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इस किले के राजा को अंग्रेजों ने चांदनी चौक पर फांसी से लटका दिया था

इस महल को बनाने में 110 साल लग गए. इस महल की दीवारों पर गजब की कलाकृतियां बनाई गई हैं. जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं. आजादी से पहले राजा नाहर सिंह के महल में कचहरी लगती थी. वहीं 1947 के बाद इस महल में सरकार की तहसील और कचहरी लगने लगी. सन 1994 तक इस महल में कचहरी लगाई गई. जिसके बाद प्रदेश सरकार ने इस महल का सौंदर्यीकरण किया.

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Published : Jun 12, 2019, 8:28 PM IST

Updated : Jun 12, 2019, 10:09 PM IST

इस किले के राजा को अंग्रेजों ने चांदनी चौक में फांसी पर लटका दिया था

फरीदाबाद: भारत में कई टूरिस्ट डेस्टिनेशन ऐसी हैं. जिनसे कोई न कोई कहानी जुड़ी है. हरियाणा में भी कई ऐसे किले हैं जिनका इतिहास अपने आप में काफी दिलचस्प है. आज हम आपको हरियाणा के ऐसे ही एक महल के बारे में बताते हैं जो कभी बल्लभगढ़ के राजा का महल हुआ करता था, लेकिन आज पहलवानी का अखाड़ा बन चुका है. राजा नाहर सिंह महल की शुरुआती हिस्सों का निर्माण राव बलराम ने शुरू कराया था. वो सन् 1739 के दौरान सत्ता में आए थे. महल को खूबसूरत बनाने के चक्कर में इसका निर्माण और तोड़फोड़ लगातार जारी रहा इसके चलते पूरा महल बनने में 110 साल लग गए.

राजा नाहर सिंह के महल में ईटीवी भारत की टीम, देखें वीडियो

अंग्रेजों ने नाहर सिंह को दी थी फांसी
1857 का विद्रोह हमारे देश के इतिहास में एक मील का पत्थर था. उस दौरान बल्लभगढ़ के छोटे राज्य के शासक राजा नाहर सिंह ने भारत के इस संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. देश की आजादी में अनगिनत वीरों ने अपना जीवन बलिदान दिया. भारतीय इतिहास में बल्लभगढ़ रियासत के आजादी पसंद राजा नाहर सिंह का नाम भी सदा अमर रहेगा. प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम जिसे 1857 की महान क्रांति के नाम से जाना जाता है. इसमें बल्लभगढ़ के राजा नाहर सिंह अग्रणी क्रांतिकारियों में थे. जिन्होंने बहादुर शाह जफर को दिल्ली का शासक स्थापित करने तथा राजधानी की सुरक्षा के लिए प्राणों की बाजी लगा दी.

राजा नाहर सिंह का जन्म 6 अप्रैल 1821 को महाराजा रामसिंह के घर हुआ 18 वर्ष की आयु में ही उनको बल्लभगढ़ रियासत का राजा बना दिया गया. वीर सपूत राजा नाहर सिंह को 9 जनवरी 1858 को लाल किले के सामने चांदनी चौक में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध विद्रोह के आरोप लगे और 36 वर्ष की उम्र में उनको फांसी पर लटका दिया गया. शहीद राजा नाहर सिंह बल्लभगढ़ स्थित ऐतिहासिक महल आज उनके बलिदान की याद दिलाता है. राजा नाहर सिंह की याद में उनके शहीदी दिवस के रूप में 9 जनवरी को विशेष समारोह का आयोजन किया जाता है.

महल में लगती थी कभी कचहरी
आजादी से पहले राजा नाहर सिंह किसी महल में कचहरी लगती थी. वहीं 1947 के बाद इस महल में सरकार की तहसील और कचहरी लगने लगी और 1994 तक इस महल में कचहरी लगाई गई जिसके बाद प्रदेश सरकार ने इस महल का सौंदर्यीकरण किया.

कभी कार्तिक मेले में लगी रहती थी धूम
1995 के दौरान प्रदेश सरकार ने यहां कार्तिक मेला लगाने की परंपरा शुरू की यह मेला 4 साल तक लगाया गया. जिसके बाद इसे बंद कर दिया गया. 2004 में इस महल को हरियाणा टूरिज्म के हवाले कर दिया गया.

