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Chhath Puja 2023: नहाय-खाय के साथ शुरू हुआ चैती छठ महापर्व, बन रहे शुभ संयोग - डूबते सूर्य को अर्घ्य

चैती छठ महापर्व (Chhath Puja 2023) अब उत्तर भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मनाया जाने लगा है. पहले यह महापर्व पूर्वांचल में मनाया जाता था. लोगों में छठ महापर्व के प्रति आस्था बनती गई और लोगों ने छठ महापर्व को करना शुरू कर दिया.

Chhath Puja 2023
Chhath Puja 2023 : नहाय-खाय के साथ शुरू हुआ चैती छठ महापर्व, सूर्य उपासना का महापर्व है छठ
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Published : Mar 25, 2023, 4:36 PM IST

फरीदाबाद: छठ महापर्व को लेकर उत्तर भारत में उत्साह का माहौल है. हरियाणा में भी इस पर्व को उत्साह के साथ मनाया जाता है. कहा जाता है कि यह पर्व बहुत फलदायक होता है और जो भी छठी मैया से मांगते हैं, छठी मैया उसे जरूर पूरा करती हैं. छठ महापर्व दो तरह के होते हैं, पहला कार्तिक छठ और दूसरा चैती छठ. खास तौर पर पूर्वांचल इलाकों में मनाने वाला यह महापर्व अब पूरी दुनिया में मनाया जाने लगा है.

छठ पूजा में उगते सूर्य और डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. छठ पर्व का व्रत सबसे कठोर व्रत माना जाता है क्योंकि 3 दिन तक छठ व्रत करने वाली महिलाएं ना पानी पीती हैं और ना अन्न ग्रहण करती हैं. यानी यह व्रत निर्जला किया जाता है. चैती छठ महापर्व की शुरुआत चैत्र शुक्ल चतुर्थी के शुभ तिथि को नहाए खाए से शुरू होती है. छठ व्रत करने वाली महिलाएं शाम को नहाकर (नहाए खाए) पूजा करती हैं.

पढ़ें : Ganesh Chaturthi 2023: आज विनायक चतुर्थी पर भूलकर ना करें ये काम, जानिए शुभ योग और पूजा की खास विधि

छठ महापर्व का संकल्प: महिलाएं स्नान करके कच्चा चावल, कद्दू की सब्जी, चने की दाल, आदि ग्रहण करके छठ महापर्व का संकल्प लेती है. इसके बाद अगले दिन से व्रत शुरु कर देती हैं. इसके अगले दिन शाम को डूबते हुए सूर्य को पानी में खड़े होकर (अर्घ्य) पूजा करती हैं और फिर अगले दिन सुबह पानी में खड़े होकर सूर्य देवता को अर्घ्य देती हैं और इसी के साथ छठ महापर्व का समापन भी होता है. आपको बता दें कि आज से यानी 25 मार्च को नहाए खाए हैं. कल यानी 26 मार्च को महिलाएं व्रत रखेंगी और 27 और 28 मार्च को यह महापर्व मनाया जाएगा.

चैत्र छठ महापर्व का महत्व: छठ महापर्व का व्रत सबसे कठोर माना जाता है. मान्यताओं के अनुसार जो इस पूजा का व्रत करते हैं. उनकी सारी समस्याएं दूर हो जाती हैं. इस बार का चैती छठ विशेष इसलिए भी है क्योंकि नवरात्रि के छठे दिन यह महापर्व मनाया जाएगा. इसी दिन मां कात्यायनी की भी पूजा की जाती है, जबकि नहाए खाए की बात करें तो उस दिन कुष्मांडा माता की पूजा की जाती है.

पढ़ें : सीएम का अधिकारियों को निर्देश, लोगों से सीधे जुड़ने के लिए 2 घंटे रोज लगाएं जनता दरबार, करें जिलों का दौरा

वहीं खरना के दिन माता स्कंद की पूजा होती है. इसलिए जो भी श्रद्धालु छठ का व्रत रखते हैं. उनको माता स्कंदमाता, कुसमुंडा और मां कात्यानी का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है. मान्यताओं के अनुसार जिन महिलाओं को बच्चे नहीं होते हैं. खासतौर पर वह इस पर्व को रखती हैं और सूर्य देवता की कृपा से महिलाओं को संतान की प्राप्ति होती है.

