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टैक्सी ड्राइवर से ऑस्ट्रेलिया के काउंसलर तक का सफर, इस हरियाणवी ने ऐसे छुआ ये मुकाम

सुरेंद्र पाल बेहद गर्व से बताते हैं कि वो साउथ आस्ट्रेलिया में पहले हरियाणवी काउंसलर बने हैं. उन्होंने बताया कि उन्हें स्थानीय निवासियों का बेहद सहयोग मिला. जिस एरिया में उन्होंने चुनाव लड़ा वहां 90 प्रतिशत स्थानीय और 10 प्रतिशत ही दूसरे देश से आकर बसे हुए लोग हैं.

ऑस्ट्रेलिया के पहले हरियाणवी काउंसलर
ऑस्ट्रेलिया के पहले हरियाणवी काउंसलर
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Published : Jan 18, 2020, 10:23 AM IST

फतेहाबाद: ऑस्ट्रेलिया के पहले हरियाणवी काउंसलर बनने वाले सुरेंद्र पाल इन दिनों भारत आए हुए हैं. वो टोहाना के गांव कन्हड़ी में दोस्तों के साथ वक्त बिता रहे हैं. सुरेंद्र पाल काउंसलर बनने के बाद पहली बार भारत यात्रा पर हैं, इसलिए उनसे मिलने वालों का लगातार तांता लगा हुआ है.

2007 में जींद छोड़कर गए थे ऑस्ट्रेलिया
सुरेंद्र पाल ने बताया कि वो 2007 में जींद छोड़कर कुछ सपने लेकर ऑस्ट्रेलिया गए थे. उन्हें खुद इस बात का अंदाजा नहीं थी कि ऑस्ट्रेलिया में उन्हें इतना मान सम्मान मिलेगा. उन्होंने बताया कि वो पहली बार चुनाव लड़े और पहली बार में ही सफल हुए.

क्लिक कर देखें रिपोर्ट

तय किया टैक्सी ड्राइवर से काउंसलर तक का सफर
सुरेंद्र पाल जब ऑस्ट्रेलिया पहुंचे थे तो वहां उन्होंने टैक्सी ड्राइवर के तौर पर अपनी आजीविका शुरू की थी. इस दौरान टैक्सी ड्राइवर्स से जुड़ी मांगों को लेकर उन्होंने आंदोलन में भागीदारी की. जिसके बाद उन्होंने कई आंदोलनों में हिस्सा लिया और वो देखते ही देखते वहां के लोगों के बीच चर्चित नाम बन गए.

सुरेंद्र पाल को मिला स्थानीय लोगों का प्यार
सुरेंद्र पाल बेहद गर्व से बताते हैं कि वो साउथ ऑस्ट्रेलिया में पहले हरियाणवी काउंसलर बने हैं. उन्होंने बताया कि उन्हें स्थानीय निवासियों का बेहद सहयोग मिला. जिस एरिया में उन्होंने चुनाव लड़ा, वहां 90 प्रतिशत स्थानीय और 10 प्रतिशत ही दूसरे देश से आकर बसे हुए लोग हैं. बता दें कि सुरेंद्र पाल मूल रूप से हरियाणा के जींद जिले के जाजनवास के रहने वाले हैं.

ऑस्ट्रेलिया के प्रति लगाव, लेकिन नहीं भुलाया अपना गांव
सुरेंद्र पाल ने बताया कि ऑस्ट्रेलिया से उन्हें वहां की व्यवस्था के चलते बेहद लगाव हो चुका है. उन्हें वहां की स्थाई नागरिकता भी प्राप्त है, लेकिन वो अपना गांव भी नहीं भूले हैं. उन्होंने अपनी गाड़ी पर अपने गांव झाझवन के नाम की प्लेट को बकायदा रजिस्टर्ड करके लगवाई हुई है.

ये भी पढ़िए: फैमिली आईडी को लेकर हरियाणा में टॉप पर जींद, 61 हजार 504 परिवारों का बना पहचान पत्र

कैसे काम करते हैं वहां के जनप्रतिनिधि ?

सुरेंद्र पाल बताते हैं कि ऑस्ट्रेलिया में राजनीतिक जनप्रतिनिधि का वीआईपी कल्चर नहीं है. वहां पर विशेष अवसरों को छोड़कर चुने हुए जनप्रतिनिधि अपनी गाड़ी भी खुद ही ड्राइव करते हैं. उनके आने-जाने पर कोई रोड जाम नहीं होती उन से आमजन आसानी से संपर्क कर सकता है.

