चंडीगढ़: कोरोना वायरस से जंग और परीक्षण के मामले में भारत को बड़ी सफलता मिली है. अब देश में बड़े पैमाने पर कोरोना टेस्ट हो सकेंगे. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने एंटीबॉडी टेस्टिंग किट्स को मंज़ूरी दे दी है. इन टेस्ट किट्स को कोविड कवच एलिसा नाम दिया गया है. इनका इस्तेमाल हेल्थ मिनिस्ट्री के देशव्यापी सर्वे में होगा.
इसपर सूबे के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने कहा कि राज्य के सभी जिलों में कोविड-19 कवच एलिसा से सर्वे किया जाएगा. जिससे कि हरियाणा इस तकनीक से जांच करवाने वाले चुनिंदा राज्यों में शामिल हो जाएगा. अनिल विज ने कहा कि इस टेस्ट से कोरोना वायरस के लिए शरीर में बनने वाली एंटीबॉडी तैयार होने का पता लगेगा. इस टेस्ट के लिए की जाने वाली रक्त की जांच से व्यक्ति का कोरोना वायरस संक्रमित होने या होकर चले जाने की जानकारी भी मिलेगी.
स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि शुरुआती दौर में ये सर्वे एनसीआर हॉटस्पॉट और high-res एरिया में शुरू किया जाएगा. इसमें गुरुग्राम-फरीदाबाद, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के डॉक्टर नर्सिंग स्टाफ, पैरामेडिकल स्टाफ, पुलिस और अन्य फ्रंटलाइन वर्कर्स की रक्त जांच में प्राथमिकता दी जाएगी. हरियाणा चिकित्सा सेवा निगम के प्रबंध निदेशक डॉक्टर साकेत कुमार ने बताया कि इसके लिए लोगों के रक्त के सैंपल की जांच करने की योजना है.
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इसके प्रत्येक टेस्ट की जांच का पूरा खर्च हरियाणा सरकार वहन करेगी. डॉक्टर साकेत ने बताया कि एक टेस्ट किट आईसीएमआर नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वीरोलॉजी पुणे द्वारा विकसित की गई है. जो कि पूर्णत स्वदेशी है. इसका देश के 83 हॉटस्पॉट जिलों में प्रयोग किया गया है. इस दौरान देश के करीब 26400 से अधिक लोगों पर जांच की गई. जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं.
कैसे होगा इन किट्स का इस्तेमाल?
ICMR ने एक बयान में कहा कि कोरोना पेशेंट के रिकवर होने के बाद शरीर में कुछ एंटीबॉडीज का निर्माण होता है. उसी का पता लगाने के लिए इन किट्स का यूज किया जाएगा. देश के 69 जिलों में 24,000 लोगों की टेस्टिंग ICMR करेगा. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के अनुसार, ELISA 'बेहद सेंसिटिव और स्पेसिफिक' टेस्ट्स हैं. इन्हें रोजाना बड़ी संख्या में सैंपल्स टेस्ट करने में इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके अलावा, सर्विलांस स्टडीज या फिर ब्लड बैंक तैयार करने में भी इनका यूज हो सकता है.
नॉर्मल टेस्ट से कैसे हैं अलग?
भारत की हेल्थ अथॉरिटीज ने रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट का खूब इस्तेमाल किया है. ICMR के मुताबिक, "SARS-CoV-2 के क्लिनिकल डायग्नोसिस के लिए RT-PCR फ्रंटलाइन टेस्ट है. देश की कितनी जनसंख्या संक्रमण से प्रभावित हुई है, इसका पता लगाने के लिए एंटीबॉडी टेस्ट्स की जरूरत है. ICMR के बयान में कहा गया है कि ELISA किट्स के पहले बैच की सेंसिटिविटी 98.7 प्रतिशत रही है. एक्युरेट नेगेटिव टेस्ट रिजट्स देने में इससे कोई चूक नहीं होती.
रैपिड टेस्ट किट्स में आई थी दिक्कत
कई राज्यों में रैपिड टेस्ट किट्स इस्तेमाल करने पर कम डिटेक्शन की शिकायतें आई थीं. दिल्ली में ये किट 71 फीसदी ITPCR पॉजिटिव को पकड़ रही थी. 7 दिन के टाइम के बाद पॉजिटिव आने का चांस बढ़ रहा था. ICMR ने बताया था कि कोरोना के टेस्ट के दौरान ITPCR के पॉजिटिव सैंपल्स में ज्यादा वेरिएशन आ रही है. इसके बाद, ICMR ने इन टेस्ट किट्स का इस्तेमाल नहीं करने की सलाह दी थी. एक प्रोटोकॉल जारी कर दोहराया था कि इनका इस्तेमाल निगरानी मकसद से होना चाहिए. संक्रमण की जांच के लिए RT-PCR टेस्ट को ही जारी रखना चाहिए.