चंड़ीगढ़ः सड़क किनारे फेरी लगाकर अपनी आजीविका चलाने वाले रेहड़ी विक्रेताओं से आपका अक्सर सामना होता होगा. अगर नहीं हुआ तो रेहड़ीवाले की आवाज तो आपको कानों तक जरुर पहुंची होगी. अगर आप सुबह देर से उठने के आदी हो फिर तो आपको ये आवाज परेशान भी करती होगी.
खैर, मुद्दे पर आते हैं, एक अनुमान के मुताबिक देश में करीब 16 करोड़ लोग ऐसे हैं जो सीधे या परोक्ष रूप से स्ट्रीट वेंडिंग के कार्य से जुड़े हुए हैं. आत्मनिर्भरता और स्वरोजगार करने वाले ये फेरीवाले तमाम सरकारी सुविधाओं जैसे सरकारी ऋण, सुरक्षा बीमा योजनाओं आदि से भी वंचित रह जाते हैं.
बाजारों में लगने वाले जाम से निजात के नाम पर प्रशासन द्वारा अक्सर रेहड़ी वालों के व्यवसाय को उजाड़ने, सामानों की जब्ती, विक्रेताओं के साथ बदसलूकी जैसे मामले आज भी सामने आतें हैं. गैर सरकारी संस्थानों, नागरिक संगठनों व सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा रेहड़ीवालों के अधिकारों को लेकर लड़ी गई लंबी लड़ाई के बाद शहरी इलाकों के स्ट्रीट वेंडर्स के हितों की रक्षा करने के उद्देश्य से 19 फरवरी 2014 को राज्य सभा में प्रोटेक्शन ऑफ लाइवलीहुड एंड रेग्युलेशन ऑफ स्ट्रीट वेंडिंग विधेयक पारित किया गया.
क्या है स्ट्रीट वेंडिंग एक्ट
गैर सरकारी संस्थानों, नागरिक संगठनों व सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा रेहड़ीवालों के अधिकारों को लेकर लड़ी गई लंबी लड़ाई के बाद शहरी इलाकों के स्ट्रीट वेंडर्स के हितों की रक्षा करने के उद्देश्य से प्रोटेक्शन ऑफ लाइवलीहुड एंड रेग्युलेशन ऑफ स्ट्रीट वेंडिंग विधेयक पारित किया गया. ये स्ट्रीट वेंडर्स अधिनियम 6 सितंबर 2013 को लोकसभा में और 19 फरवरी 2014 को राज्य सभा में पारित किया गया था. इसमें सार्वजनिक क्षेत्रों में सड़क पर सामान बेचने वालों को विनियमित करने और उनके अधिकारों की रक्षा करना निहित है. इसे 2013 में लोकसभा में तत्कालीन केंद्रीय आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्री कुमारी शैलजा ने पेश किया था.
कैसे काम करता है स्ट्रीट वेंडर एक्ट
इसके मुताबिक प्रत्येक शहर में एक टाउन वेंडिंग कमेटी गठित होती है, जो म्युनिसिपल कमिश्नर या मुख्य कार्यपालक के अधीन होती है, यही कमेटी स्ट्रीट वेंडिंग से जुड़े सभी मुद्दों पर निर्णय लेती है. इस कमेटी में 40 प्रतिशत चुने गए सदस्य होंते है जिसमें से एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होती है. कमेटी को सभी स्ट्रीट वेंडरों के लिए पहचान पत्र जारी करना होता है.
ये भी स्पष्ट प्रावधान है कि वेंडरो की जो भी संपत्ति होगी उसको क्षति नहीं पहुंचाई जाएगी, यदि किसी जोन में उसकी कुल आबादी के 2.5 प्रतिशत से अधिक वेंडर होंगे तो उन वेंडरों को 30 दिन पूर्व नोटिस दिया जाना जरूरी होगा, तभी उन्हें दूसरे जोन में स्थानांतरित किया जा सकेगा.
