाई थी लेकिन धर्मपाल शर्मा को 17.3 प्रतिशत वोट मिले, जो कांग्रेस से भी ज्यादा थे. भाजपा को यहां 2009 में 1.5 प्रतिशत और 2005 में 2.80 प्रतिशत वोट मिल पाए थे.

2014 के विधानसभा में कलायत ने किसी को दोबारा विधायक ना बनने का अपना रिकॉर्ड कायम रखा और जयप्रकाश को राजनीतिक जीवन दान दिया. रामपाल माजरा की यहां हार इनेलो के लिए चिंता का विषय रही क्योंकि यह लोकदल के सबसे मजबूत क्षेत्रों में से एक था. कांग्रेस उम्मीदवार को जनता ने पहली बार चौथे नंबर पर धकेल दिया था.

कैथल: कलायत विधानसभा सीट पर नेताओं को बदलने का चलन यहां इस कदर रहा है कि 13 चुनावों में से 1982 और 1987 को छोड़कर हर बार दूसरे नंबर पर आने वाला उम्मीदवार भी हमेशा बदलता रहा है.

kalayat map
मैप.

कलायत विधानसभा क्षेत्र में एक ऐसा भी गांव है जहां केवल 3 मतदाता हैं. कलायत से मात्र 7 किलोमीटर की दूरी पर बसा है गांव खडालवा. राजस्व रिकॉर्ड में गांव खडालवा को एक गांव का दर्जा प्राप्त है. इस समय इस गांव की आबादी कुल 4 है. कलायत इलाका रामायण, महाभारत और आदिकाल के अन्य युगों से जुड़े गौरवशाली इतिहास का गवाह है. यहां कई धार्मिक स्थल बने हैं.

khadalwa village.
गांव खडालवा.

चुनाव की बात करें तो यहां से 2014 से पहले कोई भी निर्दलीय विधायक नहीं जीता, पहली बार 2014 के चुनाव में यहां से कोई निर्दलीय विधायक जीता था. यहां से ज्यादातर इनेलो का उम्मीदवार ही जीतता आया था.

jai prakash
जयप्रकाश.

हरियाणा के गठन के बाद से ही कलायत सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व रही थी लेकिन 2009 से ये सीट सामान्य वर्ग के लिए खोल दी गई. इसके बाद हुए चुनावों में पहले इनेलो के रामपाल माजरा और फिर निर्दलीय जयप्रकाश यहां से विधायक बने.

rampal majra
रामपाल माजरा.

2014 में इनेलो ने यहां से अपने विधायक रामपाल माजरा को ही टिकट दी थी. वे 2009 में अच्छे वोट लेकर जीते थे और 2014 लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को यहां से 18 हजार वोटों की बढ़त मिली थी.

rampal majra
इनेलो नेताओं के साथ रामपाल माजरा.

रामपाल माजरा 2000 में बनी चौटाला सरकार में मुख्य संसदीय सचिव भी रहे. ये हलका इनेलो का गढ़ है लेकिन 2014 में भाजपा की लहर और जयप्रकाश के निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में आने से वोट कई जगह बंट गए और रामपाल माजरा अपनी सीट नहीं बचा पाए. 2009 में मिले 43.18 प्रतिशत वोटों के मुकाबले रामपाल माजरा को 2014 में 27.95 प्रतिशत वोट मिल पाए.

ranveer maan.
रणवीर मान.

कांग्रेस का चुनाव यहां से 2009 में तेजिंदरपाल मान ने लड़ा था. जिनका कुछ साल बाद निधन हो गया. 2014 में टिकट के दावेदार के रूप में तेजेंद्र पाल के बेटे रणवीर मान सक्रिय हो चुके थे. हुड्डा सरकार में एक वरिष्ठ मंत्री के सहयोग से रणवीर मान टिकट लेने में कामयाब भी हो गए लेकिन कांग्रेस के खिलाफ इस क्षेत्र में विपरीत माहौल के चलते हुए मजबूती से टक्कर नहीं दे पाए.

