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इन गांवों की हालत के सामने विकास के दावे 'पानी-पानी', देखिए ईटीवी की ग्राउंड रिपोर्ट - water crises

ईटीवी भारत हरियाणा की टीम को महिलाओं ने बताया कि करीब 10 गांवों की महिलाएं रोजाना करीब 5 से 6 बार इस हैंडपंप पर आकर पानी लेकर जाती हैं. जिनके पास साधन नहीं है वो 3 से 4 किलोमीटर सिर पर पानी ढो कर जाते हैं और जिनके पास साधन है वो साइकिल, मोटरसाइकिल से पानी लेकर जाते हैं.

इन गांवों की हालत के सामने विकास के दावे 'पानी-पानी', देखिए ईटीवी की ग्राउंड रिपोर्ट
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Published : May 27, 2019, 6:44 PM IST

फरीदाबाद: दिल्ली से सटे फरीदाबाद जिले के करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर बसे गांव का मंगोरका, भंगुरी, ममोलाका समेत दर्जनों अन्य गांवों को खारे पानी की समस्या से दो चार होना पड़ रहा है. वो भी आज से नहीं करीब एक दशक से लोगों को मीठा पानी नसीब नहीं हो रहा है.

फरीदाबाद के मंगोरका, भंगुरी, ममोलाका के ग्रामीणों ने कैमरे के सामने बताई अपनी सबसे बड़ी समस्या, देखिए ईटीवी की ग्राउंड रिपोर्ट

'प्यास बुझाने जाना पड़ता है 4 किलोमीटर दूर'
इन गांवों में ना तो वाटर सप्लाई का पानी आता है ना ही अन्य प्रकार की कोई पीने के पानी की लाइन गांव में बिछाई गई है. गांव से बाहर तकरीबन 3 से 4 किलोमीटर की दूरी पर एक हैंड पंप लगा हुआ है. जिस से निकलने वाला पानी मीठा होता है इस हैंडपंप के अलावा एक और हैंडपंप गांव के बाहर है. उससे निकलने वाला पानी भी मीठा होता है. इन गांवों के लोग इन दो हैंडपंप के सहारे पीने के पानी की आपूर्ति कर रहे हैं.

'रैनीवाल योजना का भी नहीं मिला लाभ'
ग्रामीणों का कहना है कि सरकार ने कभी उनकी समस्या का हल करने के बारे में नहीं सोचा. ग्रामीणों ने बताया कि कहने को तो हथीन मेवात के लिए रैनीवेल योजना है, लेकिन उस योजना का उनके गांव को कोई फायदा नहीं है गांव मंगोर की रहने वाली एक महिला ने बताया कि मीठा पानी नहीं होने की वजह से उनको दिन भर पानी ढ़ोना पड़ता है. कई बार बच्चे भी पानी का बंदोबस्त करने की जुगत में स्कूल नहीं जाते.

दर्जनों गांवों के लिए एक हैंडपंप ही है सहारा!
उन्होंने कहा कि गांव में कोई वाटर सप्लाई का पानी नहीं आता जिन लोगों के पास पैसे हैं वो लोग टैंकर से पानी मंगा कर पीते हैं, लेकिन गरीब लोगों के पास टैंकर की भी पैसे नहीं है. उनके लिए तो यह दो हैंडपंप ही जीवन है. उन्होंने कहा कि ग्रामीण इस मामले को लेकर कई बार सरकार और प्रशासन के सामने गए, लेकिन ना तो सरकार ने उनकी सुनी ना ही प्रशासन ने उनकी सुनी नेता लोग वोट मांगने के लिए जरूर गांव में आते हैं. लेकिन आज तक उनकी पानी की समस्या वह कोई हल नहीं कर पाया है.

फरीदाबाद: दिल्ली से सटे फरीदाबाद जिले के करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर बसे गांव का मंगोरका, भंगुरी, ममोलाका समेत दर्जनों अन्य गांवों को खारे पानी की समस्या से दो चार होना पड़ रहा है. वो भी आज से नहीं करीब एक दशक से लोगों को मीठा पानी नसीब नहीं हो रहा है.

फरीदाबाद के मंगोरका, भंगुरी, ममोलाका के ग्रामीणों ने कैमरे के सामने बताई अपनी सबसे बड़ी समस्या, देखिए ईटीवी की ग्राउंड रिपोर्ट

'प्यास बुझाने जाना पड़ता है 4 किलोमीटर दूर'
इन गांवों में ना तो वाटर सप्लाई का पानी आता है ना ही अन्य प्रकार की कोई पीने के पानी की लाइन गांव में बिछाई गई है. गांव से बाहर तकरीबन 3 से 4 किलोमीटर की दूरी पर एक हैंड पंप लगा हुआ है. जिस से निकलने वाला पानी मीठा होता है इस हैंडपंप के अलावा एक और हैंडपंप गांव के बाहर है. उससे निकलने वाला पानी भी मीठा होता है. इन गांवों के लोग इन दो हैंडपंप के सहारे पीने के पानी की आपूर्ति कर रहे हैं.

