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झज्जर के भदाना गांव में अल्बर्ट आइंस्टीन की जयंती पर बनाई गई रंगोली - अल्बर्ट आइंस्टीन रंगोली झज्जर

झज्जर के भदाना गांव में लोगों ने अल्बर्ट आइंस्टीन की जयंती पर रंगोली बनाकर उन्हें श्रद्धांजली दी. इस दौरान गांव के कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे.

albert einstein rangoli jhajjar
अल्बर्ट आइंस्टीन जयंती रंगोली झज्जर
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Published : Mar 15, 2021, 9:56 AM IST

झज्जर: भदाना गांव की चौपाल से भूगोल प्राध्यापक मुकेश शर्मा व उनकी बेटी अंशुल शर्मा ने मिलकर महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन की जयंती पर उनका एक रंगोली बनाकर उनको श्रद्धांजली दी.

मुकेश शर्मा ने बताया कि अल्बर्ट आइंस्टीन (जर्मन उच्चारण आइनश्टाइन) का जन्म, 14 मार्च 1879 को तत्कालीन जर्मन साम्राज्य के उल्म शहर में रहने वाले एक यहूदी परिवार में हुआ था. उल्म आज जर्मनी के जिस बाडेन-व्यूर्टेमबेर्ग राज्य में पड़ता है. वो उस समय जर्मन साम्राज्य की वुर्टेमबर्ग राजशाही का शहर हुआ करता था, लेकिन अल्बर्ट आइंस्टीन का बचपन उल्म के बदले बवेरिया की राजधानी म्यूनिख में बीता. परिवार उनके जन्म के एक ही वर्ष बाद म्यूनिख में रहने लगा था.

मुकेश शर्मा ने बताया कि अल्बर्ट आइंस्टीन ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’ वाली कहावत चरितार्थ करते थे. भाषाएं छोड़ कर हर विषय में, विशेषकर विज्ञान में वे बचपन से ही बहुत तेज थे. विज्ञान की किताबें पढ़-पढ़ कर स्कूली दिनों में ही अल्बर्ट आइंस्टीन विज्ञान के अच्छे-खासे ज्ञाता बन गए थे.

ये भी पढ़ें: बीजेपी विधायक घनश्याम सर्राफ ने सरदार पटेल की 145वीं जयंती पर दी श्रद्धांजलि

बता दें कि, जर्मनी के अलावा वे उसके पड़ोसी देशों स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रिया में भी वहां के नागरिक बन कर रहे . 1914 से 1932 तक बर्लिन में रहने के दौरान हिटलर की यहूदियों के प्रति घृणा को समय रहते भांप कर अल्बर्ट आइंस्टीन अमेरिका चले गये. वहीं, 18 अप्रैल 1955 के दिन उन्होंने प्रिन्स्टन के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली. इस चौपाल रंगोली में पूर्व सैनिक समेत गांव के अनेक गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे.

ये भी पढ़ें: बीजेपी लव-जिहाद जैसे तुगलकी फरमान लाकर फैला रही है प्रोपगेंडा: शैलजा

झज्जर: भदाना गांव की चौपाल से भूगोल प्राध्यापक मुकेश शर्मा व उनकी बेटी अंशुल शर्मा ने मिलकर महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन की जयंती पर उनका एक रंगोली बनाकर उनको श्रद्धांजली दी.

मुकेश शर्मा ने बताया कि अल्बर्ट आइंस्टीन (जर्मन उच्चारण आइनश्टाइन) का जन्म, 14 मार्च 1879 को तत्कालीन जर्मन साम्राज्य के उल्म शहर में रहने वाले एक यहूदी परिवार में हुआ था. उल्म आज जर्मनी के जिस बाडेन-व्यूर्टेमबेर्ग राज्य में पड़ता है. वो उस समय जर्मन साम्राज्य की वुर्टेमबर्ग राजशाही का शहर हुआ करता था, लेकिन अल्बर्ट आइंस्टीन का बचपन उल्म के बदले बवेरिया की राजधानी म्यूनिख में बीता. परिवार उनके जन्म के एक ही वर्ष बाद म्यूनिख में रहने लगा था.

मुकेश शर्मा ने बताया कि अल्बर्ट आइंस्टीन ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’ वाली कहावत चरितार्थ करते थे. भाषाएं छोड़ कर हर विषय में, विशेषकर विज्ञान में वे बचपन से ही बहुत तेज थे. विज्ञान की किताबें पढ़-पढ़ कर स्कूली दिनों में ही अल्बर्ट आइंस्टीन विज्ञान के अच्छे-खासे ज्ञाता बन गए थे.

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बता दें कि, जर्मनी के अलावा वे उसके पड़ोसी देशों स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रिया में भी वहां के नागरिक बन कर रहे . 1914 से 1932 तक बर्लिन में रहने के दौरान हिटलर की यहूदियों के प्रति घृणा को समय रहते भांप कर अल्बर्ट आइंस्टीन अमेरिका चले गये. वहीं, 18 अप्रैल 1955 के दिन उन्होंने प्रिन्स्टन के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली. इस चौपाल रंगोली में पूर्व सैनिक समेत गांव के अनेक गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे.

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