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वो CM जिसने ओपी चौटाला के खातिर इस्तीफा दे दिया और डमी सीएम के नाम से बदनाम हो गए!

बनारसी दास गुप्ता को हरियाणा के चौथे मुख्यमंत्री के तौर पर जाना जाता है. हालांकि बनारसी दास कभी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. गुप्ता को सूबे के डमी मुख्यमंत्री के नाम से भी जाना जाता हैं, लेकिन इससे ज्यादा अगर उन्हें किसी काम के लिए जाना जाता है तो वो है उनका भारत की आजादी में अहम योगदान और जींद रियासत को भारत में विलय करवाने की कोशिश के लिए.

बनारसी दास गुप्ता, पूर्व सीएम हरियाणा
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Published : Sep 30, 2019, 10:30 AM IST

चंडीगढ़: हरियाणा में एक ऐसा मुख्यमंत्री भी रहा है, जिसके बारे में आज शायद बहुत कम लोग ही जानते हैं और जो जानते हैं वो उन्हें हरियाणा के दो बार रहे मुख्यमंत्री के तौर पर कम एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, हिंदी से प्यार करने वाले और समाज सेवी के रूप में ज्यादा जानते हैं. हम बात कर रहे हैं हरियाणा के चौथे मुख्यमंत्री रहे बनारसी दास गुप्ता की. जो 1 दिसम्बर 1975 से 30 अप्रैल 1977 तक और दोबारा 22 मई 1990 से 12 जुलाई 1990 तक हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे.

पूर्व सीएम बनारसी दास गुप्ता ने एक स्वतंत्रता सेनानी होते हुए सामाजिक, राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन को अपने अंदाज में जिया. बनारसी दास गुप्ता को हिंदी से बेहद प्यार था. उनको हिन्दी भाषा के पक्षधर और यथार्थवादी आदर्श का जननायक भी माना जाता है. अब बहुत कम लोग ये बात जानते हैं कि बनारसी दास गुप्ता पत्रकार भी थे. बनारसी दास गुप्ता 'अपना देश', 'हरियाणा केसरी' और 'हरियाणा कांग्रेस पत्रिका' के संपादक भी रहे हैं.

ये पढ़ें- विधानसभा चुनाव स्पेशल: जानिए हरियाणा के पहले सीएम के बारे में जिन्हें दलबदल नेता ले डूबे!

जब जींद के राजा ने उन्हें जेल में डलवा दिया था!
बनारसी दास गुप्ता भिवानी के रहने वाले थे, लेकिन जींद रियासत को भारत में मिलाने के लिए उनका सबसे बड़ा हाथ था. इसके लिए उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा. बनारसी दास गुप्ता की गतिविधियां देखकर जींद रियासत में उन्हें साल 1941 में गिरफ्तार करके फरीदकोट जेल में बंद कर दिया था. भारत छोड़ो आंदोलन में भी बनारसी दास गुप्ता ने भाग लिया और 1942 से 1944 तक जेल में बंद रहे.

आंदोलन किया और जींद रियासत को भारत में शामिल करवा के छोड़ा
आजादी मिलने के बाद बनारसी दास ने जींद को भारत में शामिल करने के लिए जबरदस्त आंदोलन किया. बनारसी दास ने तो वहां समानांतर सरकार तक बना दी थी. ये आंदोलन तभी खत्म हुआ जब उस वक्त के गृहमंत्री सरदार पटेल ने जींद को पंजाब में सम्मिलित करने का समझौता किया. साल 1968 के मध्यावधि चुनावों में वे भिवानी विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए. 1972 में फिर से विधायक बने एवं सर्वसम्मति से विधानसभा अध्यक्ष चुने गए. वो तब बिजली एवं सिंचाई, कृषि, स्वास्थ्य आदि विभिन्न विभागों के मंत्री रहे.

ये पढ़ें- हरियाणा का वो 'विकास पुरुष' जिसके राज में प्रदेशभर के मर्द घरों में छिपे बैठे थे!

भिवानी से रह चुके तीन बार विधायक
भिवानी विधानसभा क्षेत्र से पूर्व मुख्यमंत्री बनारसी दास गुप्ता हरियाणा बनने के बाद तीन बार 1968, 1972 और 1987 में विधायक बने. साल 1975 में बनारसी दास गुप्ता को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया गया. 1987 में एक बार फिर भिवानी से विधायक बने और उप-मुख्यमंत्री चुने गए.