फतेहाबाद: ऑस्ट्रेलिया के पहले हरियाणवी काउंसलर बनने वाले सुरेंद्र पाल इन दिनों भारत आए हुए हैं. वो टोहाना के गांव कन्हड़ी में दोस्तों के साथ वक्त बिता रहे हैं. सुरेंद्र पाल काउंसलर बनने के बाद पहली बार भारत यात्रा पर हैं, इसलिए उनसे मिलने वालों का लगातार तांता लगा हुआ है.

2007 में जींद छोड़कर गए थे ऑस्ट्रेलिया
सुरेंद्र पाल ने बताया कि वो 2007 में जींद छोड़कर कुछ सपने लेकर ऑस्ट्रेलिया गए थे. उन्हें खुद इस बात का अंदाजा नहीं थी कि ऑस्ट्रेलिया में उन्हें इतना मान सम्मान मिलेगा. उन्होंने बताया कि वो पहली बार चुनाव लड़े और पहली बार में ही सफल हुए.

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तय किया टैक्सी ड्राइवर से काउंसलर तक का सफर
सुरेंद्र पाल जब ऑस्ट्रेलिया पहुंचे थे तो वहां उन्होंने टैक्सी ड्राइवर के तौर पर अपनी आजीविका शुरू की थी. इस दौरान टैक्सी ड्राइवर्स से जुड़ी मांगों को लेकर उन्होंने आंदोलन में भागीदारी की. जिसके बाद उन्होंने कई आंदोलनों में हिस्सा लिया और वो देखते ही देखते वहां के लोगों के बीच चर्चित नाम बन गए.

सुरेंद्र पाल को मिला स्थानीय लोगों का प्यार
सुरेंद्र पाल बेहद गर्व से बताते हैं कि वो साउथ ऑस्ट्रेलिया में पहले हरियाणवी काउंसलर बने हैं. उन्होंने बताया कि उन्हें स्थानीय निवासियों का बेहद सहयोग मिला. जिस एरिया में उन्होंने चुनाव लड़ा, वहां 90 प्रतिशत स्थानीय और 10 प्रतिशत ही दूसरे देश से आकर बसे हुए लोग हैं. बता दें कि सुरेंद्र पाल मूल रूप से हरियाणा के जींद जिले के जाजनवास के रहने वाले हैं.

ऑस्ट्रेलिया के प्रति लगाव, लेकिन नहीं भुलाया अपना गांव
सुरेंद्र पाल ने बताया कि ऑस्ट्रेलिया से उन्हें वहां की व्यवस्था के चलते बेहद लगाव हो चुका है. उन्हें वहां की स्थाई नागरिकता भी प्राप्त है, लेकिन वो अपना गांव भी नहीं भूले हैं. उन्होंने अपनी गाड़ी पर अपने गांव झाझवन के नाम की प्लेट को बकायदा रजिस्टर्ड करके लगवाई हुई है.

ये भी पढ़िए: फैमिली आईडी को लेकर हरियाणा में टॉप पर जींद, 61 हजार 504 परिवारों का बना पहचान पत्र

कैसे काम करते हैं वहां के जनप्रतिनिधि ?

सुरेंद्र पाल बताते हैं कि ऑस्ट्रेलिया में राजनीतिक जनप्रतिनिधि का वीआईपी कल्चर नहीं है. वहां पर विशेष अवसरों को छोड़कर चुने हुए जनप्रतिनिधि अपनी गाड़ी भी खुद ही ड्राइव करते हैं. उनके आने-जाने पर कोई रोड जाम नहीं होती उन से आमजन आसानी से संपर्क कर सकता है.

