चंडीगढ़ नगर निगम हाउस द्वारा सीवरेज उपकर को कुल पानी के बिल के मौजूदा 30 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत करने का निर्णय लेने के करीब दो महीने बाद भी शहरवासियों से अधिक सेस वसूला जा रहा है. वहीं शहरवासियों को मजबूरी में इन बिलों का भुगतान करना पड़ रहा है. जबकि विपक्षी और सत्ता पक्ष के पार्षद इस पर चिंता जताते हुए इस पर जल्द निर्णय लेने की मांग कर रहे हैं.
जानकारी के अनुसार मार्च महीने में बढ़ाए गए बिलों का विपक्षी पार्टियों आप और कांग्रेस के पार्षदों ने ही विरोध नहीं किया था, बल्कि सत्तारूढ़ भाजपा के सदस्यों ने भी शहर में पानी की बढ़ती दरों पर अपनी चिंता व्यक्त की थी. ऐसे में नगर निगम के अधिकारियों का कहना है कि इस संबंध में यूटी प्रशासन चंडीगढ़ के अंतिम निर्णय का इंतजार किया जा रहा है.
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चंडीगढ़ में सीवरेज उपकर को कम करने का निर्णय मार्च में सदन की बैठक में वार्षिक जल शुल्क में 5 प्रतिशत की बढ़ोतरी के बाद लिया गया था. सत्तारूढ़ भाजपा के पिछले पांच साल के कार्यकाल के दौरान भी, जब पार्टी को सदन में पूर्ण बहुमत प्राप्त था, सीवरेज उपकर को कम करने का मामला उठाया गया था. लेकिन जलापूर्ति खर्च का हवाला देते हुए चंडीगढ़ प्रशासन ने ऐसा नहीं किया.
कांग्रेस पार्षद गुरप्रीत गबी ने कहा कि पार्टी लाइन से ऊपर उठकर सभी पार्षदों को इस मुद्दे पर यूटी प्रशासक से संयुक्त रूप से मिलने का अनुरोध किया जा रहा है. पानी की दरें बहुत अधिक हो गई है, जिससे आम लोगों की जेब पर गहरा असर पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि चंडीगढ़ में पानी की दरें जल्द कंट्रोल में लाई जानी चाहिए. इस महीने भी कई सेक्टरों में पानी के बिल 30 फीसदी सीवरेज सेस के आधार पर मिले हैं. उन्होंने सवाल उठाया कि जब फैसले पर अमल ही नहीं हो रहा है तो एमसी हाउस में सेस कम करने की मंजूरी देने का क्या तुक है?
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लोगों की समस्याओं को देखते हुए इसे तुरंत स्वीकृत कराने के लिए प्रशासन के साथ इसका पालन करना चाहिए था. चंडीगढ़ में पानी का बिल यहां के निवासियों पर एक बड़ा बोझ बन गया है. अधिकारियों ने इस मामले पर कहा कि छह मार्च के फैसले के बाद सदन की अगली बैठक में कार्यवृत्त को मंजूरी दी गई थी. जिसके बाद मामले को मंजूरी और जवाब के लिए सचिव स्थानीय निकाय यानी गृह सचिव के पास भेजा गया. ऐसे में अब इस बारे में जल्द ही कोई निर्णय लिया जाने की उम्मीद है.