फरीदाबाद: भारत में कई टूरिस्ट डेस्टिनेशन ऐसी हैं. जिनसे कोई न कोई कहानी जुड़ी है. हरियाणा में भी कई ऐसे किले हैं जिनका इतिहास अपने आप में काफी दिलचस्प है. आज हम आपको हरियाणा के ऐसे ही एक महल के बारे में बताते हैं जो कभी बल्लभगढ़ के राजा का महल हुआ करता था, लेकिन आज पहलवानी का अखाड़ा बन चुका है. राजा नाहर सिंह महल की शुरुआती हिस्सों का निर्माण राव बलराम ने शुरू कराया था. वो सन् 1739 के दौरान सत्ता में आए थे. महल को खूबसूरत बनाने के चक्कर में इसका निर्माण और तोड़फोड़ लगातार जारी रहा इसके चलते पूरा महल बनने में 110 साल लग गए.
अंग्रेजों ने नाहर सिंह को दी थी फांसी
1857 का विद्रोह हमारे देश के इतिहास में एक मील का पत्थर था. उस दौरान बल्लभगढ़ के छोटे राज्य के शासक राजा नाहर सिंह ने भारत के इस संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. देश की आजादी में अनगिनत वीरों ने अपना जीवन बलिदान दिया. भारतीय इतिहास में बल्लभगढ़ रियासत के आजादी पसंद राजा नाहर सिंह का नाम भी सदा अमर रहेगा. प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम जिसे 1857 की महान क्रांति के नाम से जाना जाता है. इसमें बल्लभगढ़ के राजा नाहर सिंह अग्रणी क्रांतिकारियों में थे. जिन्होंने बहादुर शाह जफर को दिल्ली का शासक स्थापित करने तथा राजधानी की सुरक्षा के लिए प्राणों की बाजी लगा दी.
राजा नाहर सिंह का जन्म 6 अप्रैल 1821 को महाराजा रामसिंह के घर हुआ 18 वर्ष की आयु में ही उनको बल्लभगढ़ रियासत का राजा बना दिया गया. वीर सपूत राजा नाहर सिंह को 9 जनवरी 1858 को लाल किले के सामने चांदनी चौक में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध विद्रोह के आरोप लगे और 36 वर्ष की उम्र में उनको फांसी पर लटका दिया गया. शहीद राजा नाहर सिंह बल्लभगढ़ स्थित ऐतिहासिक महल आज उनके बलिदान की याद दिलाता है. राजा नाहर सिंह की याद में उनके शहीदी दिवस के रूप में 9 जनवरी को विशेष समारोह का आयोजन किया जाता है.
महल में लगती थी कभी कचहरी
आजादी से पहले राजा नाहर सिंह किसी महल में कचहरी लगती थी. वहीं 1947 के बाद इस महल में सरकार की तहसील और कचहरी लगने लगी और 1994 तक इस महल में कचहरी लगाई गई जिसके बाद प्रदेश सरकार ने इस महल का सौंदर्यीकरण किया.
कभी कार्तिक मेले में लगी रहती थी धूम
1995 के दौरान प्रदेश सरकार ने यहां कार्तिक मेला लगाने की परंपरा शुरू की यह मेला 4 साल तक लगाया गया. जिसके बाद इसे बंद कर दिया गया. 2004 में इस महल को हरियाणा टूरिज्म के हवाले कर दिया गया.
अब कुश्ती का बन गया अखाड़ा
राजा नाहर सिंह के समय से ही बल्लभगढ़ में मल युद्ध और राजा बलराम के नाम पर बलदेव छठ मेले का आयोजन होता आ रहा है. मल्ल युद्ध में हिस्सा लेने के लिए आसपास के राज्यों से पहलवान जौहर दिखाने आते हैं. वहीं मल युद्ध को देखने के लिए भारी भीड़ भी जुटी है. बल्लभगढ़ का बलदेव छठ मेले का क्रेज आज भी बरकरार है और इसमें जलेबी और काला कांकर स्वाद लेना कोई दर्शक नहीं.
राजा नाहर सिंह महल का अस्तित्व आज खतरे में
तेजी से बढ़ती आबादी और चारों तरफ हो रहे कंस्ट्रक्शन ने इस महल के अस्तित्व को खतरे में लाकर खड़ा कर दिया है. 2004 में टूरिज्म विभाग द्वारा महल को लिए जाने के बाद से ही इस महल के चारों तरफ बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी हो रही हैं. इसमें हल्के ज्यादातर विश्व की खाली पड़ी भूमि अब गायब हो चुकी है क्योंकि उस जमीन पर लोगों ने अवैध कब्जे कर इमारतें खड़ी कर दी हैं आज केवल कुछ लोग जिनको इस महल के बारे में जानकारी है. वह इसको देखने के लिए आते हैं, लेकिन आधुनिकता की धूल कहीं ना कहीं इस महल की चमक को फीका कर रही है.