चंडीगढ़: हरियाणा में एक बार फिर से किसानों ने पराली जलाना शुरू कर दिया है. अक्तूबर के तीसरे हफ्ते में पराली जलाने के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी (Stubble burning Cases in Haryana) हुई है. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान पर्यावरण एक्सपर्ट डॉक्टर रविंदर खैवाल ने बताया कि पिछले साल से अगर इस साल की तुलना की जाए तो, पंजाब और हरियाणा में 13 अक्टूबर तक पराली जलाने के मामलों में कमी देखी गई है. 13 अक्टूबर तक हरियाणा में इन मामलों में 24 फीसदी और पंजाब में 87 फीसदी की कमी देखी गई है. जैसे ही 15 अक्टूबर आया एकदम से पराली जलाने के मामले बढ़ गए हैं.
अक्टूबर के अंतिम दिनों और नवंबर के शुरुआती दिनों में ये मामले काफी ज्यादा बढ़ जाते हैं. फिलहाल सैटेलाइट इमेजिंग के जरिए हरियाणा में करीब 550 फायर काउंट स्पॉट देखे गए हैं. आने वाले दिनों में इनकी संख्या बढ़कर 3000 से 5000 तक हो सकती है. हरियाणा पंजाब का औसत एयर क्वालिटी इंडेक्स 150 के आसपास रहता है, वहीं 15 अक्टूबर तक पराली जलने की वजह से एयर क्वालिटी इंडेक्स 300 से ऊपर पहुंच गया है. जिसे बेहद खराब माना जाता है.
साल 2020 में 15 अक्टूबर को हरियाणा में 153 जगहों पर पराली जलाने के मामले देखे गए. जिसकी संख्या 15 अक्टूबर 2021 के दिन 586 मिली. अगर पंजाब में देखा जाए तो 15 अक्टूबर 2020 के दिन पंजाब में 552 फायर काउंट देखे गए थे जबकि 15 अक्टूबर 2021 को 690 फायर काउंट देखे गए. मतलब ये कि पिछले साल के मुकाबले इस साल ज्यादा किसान पराली को जला रहे हैं.
किसान पराली ना जलाए. इसलिए हरियाणा सरकार ने कई तरह की योजनाएं चलाई हैं. मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि राज्य सरकार पराली ना जलाने वाले किसानों को 1000 रुपये प्रति एकड़ के रूप में देगी. हरियाणा सरकार किसानों को सब्सिडी पर पराली के बंडल बनाने की मशीनें भी दे रही है. सीएम ने कहा कि अब बहुत से उद्योग भी इस बार पराली खरीदने आ रहे हैं. जिन्हें पराली बेचकर किसान मुनाफा कमा सकते हैं. हरियाणा सरकार ने किसानों को पराली जलाने से रोकने और उन्हें आर्थिक मदद मुहैया करने के लिए 230 करोड़ रुपये का बजट भी रखा है.
![Stubble Burning Cases Are Increasing](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/hr-cha-01-stubble-burning-pollution-spl-7203397_19102021103912_1910f_1634620152_322.jpg)
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के मुताबिक ये राशि 50 रुपये प्रति क्विंटल और 20 क्विंटल प्रति एकड़ पराली उत्पादन को मानते हुए दी जाएगी. इस स्कीम का लाभ लेने के लिए किसानों को विभाग की आधिकारिक वेबसाइट http://agriharyana.gov.in पर रजिस्ट्रेशन करना होगा. इसके साथ हरियाणा सरकार पराली का बंडल बनाने वाली मशीन और पराली का निस्तारण करने वाले यंत्रों को अनुदान पर उपलब्ध करवा रही है. इनमें कंबाइन हार्वेस्टर के साथ सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम, रिवर्सेबल एमबी प्लफ, हैप्पी सीडर, पैडी स्ट्रा चॉपर, मल्चर, सुपर सीडर, बेलिंग मशीन, क्राप रीपर जैसी मशीनों पर सरकार अनुदान दे रही है.
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सरकार के इन कदमों के बारे में ईटीवी भारत की टीम ने कृषि विभाग की एडीशनल चीफ सेक्रेट्री डॉक्टर सुमिता मिश्रा से बात की. बातचीत में उन्होंने बताया कि सरकार ने पराली जलाने वाले किसानों को चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि अगर कोई किसान पराली गिराता हुआ पकड़ा गया तो उस पर करीब ₹5000 तक का जुर्माना लगाया जाएगा और उस पर कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है. इसके अलावा सरकार रिमोट सेंसिंग सिस्टम के जरिए प्रदेश को मॉनिटर कर रही है. अगर कोई किसान अपने खेत में पराली जला आएगा तो इस सिस्टम के माध्यम से तुरंत सरकार को इसके बारे में जानकारी मिल जाएगी.
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उन्होंने कहा कि हमने प्रदेश में 924 गांव की पहचान कर रखी है. जहां पर ज्यादा पराली जलाई जाती है. इन गांवों में हमारी ओर से जागरूकता शिविर लगाए जा रहे हैं, ताकि किसानों को पराली जलाने के नुकसान के बारे में समझाया जा सके और उन्हें ये भी बताया जा सके कि वे पराली निष्पादन किन दूसरे तरीकों से भी कर सकते हैं. जिससे उन्हें भी फायदा हो. हालांकि सरकार अपनी ओर से स्टबल बर्निंग रोकने की पूरी कोशिश कर रही है. अधिकारियों का कहना है कि वो किसानों पर कार्रवाई करने से ज्यादा उनकी सहायता और सहयोग करना चाहते हैं. इसीलिए किसानों को भी सरकार का सहयोग करना चाहिए, लेकिन सरकार की इन सब योजनाओं का धरातल पर असर होता नहीं दिख रहा.
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वहीं दूसरी तरफ किसानों का कहना है कि पराली जलाना उनका शौक नहीं है. मजबूरन उन्हें पराली को जलाना पड़ता है, क्योंकि उनके पास दूसरा विक्लप मौजूद नहीं है. हर किसान पराली जलाने वाले यंत्र की फीस नहीं दे सकता. दूसरा ये कि अभी पर्याप्त मात्रा में सरकार के पास पराली निस्तारण की मशीन नहीं है. जिसकी वजह से किसानों को अपनी बारी का लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता है, लेकिन उन्हें अगली फसल की बुआई भी वक्त रहते करनी है. इसलिए मजबूर होकर उन्हें पराली को जलाना पड़ता है. कुल मिलाकर बात ये कि जब तक किसानों को पराली निष्पादन का कोई ठोस और सस्ता विकल्प मुहैया नहीं हो जाता. तब तक इन मामलों को रोकना लगभग नामुमकिन है.