रणवीर मान चौथे नंबर पर आए और 2009 में उनके पिता को मिले 35.88 प्रतिशत वोटों के मुकाबले 15.3 प्रतिशत वोट ही ले पाए. कांग्रेस यहां इतनी कमजोर कभी नहीं रही थी और 13 में से 11 चुनाव में तो यहां जीती थी या दूसरे स्थान पर रही थी.

jai prakash
पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा के साथ जयप्रकाश.

वहीं जयप्रकाश तीन बार (1989 जनता दल, 1996 हविपा, 2004 कांग्रेस) हिसार से सांसद और एक बार 2000 में बरवाला से विधायक रह चुके हैं. 1990 में चंद्रशेखर सरकार में भी पेट्रोलियम और गैस विभाग के केंद्रीय राज्य मंत्री रहे. जयप्रकाश 1988 में चौधरी देवीलाल की ग्रीन बिग्रेड के प्रमुख के रूप में भी चर्चा में आए थे और तब वे उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद सीट पर वीपी सिंह के चुनाव में मदद करने गए थे. जिसमें वीपी सिंह की जीत हुई थी. इसी के इनाम के रूप में उन्हें बाद में केंद्र में मंत्री बनाया गया था.

जयप्रकाश ने 2009 का विधानसभा चुनाव आदमपुर सीट से लड़ा था. जहां वे कुलदीप बिश्नोई से लगभग 6000 वोटों से हारे. यह भजन लाल परिवार की आदमपुर सीट पर सबसे छोटी जीत थी. हिसार सीट से 2009 लोकसभा चुनाव और 2011 के चुनाव में जयप्रकाश की कांग्रेस की टिकट पर करारी हार भी हुई और 2011 में तो जमानत तक जब्त हो गई क्योंकि वहां मुकाबला मुख्य रूप से इनेलो और हजकां के बीच ही हो गया था.

kuldeep bishnoi
कुलदीप बिश्नोई और चौ. भजनलाल.

2014 में जयप्रकाश अपने गृह क्षेत्र कलायत से कांग्रेस की टिकट चाहते थे क्योंकि उन्हें अपने राजनीतिक जीवन को नई जान देनी थी. टिकट बंटवारे के आखिरी दिनों में जब यह साफ हो गया कि कांग्रेस अपना उम्मीदवार रणवीर मान को बनाने जा रही है. तो जयप्रकाश ने घोषणा से पहले ही अपने कार्यकर्ताओं को इकट्ठा कर चुनाव आजाद उम्मीदवार के रूप में लड़ने के संकेत दे दिए थे.

जानकार कहते हैं कि टिकट न मिलने से जयप्रकाश के लिए अच्छा रहा क्योंकि टिकट कटने से उन्हें लोगों की सहानुभूति मिली और कांग्रेस से नाराजगी का भी वोट सारा इनेलो या भाजपा को जाने की बजाय बंट गया. निर्दलीय लड़ते हुए जयप्रकाश दूसरी बार विधानसभा पहुंचे. लोगों से जुड़ने के लिए नामांकन के फॉर्म में उन्होंने अपना नाम भाई जयप्रकाश लिखा और वही यही नाम इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में भी आया.

dharampal sharma
धर्मपाल शर्मा.

भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर धर्मपाल शर्मा को उतारा था. जो इस हलके के रहने वाले नहीं थे. धर्मपाल शर्मा का गांव कोयल जींद जिले में पड़ता है और नरवाना विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है. वह काफी समय से कैथल में रहते थे. कांग्रेस छोड़ भाजपा में गए चौधरी बीरेंद्र सिंह के नजदीकी धर्मपाल शर्मा को पूरी उम्मीद मोदी लहर और बीरेंद्र सिंह के समर्थकों से ही थी.

jai prakash
जयप्रकाश.

भाजपा ने इस हलके में कभी अपनी उपस्थिति मजबूत तरीके से दर्ज नहीं करवाई थी लेकिन धर्मपाल शर्मा को 17.3 प्रतिशत वोट मिले, जो कांग्रेस से भी ज्यादा थे. भाजपा को यहां 2009 में 1.5 प्रतिशत और 2005 में 2.80 प्रतिशत वोट मिल पाए थे.