'रैनीवाल योजना का भी नहीं मिला लाभ'
ग्रामीणों का कहना है कि सरकार ने कभी उनकी समस्या का हल करने के बारे में नहीं सोचा. ग्रामीणों ने बताया कि कहने को तो हथीन मेवात के लिए रैनीवेल योजना है, लेकिन उस योजना का उनके गांव को कोई फायदा नहीं है गांव मंगोर की रहने वाली एक महिला ने बताया कि मीठा पानी नहीं होने की वजह से उनको दिन भर पानी ढ़ोना पड़ता है. कई बार बच्चे भी पानी का बंदोबस्त करने की जुगत में स्कूल नहीं जाते.

दर्जनों गांवों के लिए एक हैंडपंप ही है सहारा!
उन्होंने कहा कि गांव में कोई वाटर सप्लाई का पानी नहीं आता जिन लोगों के पास पैसे हैं वो लोग टैंकर से पानी मंगा कर पीते हैं, लेकिन गरीब लोगों के पास टैंकर की भी पैसे नहीं है. उनके लिए तो यह दो हैंडपंप ही जीवन है. उन्होंने कहा कि ग्रामीण इस मामले को लेकर कई बार सरकार और प्रशासन के सामने गए, लेकिन ना तो सरकार ने उनकी सुनी ना ही प्रशासन ने उनकी सुनी नेता लोग वोट मांगने के लिए जरूर गांव में आते हैं. लेकिन आज तक उनकी पानी की समस्या वह कोई हल नहीं कर पाया है.

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फरीदाबाद से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर बसे गांव का मंगोरका , भंगुरी, ममोलाका सहित कई अन्य गॉंवों को खारे पानी की समस्या से पिछले लगभग 10 सालो से जूझना पड़ रहा है इन गांव का जमीन से निकलने वाला पानी खारा होता है जिससे ना तो घरेलू उपयोग में लाया जा सकता है ना ही उसको पिया जा सकता है इन गांव के लोगों के पास पीने के मीठे पानी की कोई सुविधा नहीं है इन गांव में ना तो वाटर सप्लाई का पानी आता है ना ही अन्य प्रकार की कोई पीने के पानी की लाइन गांव में बिछाई गई है गांव से बाहर तकरीबन 3 से 4 किलोमीटर की दूरी पर एक हेड पंप लगा हुआ है जिस से निकलने वाला पानी मीठा होता है इस हेडपंप के अलावा एक अन्य हेडपंप गांव के बाहर है उससे निकलने वाला पानी भी मीठा होता है इन गांव के लोग इन दो हेडपंप के सहारे पीने के पानी की आपूर्ति कर रहे हैं


Body:hr_fbd_haryana bolya program one to one 2019_7203403 ईटीवी भारत पर बातचीत करते हुए ग्रामीणों और महिलाओं ने बताया कि वह रोजाना करीब 5 से 6 बार गांव से बाहर आकर पानी लेकर जाते हैं और यह पानी हो सर पर रख कर लेकर जाती हैं उन्होंने कहा ए इस नल से आसपास के गांव के लोग भी अगर पानी भर कर जाते हैं यह नल 3 से 4 किलोमीटर की दूरी पर पड़ता है और जिनके पास साधन है वह साइकिल मोटरसाइकिल इत्यादि से पानी लेकर जाते हैं और जिनके पास साधन नहीं है वह सर पर पानी लेकर जाते हैं उन्होंने कहा के सरकार ने कभी उनकी समस्या को हल करने के बारे में नहीं सोचा ग्रामीणों ने बताया कि कहने को तो हथीन मेवात के लिए रहने वेल योजना है लेकिन उस योजना का उनके गांव को कोई फायदा नहीं है गांव मंगोर का की रहने वाली एक महिला ने बताया की मीठा पानी ना होने के कारण उनको दिन भर पानी धोना पड़ता है और कई बार बच्चे भी पानी लेने के कारण स्कूल नहीं जाते उन्होंने कहा कि गांव में कोई वाटर सप्लाई का पानी नहीं आता जिन लोगों के पास पैसे हैं वह लोग टैंकर से पानी मंगा कर पीते हैं लेकिन उन जैसे गरीब लोगों के पास टैंकर की भी पैसे नहीं है उनके लिए तो यह दो हेडपंप ही जीवन है उन्होंने कहा की ग्रामीण इस मामले को लेकर कई बार सरकार और प्रशासन के सामने गए लेकिन ना तो सरकार ने उनकी सुनी ना ही प्रशासन ने उनकी सुनी नेता लोग वोट मांगने के लिए जरूर गांव में आते हैं लेकिन आज तक उनकी पानी की समस्या वह कोई हल नहीं कर पाया है


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