अब कुश्ती का बन गया अखाड़ा
राजा नाहर सिंह के समय से ही बल्लभगढ़ में मल युद्ध और राजा बलराम के नाम पर बलदेव छठ मेले का आयोजन होता आ रहा है. मल्ल युद्ध में हिस्सा लेने के लिए आसपास के राज्यों से पहलवान जौहर दिखाने आते हैं. वहीं मल युद्ध को देखने के लिए भारी भीड़ भी जुटी है. बल्लभगढ़ का बलदेव छठ मेले का क्रेज आज भी बरकरार है और इसमें जलेबी और काला कांकर स्वाद लेना कोई दर्शक नहीं.

राजा नाहर सिंह महल का अस्तित्व आज खतरे में
तेजी से बढ़ती आबादी और चारों तरफ हो रहे कंस्ट्रक्शन ने इस महल के अस्तित्व को खतरे में लाकर खड़ा कर दिया है. 2004 में टूरिज्म विभाग द्वारा महल को लिए जाने के बाद से ही इस महल के चारों तरफ बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी हो रही हैं. इसमें हल्के ज्यादातर विश्व की खाली पड़ी भूमि अब गायब हो चुकी है क्योंकि उस जमीन पर लोगों ने अवैध कब्जे कर इमारतें खड़ी कर दी हैं आज केवल कुछ लोग जिनको इस महल के बारे में जानकारी है. वह इसको देखने के लिए आते हैं, लेकिन आधुनिकता की धूल कहीं ना कहीं इस महल की चमक को फीका कर रही है.

फरीदाबाद: भारत में कई टूरिस्ट डेस्टिनेशन ऐसी हैं. जिनसे कोई न कोई कहानी जुड़ी है. हरियाणा में भी कई ऐसे किले हैं जिनका इतिहास अपने आप में काफी दिलचस्प है. आज हम आपको हरियाणा के ऐसे ही एक महल के बारे में बताते हैं जो कभी बल्लभगढ़ के राजा का महल हुआ करता था, लेकिन आज पहलवानी का अखाड़ा बन चुका है. राजा नाहर सिंह महल की शुरुआती हिस्सों का निर्माण राव बलराम ने शुरू कराया था. वो सन् 1739 के दौरान सत्ता में आए थे. महल को खूबसूरत बनाने के चक्कर में इसका निर्माण और तोड़फोड़ लगातार जारी रहा इसके चलते पूरा महल बनने में 110 साल लग गए.

राजा नाहर सिंह के महल में ईटीवी भारत की टीम, देखें वीडियो

अंग्रेजों ने नाहर सिंह को दी थी फांसी
1857 का विद्रोह हमारे देश के इतिहास में एक मील का पत्थर था. उस दौरान बल्लभगढ़ के छोटे राज्य के शासक राजा नाहर सिंह ने भारत के इस संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. देश की आजादी में अनगिनत वीरों ने अपना जीवन बलिदान दिया. भारतीय इतिहास में बल्लभगढ़ रियासत के आजादी पसंद राजा नाहर सिंह का नाम भी सदा अमर रहेगा. प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम जिसे 1857 की महान क्रांति के नाम से जाना जाता है. इसमें बल्लभगढ़ के राजा नाहर सिंह अग्रणी क्रांतिकारियों में थे. जिन्होंने बहादुर शाह जफर को दिल्ली का शासक स्थापित करने तथा राजधानी की सुरक्षा के लिए प्राणों की बाजी लगा दी.

राजा नाहर सिंह का जन्म 6 अप्रैल 1821 को महाराजा रामसिंह के घर हुआ 18 वर्ष की आयु में ही उनको बल्लभगढ़ रियासत का राजा बना दिया गया. वीर सपूत राजा नाहर सिंह को 9 जनवरी 1858 को लाल किले के सामने चांदनी चौक में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध विद्रोह के आरोप लगे और 36 वर्ष की उम्र में उनको फांसी पर लटका दिया गया. शहीद राजा नाहर सिंह बल्लभगढ़ स्थित ऐतिहासिक महल आज उनके बलिदान की याद दिलाता है. राजा नाहर सिंह की याद में उनके शहीदी दिवस के रूप में 9 जनवरी को विशेष समारोह का आयोजन किया जाता है.