2014 के विधानसभा में कलायत ने किसी को दोबारा विधायक ना बनने का अपना रिकॉर्ड कायम रखा और जयप्रकाश को राजनीतिक जीवन दान दिया. रामपाल माजरा की यहां हार इनेलो के लिए चिंता का विषय रही क्योंकि यह लोकदल के सबसे मजबूत क्षेत्रों में से एक था. कांग्रेस उम्मीदवार को जनता ने पहली बार चौथे नंबर पर धकेल दिया था.

Intro:Body:



कलायत सीट: यहां से हर बार बनता है नया विधायक, आखिर जनता क्यों बदलती है नेता?



कैथल जिले की कलायत विधानसभा सीट पर कभी कोई नेता दोबारा विधायक नहीं बना. यहां हुए 13 चुनावों में 13 अलग-अलग लोग विधायक बने हैं. सिर्फ 1982 और 1987 को छोड़कर हर चुनाव में जीतने वाले उम्मीदवार की पार्टी भी पिछले विधायक से अलग रही है. 

कैथल: कलायत विधानसभा सीट पर नेताओं को बदलने का चलन यहां इस कदर रहा है कि 13 चुनावों में से 1982 और 1987 को छोड़कर हर बार दूसरे नंबर पर आने वाला उम्मीदवार भी हमेशा बदलता रहा है.

कलायत विधानसभा क्षेत्र में एक ऐसा भी गांव है जहां केवल 3 मतदाता हैं. कलायत से मात्र 7 किलोमीटर की दूरी पर बसा है गांव खडालवा. राजस्व रिकार्ड में गांव खडालवा को एक गांव का दर्जा प्राप्त है. इस समय इस गांव की आबादी कुल 4 है. कलायत इलाका रामायण, महाभारत और आदिकाल के अन्य युगों से जुड़े गौरवशाली इतिहास का गवाह है. यहां कई धार्मिक स्थल बने हैं.

चुनाव की बात करें तो यहां से 2014 से पहले कोई भी निर्दलीय विधायक नहीं जीता, पहली बार 2014 के चुनाव में यहां से कोई निर्दलीय विधायक जीता था. यहां से ज्यादातर इनेलो का उम्मीदवार ही जीतता आया था.

हरियाणा के गठन के बाद से ही कलायत सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व रही थी लेकिन 2009 से ये सीट सामान्य वर्ग के लिए खोल दी गई. इसके बाद हुए चुनावों में पहले इनेलो के रामपाल माजरा और फिर निर्दलीय जयप्रकाश यहां से विधायक बने.

2014 में इनेलो ने यहां से अपने विधायक रामपाल माजरा को ही टिकट दी थी. वे 2009 में अच्छे वोट लेकर जीते थे और 2014 लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को यहां से 18 हजार वोटों की बढ़त मिली थी.

रामपाल माजरा 2000 में बनी चौटाला सरकार में मुख्य संसदीय सचिव भी रहे. ये हलका इनेलो का गढ़ है लेकिन 2014 में भाजपा की लहर और जयप्रकाश के निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में आने से वोट कई जगह बंट गए और रामपाल माजरा अपनी सीट नहीं बचा पाए. 2009 में मिले 43.18 प्रतिशत वोटों के मुकाबले रामपाल माजरा को 2014 में 27.95 प्रतिशत वोट मिल पाए.

कांग्रेस का चुनाव यहां से 2009 में तेजिंदरपाल मान ने लड़ा था. जिनका कुछ साल बाद स्वर्गवास हो गया. 2014 में टिकट के दावेदार के रूप में तेजेंद्र पाल के बेटे रणवीर मान सक्रिय हो चुके थे. हुड्डा सरकार में एक वरिष्ठ मंत्री के सहयोग से रणवीर मान टिकट लेने में कामयाब भी हो गए लेकिन कांग्रेस के खिलाफ इस क्षेत्र में विपरीत माहौल के चलते हुए मजबूती से टक्कर नहीं दे पाए. रणबीर मान चौथे नंबर पर आए और 2009 में उनके पिता को मिले 35.88 प्रतिशत वोटों के मुकाबले 15.3 प्रतिशत वोट ही ले पाए. कांग्रेस यहां इतनी कमजोर कभी नहीं रही थी और 13 में से 11 चुनाव में तो यहां जीती थी या दूसरे स्थान पर रही थी. 