Intro:ऑस्ट्रेलिया में पहले हरियाणवी काउंसलर बनने का गौरव प्राप्त करने वाले सुरेंद्र पाल इन दिनों भारत देश में आए हुए हैं यहां वह अपने मित्रों से लगातार मिल रही हैं वह अपना अनुभव भी साझा करते हैं इसी दौरान वह टोहाना के गांव कन्हडी में अपने मित्र नरेश नैन के नसीब फार्म हाउस पर पहुंचे यहां पहुंचने पर नरेश नैन ने उनका जोरदार स्वागत किया।
Body:ऑस्ट्रेलिया में काउंसलेट का चुनाव जीतने के बाद यह सुरेंद्र पाल की पहली भारत यात्रा है इसलिए उनसे मिलने वालों का लगातार तांता लगा हुआ है प्रतिदिन वह प्रदेश में अलग-अलग जगह जाकर अपने मित्रों से मिल रहे हैं। सुरेंद्र पाल बताते हैं कि वह 2007 में अपना गांव झाझवन जिला जींद छोड़कर कुछ सपनों में उम्मीदों के साथ एक खाली सूटकेस लेकर ऑस्ट्रेलिया गए थे उन्हें भी नहीं हुई थी कि उन्हें ऑस्ट्रेलिया इतना मान सम्मान है प्यार देगा आज उनके पास ढेर सारी उम्मीदें हैं वह भविष्य के सपने।
साउथ आस्ट्रेलिया में बने हरियाणवी काउंसलर -
सुरेन्द पाल बेहद गर्व से बताते हैं कि वो साउथ आस्ट्रेलिया में पहले हरियाणवी काउंसलर बने हैं। वो बताते हैं कि वो पहली बार चुनाव लड़े व पहली बार मे ही सफल हुए। उन्हें स्थानीय निवासियों का बेहद सहयोग मिला। जिस एरिया में उन्होंने चुनाव लड़ा वहा 90 प्रतिशत स्थानीय व 10 प्रतिशत ही दूसरे देश से आकर बसे हुए लोग हैं। सुरेंद्र पाल मूल रूप से हरियाणा के जींद जिले के जाजनवास के रहने वाले हैं। अबकी बार वो लगभग चार साल बाद भारत पहुचे हैं।
मूल रूप से विदेशी क्या कोई परेशानी आई -
इस प्रश्न के जवाब में सुरेंद्र पाल बताते हैं कि उन्हें किसी तरह का कोई भेदभाव नही किया गया बल्कि उन्हें स्थानीय लोगो सहयोग व वोट दिए। पाकिस्तानी भाइयो ने भी वोट दिए। सबका सहयोग रहा। यहा की तरह नहीं की किसी दूसरे राज्य से आकर कोई गांव में सरपंच न बन पाए ऐसा वहां नहीं है। सब इंसानियत की तरह एक दूसरे की मदद करते हैं। वहा किसी तरह का काले गोरे का भेदभाव नहीं है। बेहद अच्छा देश है। किसी मे किसी तरह की योग्यता है तो उसे कोई नहीं रोक सकता।
आस्ट्रेलिया के प्रति लगाव पर नहीं भुलाया अपना गांव -
सुरेंद्र पाल बताते हैं कि ऑस्ट्रेलिया से उन्हें वहा की व्यवस्था के चलते बेहद लगाव हो चुका है उन्हें वहा की स्थाई नागरिकता भी प्राप्त है। पर वह अपना गांव भी नहीं भूले उन्होंने अपनी गाड़ी पर अपने गांव गांव झाझवन जिला जीद के नाम की प्लेट को बकायदा रजिस्टर्ड करके लगवाई हुई है।(इसकी फोटो भेजी गई है)
कैसे काम करते हैं वहां के जनप्रतिनिधि -
सुरेंद्र पाल बताते हैं कि ऑस्ट्रेलिया में राजनीतिक जनप्रतिनिधि का वीआईपी कल्चर नहीं है वहां पर विशेष अवसरों को छोड़कर चुने हुए जनप्रतिनिधि अपनी गाड़ी भी खुद ही ड्राइव करते हैं । उनके आने-जाने पर कोई रोड जाम नहीं होते उन से आमजन आसानी से संपर्क कर सकता है।
कैसे काम करती है वहां की काउंसिल -
ऑस्ट्रेलिया की काउंसिल में 2 हफ्ते के बाद एक बैठक जरूर होती है जिसमें वहां के निर्धारित क्षेत्र के विकास को लेकर योजनाएं बनाकर लागू की जाती है काउंसलर को उसके कार्यकाल के दौरान वेतन व उसके बाद पेंशन का भी प्रावधान है।
महिला सुरक्षा को लेकर समाज संवेदनशील -