महल में लगती थी कभी कचहरी
आजादी से पहले राजा नाहर सिंह किसी महल में कचहरी लगती थी. वहीं 1947 के बाद इस महल में सरकार की तहसील और कचहरी लगने लगी और 1994 तक इस महल में कचहरी लगाई गई जिसके बाद प्रदेश सरकार ने इस महल का सौंदर्यीकरण किया.

कभी कार्तिक मेले में लगी रहती थी धूम
1995 के दौरान प्रदेश सरकार ने यहां कार्तिक मेला लगाने की परंपरा शुरू की यह मेला 4 साल तक लगाया गया. जिसके बाद इसे बंद कर दिया गया. 2004 में इस महल को हरियाणा टूरिज्म के हवाले कर दिया गया.

अब कुश्ती का बन गया अखाड़ा
राजा नाहर सिंह के समय से ही बल्लभगढ़ में मल युद्ध और राजा बलराम के नाम पर बलदेव छठ मेले का आयोजन होता आ रहा है. मल्ल युद्ध में हिस्सा लेने के लिए आसपास के राज्यों से पहलवान जौहर दिखाने आते हैं. वहीं मल युद्ध को देखने के लिए भारी भीड़ भी जुटी है. बल्लभगढ़ का बलदेव छठ मेले का क्रेज आज भी बरकरार है और इसमें जलेबी और काला कांकर स्वाद लेना कोई दर्शक नहीं.

राजा नाहर सिंह महल का अस्तित्व आज खतरे में
तेजी से बढ़ती आबादी और चारों तरफ हो रहे कंस्ट्रक्शन ने इस महल के अस्तित्व को खतरे में लाकर खड़ा कर दिया है. 2004 में टूरिज्म विभाग द्वारा महल को लिए जाने के बाद से ही इस महल के चारों तरफ बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी हो रही हैं. इसमें हल्के ज्यादातर विश्व की खाली पड़ी भूमि अब गायब हो चुकी है क्योंकि उस जमीन पर लोगों ने अवैध कब्जे कर इमारतें खड़ी कर दी हैं आज केवल कुछ लोग जिनको इस महल के बारे में जानकारी है. वह इसको देखने के लिए आते हैं, लेकिन आधुनिकता की धूल कहीं ना कहीं इस महल की चमक को फीका कर रही है.

Intro:भारत में कई टूरिस्ट डेस्टिनेशन ऐसी हैं जिनसे कोई न कोई कहानी जुडी है जैसे भारत में ऐसे कई चाहे किले हैं जिने यूजियम या होटल में तब्दील कर दिया गया है

चलिए आज हम आपको हरियाणा के ऐसे ही एक महल के बारे में बताते हैं जो कभी बल्लभगढ़ के राजा का महल हुआ कथा था लेकिन आज पहलवानी का अखाड़ा वन चुका है कहां जाता है कि राजा बल्लू सिंह की नगरी ballabgarh मैं बने नाहर महल को बल्लभगढ़ का महल भी कहा जाता है

राजा नाहर सिंह महल की शुरुआत हिस सों का निर्माण राव बलराम ने शुरू कराया था जो 1739 के दौरान सत्ता में आए थे खूबसूरत बनाने के चक्कर में इसका निर्माण में और तोड़फोड़ लगातार जारी रहा इसके चलते पूरा महल बनने में 110 साल लग गए नाहर सिंह महल की दीवारें ड्रम और तुरहीयो की प्रतिध्वनि के साथ आज भी कंपन करती हैं