जब डमी मुख्यमंत्री के नाम से बदनाम हुए बनारसी दास
चौधरी देवीलाल जब केंद्र में उपप्रधानमंत्री बन गए तो उन्होंने राज्य की सत्ता अपने बेटे ओम प्रकाश चौटाला को सौंप दी. तारीख थी 2 दिसंबर 1989. लेकिन चौटाला विधायक नहीं थे. उन्होंने पिता की सीट महम से चुनाव लड़ा. चुनाव के दौरान खूब हिंसा हुई, जिसमें 8 लोगों की मौत हो गई. 8 बूथों पर दोबारा चुनाव के आदेश हुए. लेकिन फिर हिंसा हो गई और उपचुनाव रद्द हो गया. हिंसा की जांच के आदेश जारी कर दिए गए. 21 मई को फिर से उपचुनाव घोषित हुए, लेकिन एक बार फिर हिंसा हो गई.

अमीर सिंह नाम के एक निर्दलीय प्रत्याशी की हत्या के बाद उपचुनाव रद्द कर दिए गए. इल्जाम चौटाला सरकार पर लगा. इसके बाद चौटाला ने इस्तीफा दे दिया और अपने करीबी बनारसी दास गुप्ता को मुख्यमंत्री बना दिया. उन्हें उस वक्त हरियाणा में डमी मुख्यमंत्री कहा गया. कहा जाता था कि असली मुख्यमंत्री चौटाला ही थे. इसके बाद ओम प्रकाश चौटाला दरबान कलां सीट से उपचुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. उन्होंने बनारसी दास गुप्ता से इस्तीफा ले लिया और खुद मुख्यमंत्री बन गए.

ये पढ़ें- हरियाणा का वो मुख्यमंत्री जिसने प्रधानमंत्री को झुका दिया, लेकिन उसके अपने ही ले डूबे!

बनारसी दास गुप्ता को हटाकर ओम प्रकाश चौटाला भले ही मुख्यमंत्री बन गए, लेकिन उनकी आलोचना जारी रही. महम उपचुनाव में कुल 11 आम लोगों की मौत और उनकी ही पार्टी के एक बागी एमएलए की हत्या के बाद उन पर लगातार आरोप लग रहे थे. जांच आयोग भी उनके खिलाफ लगातार सबूत जुटा रहा था. इसे देखते हुए ओमप्रकाश चौटाला ने इस्तीफा दे दिया और अपनी जगह पर अपने खास सिपहसालार हुकुम सिंह को मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया.

विधानसभा के सभी काम राष्ट्रभाषा हिंदी में करने के दिए आदेश
सन् 1972 में जब श्री गुप्ता हरियाणा विधानसभा के अध्यक्ष बने तो उन्होंने विधानसभा के सभी कार्य राष्ट्रभाषा हिंदी में करने के आदेश दिए. ये पहला मौका था जब भारत की किसी विधानसभा में सभी कार्य हिंदी में करने का अध्यादेश पारित किया गया. इस आदेश के बाद बनारसी दास गुप्ता काफी चर्चित भी हुए.

चंडीगढ़: हरियाणा में एक ऐसा मुख्यमंत्री भी रहा है, जिसके बारे में आज शायद बहुत कम लोग ही जानते हैं और जो जानते हैं वो उन्हें हरियाणा के दो बार रहे मुख्यमंत्री के तौर पर कम एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, हिंदी से प्यार करने वाले और समाज सेवी के रूप में ज्यादा जानते हैं. हम बात कर रहे हैं हरियाणा के चौथे मुख्यमंत्री रहे बनारसी दास गुप्ता की. जो 1 दिसम्बर 1975 से 30 अप्रैल 1977 तक और दोबारा 22 मई 1990 से 12 जुलाई 1990 तक हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे.

पूर्व सीएम बनारसी दास गुप्ता ने एक स्वतंत्रता सेनानी होते हुए सामाजिक, राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन को अपने अंदाज में जिया. बनारसी दास गुप्ता को हिंदी से बेहद प्यार था. उनको हिन्दी भाषा के पक्षधर और यथार्थवादी आदर्श का जननायक भी माना जाता है. अब बहुत कम लोग ये बात जानते हैं कि बनारसी दास गुप्ता पत्रकार भी थे. बनारसी दास गुप्ता 'अपना देश', 'हरियाणा केसरी' और 'हरियाणा कांग्रेस पत्रिका' के संपादक भी रहे हैं.