सुंदर पाल बताते हैं कि ऑस्ट्रेलिया की उनके काउंसिल क्षेत्र में रात को 2 बजे भी कोई लड़की अकेली जंगल मे है तो यह नहीं हो सकता कि कोई बिना उसकी इजाजत के उसे टच कर दे । महिला स्वतंत्र रूप से घूम सकती है उसके साथ किसी भी तरह के अभद्र व्यवहार नहीं हो सकता इसको लेकर वहां का समाज मैं पुलिस बेहद संवेदनशील है। इस मामले में क्राइम न के बराबर है।
ऑस्ट्रेलिया में टैक्सी ड्राइवर से काउंसलर तक का सफर-
सुरेंद्र पाल भारत मे शिक्षण का कार्य करते थे। पर जब भारत से ऑस्ट्रेलिया पहुंचे तो वहां उन्होंने टैक्सी ड्राइवर के तौर पर अपनी आजीविका शुरू की। इस दौरान टैक्सी ड्राइवर से संबंधित मांगों को लेकर उन्होंने आंदोलन में भागीदारी की जिनकी चर्चा वहां के मीडिया में भी बनी। सुरेंद्र पाल के मित्रों न्यू नहीं आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया तो सुरेंद्र पाल ने खुद को काउंसिल के चुनाव के लिए तैयार करना शुरू कर दिया वह टैक्सी चलाते साथ में अपने कस्टमर के साथ अपनी काउंसिल के चुनाव के बारे में चर्चा भी करते। जो स्थानीय नागरिक उनके प्रति रुचि दिखाते सुरेंद्र पाल उनका नाम पता अपनी डायरी में नोट कर लेते हैं इसी तरह से उनकी काउंसलर के लिए तैयारियां चलती रही। सुरेंद्र पाल याद करते हुए बताते हैं कि जब वह चुनाव के प्रचार के लिए लोगों के बीच जा रहे थे तो बहुत से लोग मिले जिन्होंने उन्हें कार ड्राइविंग के दौरान उनका साथ देने की बात कही थी वह उन्होंने चुनाव के वक्त पर उनका साथ दिया। अभी भी जब भी मौका मिलता हैं टैक्सी चलाने का काम करते हैं।
सुरेंद्र पाल वहाँ का चर्चित चेहरा -
काउंसलर सुरेंद्र पाल की वहां के एमपी की तारीफ करते हैं चुनाव जीतने में वह उनका मार्गदर्शन करने में वहां के लगातार चार बार एमपी रहे व्यक्ति ने भी बेहद क्यों किया वही उनके काउंसलर बनने पर उनको बधाई देने वालों में वहां के मेंबर ऑफ पार्लिमेंट ने भी अहम भूमिका निभाई सुरेंद्र पाल ने वहां पर जाकर अपनी भारतीय संस्कृति को नहीं छोड़ा। उनके द्वारा होली का त्यौहार हर्षोल्लास से मनाया जिसमें वहां के एमएलए वह एमपी ने भागीदारी कर जश्न मनाया सुरेंद्र पाल वहां के टैक्सी ड्राइवरों के आंदोलन को नेतृत्व देने वाला मुख्य चेहरा रहे हैं वह लगातार न्यूज़ चैनलों में उनकी प्रतिक्रिया आती रही है। (वहां की विडियों न्युज फुटेज व अन्य भेजी जा रही है)
भावनात्मक जनसंपर्क अभियान ने सुरेंद्र पाल को बनाया विजेता -
सुरेंद्र पाल चुनाव प्रचार के दौरान अपनी पत्नी ने अपने बेटे को साथ लेकर जाते हैं जिसका प्रभाव खासतौर पर वहां के बुजुर्गों पर पड़ा। सुरेंद्र पाल की एक सही तस्वीर वहां के स्थानीय निवासियों में मन में रच बस गई की सुरेंद्र पाल सामाजिक में परिवारिक व्यक्ति हैं जो समाज सेवा को बेहतर ढंग से कर सकते हैं यही बात उनकी जीत में महत्वपूर्ण रही।
भारतीय राजनीतिक जनप्रतिनिधियों से अपील
सुंदर पाल ने बताया की जनता ने उम्मीद से आप को चुना है आप देश हित के काम करो, समाजहित के काम करो न कि खुद के स्वार्थ के। लोगो ने विश्वास किया है उनका विश्वाश न तोड़ो।
यहाँ पर राजनीति बिजनैस हैं वहाँ समाजसेवा हैं -
वहां राजनीति साफ-सुथरी है किसी को समाज सेवा करनी है तो राजनीति में आते हैं कार्यकर्ता की तरह काम करते हैं। यहा जैसा नहीं कि बस एक बार मौका मिल जाए, यहाँ लोग पर्सनल कामो के लिए दवाब भी बनाते हैं। यहाँ गाडिय़ां का काफिला रहता है वहा ऐसा कुछ नहीं है।Conclusion:बाईट 1, 2 - सुरेन्द्र पाल कांउसलर
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