आजादी में बना खास
18 सो 57 का विद्रोह हमारे देश के इतिहास में एक मील का पत्थर था उस दौरान बल्लभगढ़ के छोटे राज्य के शासक राजा नाहर सिंह ने भारत के इस संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी देश की आजादी में अनगिनत वीरों ने अपना जीवन बलिदान दिया भारतीय इतिहास में जिन शहीदों का नाम अंकित है उनमें बल्लमगढ़ रियासत के आजादी के मतवाले राजा नाहर सिंह का नाम भी हरियाणा के इतिहास में सदा अमर रहेगा प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम जिसे 1857 की महान क्रांति के नाम से जाना जाता है इसमें बल्लमगढ़ के राजा नाहर सिंह अग्रणी क्रांतिकारियों में थे जिन्होंने बहादुर शाह जफर को दिल्ली का शासक स्थापित करने तथा राजधानी की सुरक्षा के लिए प्राणों की बाजी लगा दी वीर सपूत राजा नाहर सिंह को 9 जनवरी 1858 को लाल किले के सामने चांदनी चौक में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध विद्रोह के आरोप में फांसी पर लटकाए गया राजा नाहर सिंह के संघर्ष की कहानी खून और आंखों की है राजा नाहर सिंह का जन्म 6 अप्रैल 1821 को महाराजा रामसिंह के घर हुआ 18 वर्ष की आयु में ही उनको बल्लभगढ़ रियासत का राजा बना दिया गया और 36 वर्ष की उम्र में उनको फांसी पर लटका दिया गया शहीद राजा नाहर सिंह बल्लभगढ़ स्थित ऐतिहासिक महल आज वीर आजा वे उनके वंशजों की याद दिलाता है राजा नाहर सिंह की याद में उनके शहीदी दिवस के रूप में 9 जनवरी को विशेष समारोह का आयोजन किया जाता है

महल में लगती थी कभी कचहरी
आजादी से पहले राजा नाहर सिंह किसी महल में कचहरी लगती थी वहीं 1947 के बाद इस महल में सरकार की तहसील व कचहरी लगने लगी और 1994 तक इस महल में कचहरी लगाई गई जिसके बाद प्रदेश सरकार ने इस महल का सौंदर्यीकरण कर दिया

कार्तिक मेले में लगी रहती है धूम
1995 के दौरान प्रदेश सरकार ने यहां कार्तिक मेला लगाने की परंपरा शुरू की यह मेला 4 साल तक लगाया गया जिसके बाद इसे बंद कर दिया गया और 2004 में इस महल को हरियाणा टूरिज्म के हवाले कर दिया गया

अब कुश्ती का बन गया अखाड़ा
राजा नाहर सिंह के समय से ही बल्लभगढ़ में मल युद्ध और राजा बलराम के नाम पर बलदेव छठ मेले का आयोजन होता आ रहा है मल्ल युद्ध में हिस्सा लेने के लिए आसपास के राज्यों से पहलवान जौहर दिखाने आते हैं वही मल युद्ध को देखने के लिए आंखों से भारी भीड़ भी जुटी है बल्लमगढ़ का बलदेव छठ मेले का क्रेज आज भी बरकरार है और इसमें जलेबी और कालाकांकर स्वाद लेना कोई दर्शक नहीं

राजा नाहर सिंह महल का अस्तित्व आज खतरे में
यूट्यूब आज भी राजा नाहर सिंह का महल लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करता है लेकिन तेजी से बढ़ती आबादी और चारों तरफ हो रहे कंस्ट्रक्शन ने इस महल के अस्तित्व को खतरे में लाकर खड़ा कर दिया है 2004 में टूरिज्म विभाग द्वारा महल को लिए जाने के बाद से ही इस महल के चारों तरफ बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी हो रही हैं इसमें हल्के ज्यादातर विश्व की खाली पड़ी भूमि अब गायब हो चुकी है क्योंकि उस जमीन पर लोगों ने अवैध कब्जे कर इमारतें खड़ी कर दी हैं आज केवल कुछ लोग जिनको इस महल के बारे में जानकारी है वह इसको देखने के लिए आते हैं लेकिन आधुनिकता की चमक नहीं कहीं ना कहीं इस महल की चमक को फीका कर दिया है


Body:hr_fbd_raja nahar singh palace special story 2019_7203403


Conclusion:hr_fbd_raja nahar singh palace special story 2019_7203403
Last Updated : Jun 12, 2019, 10:09 PM IST
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