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चंडीगढ़ पीजीआई के वायरोलॉजी विभाग की दो महिला डॉक्टर को उनकी रिसर्च के लिए किया गया सम्मानित - डेंगू एक अरबोवायरल रोग

चंडीगढ़ पीजीआई (PGI Chandigarh) के वायरोलॉजी डिपार्टमेंट की दो महिला छात्रों को भारतीय वायरोलॉजिकल सोसाइटी द्वारा सम्मानित किया गया है. दोनों को बच्चों और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी एक महत्वपूर्ण रिसर्च के लिए सम्मानित किया गया है.

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चंडीगढ़ पीजीआई के वायरोलॉजी विभाग की दो महिला डॉक्टर को उनकी रिसर्च के लिए किया गया सम्मानित
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Published : Nov 9, 2022, 8:00 PM IST

चंडीगढ़: पीजीआई के वायरोलॉजी विभाग की दो महिला छात्रों ने बच्चों और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी एक महत्वपूर्ण रिसर्च लोगों के सामने लाया है. इसके लिए दोनों को श्रीनगर में हुए दो दिवसीय भारतीय वायरोलॉजिकल सोसाइटी (Indian Virological Society) ने सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार से सम्मानित किया. इस शोध में बच्चों और महिलाओं की बीमारियों से जुड़े विभागों ने उनका पूरा साथ दिया.

डॉ मीनाक्षी राणा ने बच्चों के निचले श्वसन पथ के संक्रमण वाले रोगों से अलग मानव बोका वायरस (human boca virus) उपभेदों का आनुवंशिक लक्षण वर्णन किया गया था. मानव बोका वायरस को हाल ही में बच्चों में तीव्र निचले श्वसन पथ के संक्रमण के एक वायरल रोगजनक के रूप में मान्यता दी गई है जो वायरस का पता लगाने के लिए मामलों की नियमित जांच की गारंटी देता है जो रोगी प्रबंधन के लिए उपयोगी हो सकता है.

डॉ मन्नत कांग को गर्भावस्था के दौरान डेंगू संक्रमण (dengue infection during pregnancy) के बाद प्रतिकूल मातृ, भ्रूण और नवजात परिणामों के स्पेक्ट्रम यानी प्रसवकालीन संचरण के साक्ष्य" पर उनके काम के लिए उन्हें सम्मानित किया गया है. उनके द्वारा डेंगू एक अरबोवायरल रोग (Dengue an arboviral disease) बताया गया. वहीं उनकी शोध में बताया गया डेंगू रोग की व्यापकता मानसून के बाद के मौसम के दौरान वेक्टर मच्छरों की बहुतायत से संबंधित है.

डेंगू स्व-सीमित बीमारी के लिए जाना जाता है. अक्सर डेंगू रक्तस्रावी बुखार और डेंगू शॉक सिंड्रोम जैसी जटिलताओं का कारण बनता है. इसके अलावा, गर्भवती मां के संक्रमित होने पर नवजात को डेंगू होने की संभावना हो जाती है. वहीं वर्तमान अध्ययन ने मां से बच्चे में डेंगू के संचरण के परिणामस्वरूप मातृ मृत्यु, भ्रूण मृत्यु और भ्रूण अंतर्गर्भाशयी विकास मंदता पर प्रकाश डाला. इस प्रकार डेंगू संचार के मौसम के दौरान, बुखार, म्यालगिया और जोड़ों के दर्द वाली गर्भवती मां को डेंगू के लिए या तो डेंगू एनएस 1 एंटीजन एलिसा द्वारा जांच की जानी चाहिए. बुखार के 5 दिनों के भीतर या डेंगू आईजीएम एलिसा को बाद में प्रस्तुत करता है.

डॉ कांग द्वारा गर्भवती को डेंगू होने का कारण भी बताया गया. उन्होंने कहा कि डेंगू के मच्छर का लारवा न्यूनतम तापमान में ही खत्म हो सकता है लेकिन उसके लिए भी 12 से 13 डिग्री न्यूनतम तापमान होना जरूरी है तभी डेंगू का मच्छर पूरी तरह खत्म हो पाएगा. वहीं इस समय दिसंबर महीने तक भी न्यूनतम तापमान 17 से 18 के बीच रहता है. ऐसे में डेंगू के मरीजों संख्या बढ़ती रहती है. ऐसे में इस शोध के जरिए गर्भावस्था में डेंगू (dengue in pregnancy) के हो जाने के बाद तुरंत इलाज कराना जरूरी है जिससे बच्चे के शरीर में पड़ने वाले किसी भी विकार को पैदा होने से पहले ही ठीक किया जा सके. जम्मू एंड कश्मीर में दो दिवसीय भारतीय वायरोलॉजिकल सोसायटी के 30 वें वार्षिक सह अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन जो कि 5 से 6 नवंबर के बीच कराया गया था.