वहीं जयप्रकाश तीन बार (1989 जनता दल, 1996 हविपा, 2004 कांग्रेस) हिसार से सांसद और एक बार 2000 में बरवाला से विधायक रह चुके हैं. 1990 में चंद्रशेखर सरकार में भी पेट्रोलियम और गैस विभाग के केंद्रीय राज्य मंत्री रहे. जयप्रकाश 1988 में चौधरी देवीलाल की ग्रीन बिग्रेड के प्रमुख के रूप में भी चर्चा में आए थे और तब वे उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद सीट पर वीपी सिंह के चुनाव में मदद करने गए थे. जिसमें वीपी सिंह की जीत हुई थी. इसी के इनाम के रूप में उन्हें बाद में केंद्र में मंत्री बनाया गया था. 

जयप्रकाश ने 2009 का विधानसभा चुनाव आदमपुर सीट से लड़ा था. जहां वे कुलदीप बिश्नोई से लगभग 6000 वोटों से हारे. यह भजन लाल परिवार की आदमपुर सीट पर सबसे छोटी जीत थी. हिसार सीट से 2009 लोकसभा चुनाव और 2011 के चुनाव में जयप्रकाश की कांग्रेस की टिकट पर करारी हार भी हुई और 2011 में तो जमानत तक जब्त हो गई क्योंकि वहां मुकाबला मुख्य रूप से इनेलो और हजकां के बीच ही हो गया था.

2014 में जयप्रकाश अपने गृह क्षेत्र कलायत से कांग्रेस की टिकट चाहते थे क्योंकि उन्हें अपने राजनीतिक जीवन को नई जान देनी थी. टिकट बंटवारे के आखिरी दिनों में जब यह साफ हो गया कि कांग्रेस अपना उम्मीदवार रणवीर मान को बनाने जा रही है. तो जयप्रकाश ने घोषणा से पहले ही अपने कार्यकर्ताओं को इकट्ठा कर चुनाव आजाद उम्मीदवार के रूप में लड़ने के संकेत दे दिए थे. 

जानकार कहते हैं कि टिकट न मिलने से जयप्रकाश के लिए अच्छा रहा क्योंकि टिकट कटने से उन्हें लोगों की सहानुभूति मिली और कांग्रेस से नाराजगी का भी वोट सारा इनेलो या भाजपा को जाने की बजाय बंट गया. निर्दलीय लड़ते हुए जयप्रकाश दूसरी बार विधानसभा पहुंचे. लोगों से जुड़ने के लिए नामांकन के फॉर्म में उन्होंने अपना नाम भाई जयप्रकाश लिखा और वही यही नाम इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में भी आया. 

भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर धर्मपाल शर्मा को उतारा था. जो इस हलके के रहने वाले नहीं थे. धर्मपाल शर्मा का गांव कोयल जींद जिले में पड़ता है और नरवाना विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है. वह काफी समय से कैथल में रहते थे. कांग्रेस छोड़ भाजपा में गए चौधरी बीरेंद्र सिंह के नजदीकी धर्मपाल शर्मा को पूरी उम्मीद मोदी लहर और बीरेंद्र सिंह के समर्थकों से ही थी. भाजपा ने इस हलके में कभी अपनी उपस्थिति मजबूत तरीके से दर्ज नहीं करवाई थी लेकिन धर्मपाल शर्मा को 17.3 प्रतिशत वोट मिले, जो कांग्रेस से भी ज्यादा थे. भाजपा को यहां 2009 में 1.5 प्रतिशत और 2005 में 2.80 प्रतिशत वोट मिल पाए थे. 

2014 के विधानसभा में कलायत ने किसी को दोबारा विधायक ना बनने का अपना रिकॉर्ड कायम रखा और जयप्रकाश को राजनीतिक जीवन दान दिया. रामपाल माजरा की यहां हार इनेलो के लिए चिंता का विषय रही क्योंकि यह लोकदल के सबसे मजबूत क्षेत्रों में से एक था. कांग्रेस उम्मीदवार को जनता ने पहली बार चौथे नंबर पर धकेल दिया था.

 


Conclusion:
Last Updated : Sep 7, 2019, 6:03 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.