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प्रदूषण फैलाने वालों से राज्य सरकार वसूले मुआवजा: हाईकोर्ट

पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. जिसमें यह स्पष्ट कर दिया गया है कि राज्य सरकार को प्रदूषण करने वालों से वसूली करने का पूरा अधिकार है और प्रदूषण फैलाने वालो को इसकी भरपाई मुआवजे के रूप में करनी ही होगी. हालांकि मुआवजा राशि पर हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है

State government recovered compensation from polluters
State government recovered compensation from polluters
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Published : Jan 22, 2021, 2:21 PM IST

चंडीगढ़: शुक्रवार को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक प्रदूषण संबंधी याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि राज्य को पूरा अधिकार है कि वह प्रदूषण करने वालों से मुआवजा वसूल सके, क्योंकि राज्य पर्यावरण का ट्रस्टी होता है. कोर्ट ने ये फैसला ब्रेक सिस्टम निर्माता कंपनी की याचिका के संदर्भ में दिया. जिसमें यह स्पष्ट कर दिया गया है कि प्रदूषण फैलाने वालों को इसकी भरपाई मुआवजे के रूप में करनी ही होगी.

हरियाणा सरकार से हाईकोर्ट ने पूछे यह सवाल

1. प्रदूषक से कितना मुआवजा वसूलना है और क्या इसका कोई नया फार्मूला बोर्ड के पास है?

2.प्रदूषण पर जुर्माना लगाने से पहले उसे सुनवाई का मौका क्यों नहीं दिया जाता?

3. निरीक्षण के लिए समय सीमा क्यों नहीं तय की गई है?

4. क्या रोजाना के आधार पर ऑनलाइन निरीक्षण की दिशा को बढ़ाया जा सकता है?

5. किसी यूनिट को बंद करने से पहले उसे दोबारा सैंपलिंग का आखिरी मौका दिया जा सकता है?

6. मुआवजे के रूप में वसूली गई राशि को कैसे पर्यावरण के लिए उपयोग में लाया जा सकता है.

क्या है मामला.

आपको बता दें कि याचिका दाखिल करते हुए कंपनी ने कहा था कि 22 मई 2019 को हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने उनके यहां से उत्सर्जित होने वाले पानी का सैंपल लेकर लैब में भेजा था.

बोर्ड के अनुसार जो सैंपल आए वह तय मानकों के अनुरूप नहीं थे. अगले ही दिन कंपनी ने खुद सैंपल लेकर नमूनों को दूसरी लाइन भेजा तो सैंपल तय मानकों के अनुरूप आए. कंपनी ने बोर्ड से 29 मई को अनुरोध किया कि नए सिरे से सैंपल लिए जाएं लेकिन ऐसा नहीं किया गया और 24 जून 2019 को कंपनी को नोटिस भेज दिया गया.

कंपनी के बार-बार अनुरोध के बाद भी 15 नवंबर तक नमूने नहीं लिए गए. इसके बाद कंपनी को 22 मई 2019 से लेकर 15 नवंबर 2019 तक 147 दिन का समय मुआवजा भरने के लिए दिया गया.

ये भी पढ़ें-संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार का प्रस्ताव खारिज किया, दिल्ली में ट्रैक्टर परेड की इजाजत नहीं

जिसमें प्रदूषण के लिए 80 लाख 40 हजार रुपए मुआवजा की राशि भरने का आदेश दिया गया. याचीका कर्ता ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए कहा कि सरकार को बिना कानून के ऐसा मुआवजा वसूली करने का अधिकार नहीं है. साथ ही कमेटी ने 17 लाख 64 हजार मुआवजे की मांग की सिफारिश की थी.

जिसे बोर्ड द्वारा नहीं स्वीकारा गया. याचीका कर्ता ने कहा कि यह जुर्माना लगाने से पहले उसे सुनवाई का मौका भी नहीं मिला. हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य के पास अधिकार है कि वह प्रदूषण फैलाने वालो से मुआवजे की वसूली करें.