चंडीगढ़: पीजीआई के वायरोलॉजी विभाग की दो महिला छात्रों ने बच्चों और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी एक महत्वपूर्ण रिसर्च लोगों के सामने लाया है. इसके लिए दोनों को श्रीनगर में हुए दो दिवसीय भारतीय वायरोलॉजिकल सोसाइटी (Indian Virological Society) ने सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार से सम्मानित किया. इस शोध में बच्चों और महिलाओं की बीमारियों से जुड़े विभागों ने उनका पूरा साथ दिया.

डॉ मीनाक्षी राणा ने बच्चों के निचले श्वसन पथ के संक्रमण वाले रोगों से अलग मानव बोका वायरस (human boca virus) उपभेदों का आनुवंशिक लक्षण वर्णन किया गया था. मानव बोका वायरस को हाल ही में बच्चों में तीव्र निचले श्वसन पथ के संक्रमण के एक वायरल रोगजनक के रूप में मान्यता दी गई है जो वायरस का पता लगाने के लिए मामलों की नियमित जांच की गारंटी देता है जो रोगी प्रबंधन के लिए उपयोगी हो सकता है.

डॉ मन्नत कांग को गर्भावस्था के दौरान डेंगू संक्रमण (dengue infection during pregnancy) के बाद प्रतिकूल मातृ, भ्रूण और नवजात परिणामों के स्पेक्ट्रम यानी प्रसवकालीन संचरण के साक्ष्य" पर उनके काम के लिए उन्हें सम्मानित किया गया है. उनके द्वारा डेंगू एक अरबोवायरल रोग (Dengue an arboviral disease) बताया गया. वहीं उनकी शोध में बताया गया डेंगू रोग की व्यापकता मानसून के बाद के मौसम के दौरान वेक्टर मच्छरों की बहुतायत से संबंधित है.

डेंगू स्व-सीमित बीमारी के लिए जाना जाता है. अक्सर डेंगू रक्तस्रावी बुखार और डेंगू शॉक सिंड्रोम जैसी जटिलताओं का कारण बनता है. इसके अलावा, गर्भवती मां के संक्रमित होने पर नवजात को डेंगू होने की संभावना हो जाती है. वहीं वर्तमान अध्ययन ने मां से बच्चे में डेंगू के संचरण के परिणामस्वरूप मातृ मृत्यु, भ्रूण मृत्यु और भ्रूण अंतर्गर्भाशयी विकास मंदता पर प्रकाश डाला. इस प्रकार डेंगू संचार के मौसम के दौरान, बुखार, म्यालगिया और जोड़ों के दर्द वाली गर्भवती मां को डेंगू के लिए या तो डेंगू एनएस 1 एंटीजन एलिसा द्वारा जांच की जानी चाहिए. बुखार के 5 दिनों के भीतर या डेंगू आईजीएम एलिसा को बाद में प्रस्तुत करता है.

डॉ कांग द्वारा गर्भवती को डेंगू होने का कारण भी बताया गया. उन्होंने कहा कि डेंगू के मच्छर का लारवा न्यूनतम तापमान में ही खत्म हो सकता है लेकिन उसके लिए भी 12 से 13 डिग्री न्यूनतम तापमान होना जरूरी है तभी डेंगू का मच्छर पूरी तरह खत्म हो पाएगा. वहीं इस समय दिसंबर महीने तक भी न्यूनतम तापमान 17 से 18 के बीच रहता है. ऐसे में डेंगू के मरीजों संख्या बढ़ती रहती है. ऐसे में इस शोध के जरिए गर्भावस्था में डेंगू (dengue in pregnancy) के हो जाने के बाद तुरंत इलाज कराना जरूरी है जिससे बच्चे के शरीर में पड़ने वाले किसी भी विकार को पैदा होने से पहले ही ठीक किया जा सके. जम्मू एंड कश्मीर में दो दिवसीय भारतीय वायरोलॉजिकल सोसायटी के 30 वें वार्षिक सह अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन जो कि 5 से 6 नवंबर के बीच कराया गया था.

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