चंडीगढ़ अपने स्ट्रीट वेंडर्स को रिसेट करने वाला पहला शहर
चंडीगढ़ में वेंडर्स एक्ट के तहत साल 2016 में सर्वे करवाया गया था, जिसमें 9356 वेंडर्स को लाइसेंस दिए गए थे. उस वक्त चंडीगढ़ में करीब 22,000 स्ट्रीट वेंडर्स रेहड़ीफड़ी लगा रहे थे. नवंबर 2019 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने चंडीगढ़ की कुछ जगहों को नॉन वेंडिंग जोन बनाने का आदेश दिया था. जिसके तहत यह कहा गया था कि उस जगह पर वेंडर्स को नहीं बैठाया जा सकता और जो वेंडर्स उस जगह पर बैठ रहे हैं, उन्हें दूसरी जगह पर शिफ्ट कर दिया जाए. उसके बाद दिसंबर 2019 में चंडीगढ़ प्रशासन ने नो-वेंडिंग जोन से वेंडर्स को हटाकर नई जगहों पर शिफ्ट कर दिया गया.
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इसी कड़ी में ईटीवी भारत ने ये जानने की कोशिश की कि चंड़ीगढ़ में अब ये स्ट्रीट वेंडर्स किस हालात में अपना गुजर-बसर कर रहें हैं. हमने कई स्ट्रीट वेंडर्स से बातचीत की. उनका कहना है कि प्रशासन की ओर से बनाए गए लाइसेंस और वेंडर्स को दी गई जगह में भारी अनियमितताएं बरती गई है, जिससे हजारों स्ट्रीट वेंडर्स भूखे मरने की कगार पर पहुंच गए हैं. चंडीगढ़ में मुख्य रूप से सेक्टर 17, सेक्टर 19 और सेक्टर 22 में स्ट्रीट वेंडर्स बैठते थे.
क्या कहते हैं स्ट्रीट वेंडर्स
यहां पहुंचने पर स्ट्रीट वेंडरों ने खुलकर अपनी बात हमारे सामने रखी. उनका कहना है कि नगर निगम की ओर से जो सर्वे करवाया गया था. वह एक निजी कंपनी से करवाया गया था. निजी कंपनी को नगर निगम की ओर से प्रति वेंडर करीब 300 रुपये दिए गए थे. उस निजी कंपनी ने ज्यादा पैसे कमाने के लिए उन लोगों का नाम भी सर्वे में जोड़ दिया जो वेंडर असल में थे ही नहीं. दूसरी ओर जो चंडीगढ़ में 20 साल से वेंडर्स बैठे हुए थे, उन्हें इस योजना का पूरा लाभ नहीं मिल पाया.
वेंडरों का आरोप है कि कंपनी ने सर्वे करते वक्त किसी भी वेंडर के कागजात चेक नहीं किए. मार्केट के प्रधानों से भी कोई बात नहीं की गई. कंपनी ने अपनी मर्जी से लोगों को लाइसेंस बांटे. नगर निगम ने फर्जी वैंडर्स को भीड़ भाड़ वाले बाजारों में जगह दे दी, और हम जैसे पुराने वेडर्स को ऐसी जगहों पर भेज दिया, जहां पर कोई भी ग्राहक नहीं आता है, ऐसे में हमारा सारा कामकाज ठप पड़ गया है.
रेहड़ीवालों ने चंडीगढ़ की सांसद किरण खेर पर भी आरोप लगाए कि चुनाव के वक्त किरण खेर हम सबके बीच आकर हमसे वादा करती नजर आई कि हम उन्हें वोट दें वह हमारे अच्छे दिन ले आएंगी, लेकिन हमारे तो पहले से भी बुरे दिन आ गए हैं.
क्या कहते हैं चंडीगढ़ के सीनियर डिप्टी मेयर रवि कांत शर्मा
इस बारे में हमने चंडीगढ़ के सीनियर डिप्टी मेयर रवि कांत शर्मा से भी बात की. उन्होंने साफ तौर पर माना कि वेंडर्स के सर्वे में भारी लापरवाही बरती गई है. कंपनी ने इस सर्वे को सही तरीके से पूरा नहीं किया. लाइसेंस बनाने में किसी भी नियम को नहीं माना गया. इसके अलावा वंडर्स को जो जगहें अलोट की गई है, उसमें भी लापरवाही बरती गई है.
क्या कहतें हैं चंडीगढ़ नगर निगम के कमिश्नर
जब हमने इस बारे में जब चंडीगढ़ नगर निगम के कमिश्नर से बात की तो उन्होंने कहा की स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट केंद्र सरकार की ओर से बनाया गया है और चंडीगढ़ में केंद्र सरकार के बनाए गए नियमों के तहत ही काम किया गया है.