हालांकि हाईकोर्ट ने माना कि जुर्माना लगाने से पहले याचीका कर्ता को सुनवाई का मौका दिया जाना जरूरी था. हाईकोर्ट ने अब याचिका पर हरियाणा सरकार व अन्य को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने का आदेश दे दिया है. साथ ही याचीका को केवल 17 लाख 64 हजार रुपए जमा करवाने का आदेश देते हुए बाकी की राशि की वसूली पर रोक लगा दी है.

चंडीगढ़: शुक्रवार को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक प्रदूषण संबंधी याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि राज्य को पूरा अधिकार है कि वह प्रदूषण करने वालों से मुआवजा वसूल सके, क्योंकि राज्य पर्यावरण का ट्रस्टी होता है. कोर्ट ने ये फैसला ब्रेक सिस्टम निर्माता कंपनी की याचिका के संदर्भ में दिया. जिसमें यह स्पष्ट कर दिया गया है कि प्रदूषण फैलाने वालों को इसकी भरपाई मुआवजे के रूप में करनी ही होगी.

हरियाणा सरकार से हाईकोर्ट ने पूछे यह सवाल

1. प्रदूषक से कितना मुआवजा वसूलना है और क्या इसका कोई नया फार्मूला बोर्ड के पास है?

2.प्रदूषण पर जुर्माना लगाने से पहले उसे सुनवाई का मौका क्यों नहीं दिया जाता?

3. निरीक्षण के लिए समय सीमा क्यों नहीं तय की गई है?

4. क्या रोजाना के आधार पर ऑनलाइन निरीक्षण की दिशा को बढ़ाया जा सकता है?

5. किसी यूनिट को बंद करने से पहले उसे दोबारा सैंपलिंग का आखिरी मौका दिया जा सकता है?

6. मुआवजे के रूप में वसूली गई राशि को कैसे पर्यावरण के लिए उपयोग में लाया जा सकता है.

क्या है मामला.

आपको बता दें कि याचिका दाखिल करते हुए कंपनी ने कहा था कि 22 मई 2019 को हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने उनके यहां से उत्सर्जित होने वाले पानी का सैंपल लेकर लैब में भेजा था.

बोर्ड के अनुसार जो सैंपल आए वह तय मानकों के अनुरूप नहीं थे. अगले ही दिन कंपनी ने खुद सैंपल लेकर नमूनों को दूसरी लाइन भेजा तो सैंपल तय मानकों के अनुरूप आए. कंपनी ने बोर्ड से 29 मई को अनुरोध किया कि नए सिरे से सैंपल लिए जाएं लेकिन ऐसा नहीं किया गया और 24 जून 2019 को कंपनी को नोटिस भेज दिया गया.

कंपनी के बार-बार अनुरोध के बाद भी 15 नवंबर तक नमूने नहीं लिए गए. इसके बाद कंपनी को 22 मई 2019 से लेकर 15 नवंबर 2019 तक 147 दिन का समय मुआवजा भरने के लिए दिया गया.

ये भी पढ़ें-संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार का प्रस्ताव खारिज किया, दिल्ली में ट्रैक्टर परेड की इजाजत नहीं

जिसमें प्रदूषण के लिए 80 लाख 40 हजार रुपए मुआवजा की राशि भरने का आदेश दिया गया. याचीका कर्ता ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए कहा कि सरकार को बिना कानून के ऐसा मुआवजा वसूली करने का अधिकार नहीं है. साथ ही कमेटी ने 17 लाख 64 हजार मुआवजे की मांग की सिफारिश की थी.

जिसे बोर्ड द्वारा नहीं स्वीकारा गया. याचीका कर्ता ने कहा कि यह जुर्माना लगाने से पहले उसे सुनवाई का मौका भी नहीं मिला. हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य के पास अधिकार है कि वह प्रदूषण फैलाने वालो से मुआवजे की वसूली करें.

हालांकि हाईकोर्ट ने माना कि जुर्माना लगाने से पहले याचीका कर्ता को सुनवाई का मौका दिया जाना जरूरी था. हाईकोर्ट ने अब याचिका पर हरियाणा सरकार व अन्य को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने का आदेश दे दिया है. साथ ही याचीका को केवल 17 लाख 64 हजार रुपए जमा करवाने का आदेश देते हुए बाकी की राशि की वसूली पर रोक लगा दी है.

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