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जब जींद के राजा ने उन्हें जेल में डलवा दिया था!
बनारसी दास गुप्ता भिवानी के रहने वाले थे, लेकिन जींद रियासत को भारत में मिलाने के लिए उनका सबसे बड़ा हाथ था. इसके लिए उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा. बनारसी दास गुप्ता की गतिविधियां देखकर जींद रियासत में उन्हें साल 1941 में गिरफ्तार करके फरीदकोट जेल में बंद कर दिया था. भारत छोड़ो आंदोलन में भी बनारसी दास गुप्ता ने भाग लिया और 1942 से 1944 तक जेल में बंद रहे.

आंदोलन किया और जींद रियासत को भारत में शामिल करवा के छोड़ा
आजादी मिलने के बाद बनारसी दास ने जींद को भारत में शामिल करने के लिए जबरदस्त आंदोलन किया. बनारसी दास ने तो वहां समानांतर सरकार तक बना दी थी. ये आंदोलन तभी खत्म हुआ जब उस वक्त के गृहमंत्री सरदार पटेल ने जींद को पंजाब में सम्मिलित करने का समझौता किया. साल 1968 के मध्यावधि चुनावों में वे भिवानी विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए. 1972 में फिर से विधायक बने एवं सर्वसम्मति से विधानसभा अध्यक्ष चुने गए. वो तब बिजली एवं सिंचाई, कृषि, स्वास्थ्य आदि विभिन्न विभागों के मंत्री रहे.

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भिवानी से रह चुके तीन बार विधायक
भिवानी विधानसभा क्षेत्र से पूर्व मुख्यमंत्री बनारसी दास गुप्ता हरियाणा बनने के बाद तीन बार 1968, 1972 और 1987 में विधायक बने. साल 1975 में बनारसी दास गुप्ता को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया गया. 1987 में एक बार फिर भिवानी से विधायक बने और उप-मुख्यमंत्री चुने गए.

जब डमी मुख्यमंत्री के नाम से बदनाम हुए बनारसी दास
चौधरी देवीलाल जब केंद्र में उपप्रधानमंत्री बन गए तो उन्होंने राज्य की सत्ता अपने बेटे ओम प्रकाश चौटाला को सौंप दी. तारीख थी 2 दिसंबर 1989. लेकिन चौटाला विधायक नहीं थे. उन्होंने पिता की सीट महम से चुनाव लड़ा. चुनाव के दौरान खूब हिंसा हुई, जिसमें 8 लोगों की मौत हो गई. 8 बूथों पर दोबारा चुनाव के आदेश हुए. लेकिन फिर हिंसा हो गई और उपचुनाव रद्द हो गया. हिंसा की जांच के आदेश जारी कर दिए गए. 21 मई को फिर से उपचुनाव घोषित हुए, लेकिन एक बार फिर हिंसा हो गई.

अमीर सिंह नाम के एक निर्दलीय प्रत्याशी की हत्या के बाद उपचुनाव रद्द कर दिए गए. इल्जाम चौटाला सरकार पर लगा. इसके बाद चौटाला ने इस्तीफा दे दिया और अपने करीबी बनारसी दास गुप्ता को मुख्यमंत्री बना दिया. उन्हें उस वक्त हरियाणा में डमी मुख्यमंत्री कहा गया. कहा जाता था कि असली मुख्यमंत्री चौटाला ही थे. इसके बाद ओम प्रकाश चौटाला दरबान कलां सीट से उपचुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. उन्होंने बनारसी दास गुप्ता से इस्तीफा ले लिया और खुद मुख्यमंत्री बन गए.

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बनारसी दास गुप्ता को हटाकर ओम प्रकाश चौटाला भले ही मुख्यमंत्री बन गए, लेकिन उनकी आलोचना जारी रही. महम उपचुनाव में कुल 11 आम लोगों की मौत और उनकी ही पार्टी के एक बागी एमएलए की हत्या के बाद उन पर लगातार आरोप लग रहे थे. जांच आयोग भी उनके खिलाफ लगातार सबूत जुटा रहा था. इसे देखते हुए ओमप्रकाश चौटाला ने इस्तीफा दे दिया और अपनी जगह पर अपने खास सिपहसालार हुकुम सिंह को मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया.

विधानसभा के सभी काम राष्ट्रभाषा हिंदी में करने के दिए आदेश
सन् 1972 में जब श्री गुप्ता हरियाणा विधानसभा के अध्यक्ष बने तो उन्होंने विधानसभा के सभी कार्य राष्ट्रभाषा हिंदी में करने के आदेश दिए. ये पहला मौका था जब भारत की किसी विधानसभा में सभी कार्य हिंदी में करने का अध्यादेश पारित किया गया. इस आदेश के बाद बनारसी दास गुप्ता काफी चर्चित भी हुए.

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story of banarasi das gupta


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