छठ महापर्व के अवसर पर बन रहे शुभ संयोग: छठ महापर्व के दौरान कृतिका और भरनी नक्षत्र का महासंयोग बन रहा है. यह दोनों नक्षत्र काफी शुभ माने जाते हैं और यही वजह है कि इन नक्षत्र के दौरान जो भी संतान पैदा होती है. वह साहसी हाती है क्योंकि कृतिका नक्षत्र कार्तिकेय देवता से जुड़ा हुआ है और कार्तिकेय देवताओं के सेनापति है. इसलिए माना जाता है इस क्षेत्र में जिन लोगों का जन्म होता है. वह काफी शक्तिशाली और बुद्धिशाली होते हैं.

फरीदाबाद: छठ महापर्व को लेकर उत्तर भारत में उत्साह का माहौल है. हरियाणा में भी इस पर्व को उत्साह के साथ मनाया जाता है. कहा जाता है कि यह पर्व बहुत फलदायक होता है और जो भी छठी मैया से मांगते हैं, छठी मैया उसे जरूर पूरा करती हैं. छठ महापर्व दो तरह के होते हैं, पहला कार्तिक छठ और दूसरा चैती छठ. खास तौर पर पूर्वांचल इलाकों में मनाने वाला यह महापर्व अब पूरी दुनिया में मनाया जाने लगा है.

छठ पूजा में उगते सूर्य और डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. छठ पर्व का व्रत सबसे कठोर व्रत माना जाता है क्योंकि 3 दिन तक छठ व्रत करने वाली महिलाएं ना पानी पीती हैं और ना अन्न ग्रहण करती हैं. यानी यह व्रत निर्जला किया जाता है. चैती छठ महापर्व की शुरुआत चैत्र शुक्ल चतुर्थी के शुभ तिथि को नहाए खाए से शुरू होती है. छठ व्रत करने वाली महिलाएं शाम को नहाकर (नहाए खाए) पूजा करती हैं.

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छठ महापर्व का संकल्प: महिलाएं स्नान करके कच्चा चावल, कद्दू की सब्जी, चने की दाल, आदि ग्रहण करके छठ महापर्व का संकल्प लेती है. इसके बाद अगले दिन से व्रत शुरु कर देती हैं. इसके अगले दिन शाम को डूबते हुए सूर्य को पानी में खड़े होकर (अर्घ्य) पूजा करती हैं और फिर अगले दिन सुबह पानी में खड़े होकर सूर्य देवता को अर्घ्य देती हैं और इसी के साथ छठ महापर्व का समापन भी होता है. आपको बता दें कि आज से यानी 25 मार्च को नहाए खाए हैं. कल यानी 26 मार्च को महिलाएं व्रत रखेंगी और 27 और 28 मार्च को यह महापर्व मनाया जाएगा.

चैत्र छठ महापर्व का महत्व: छठ महापर्व का व्रत सबसे कठोर माना जाता है. मान्यताओं के अनुसार जो इस पूजा का व्रत करते हैं. उनकी सारी समस्याएं दूर हो जाती हैं. इस बार का चैती छठ विशेष इसलिए भी है क्योंकि नवरात्रि के छठे दिन यह महापर्व मनाया जाएगा. इसी दिन मां कात्यायनी की भी पूजा की जाती है, जबकि नहाए खाए की बात करें तो उस दिन कुष्मांडा माता की पूजा की जाती है.

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वहीं खरना के दिन माता स्कंद की पूजा होती है. इसलिए जो भी श्रद्धालु छठ का व्रत रखते हैं. उनको माता स्कंदमाता, कुसमुंडा और मां कात्यानी का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है. मान्यताओं के अनुसार जिन महिलाओं को बच्चे नहीं होते हैं. खासतौर पर वह इस पर्व को रखती हैं और सूर्य देवता की कृपा से महिलाओं को संतान की प्राप्ति होती है.

छठ महापर्व के अवसर पर बन रहे शुभ संयोग: छठ महापर्व के दौरान कृतिका और भरनी नक्षत्र का महासंयोग बन रहा है. यह दोनों नक्षत्र काफी शुभ माने जाते हैं और यही वजह है कि इन नक्षत्र के दौरान जो भी संतान पैदा होती है. वह साहसी हाती है क्योंकि कृतिका नक्षत्र कार्तिकेय देवता से जुड़ा हुआ है और कार्तिकेय देवताओं के सेनापति है. इसलिए माना जाता है इस क्षेत्र में जिन लोगों का जन्म होता है. वह काफी शक्तिशाली और बुद्धिशाली होते हैं.

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