चंडीगढ़: किसी को गणित के फार्मूले परेशान करते हैं तो किसी को विज्ञान की दुनिया समझ से परे नजर आती है, कोई अंग्रेजी से परेशान है तो किसी को इतिहास पहाड़ जैसा लगता है. परीक्षाओं से पहले पाठशालाओं में कुछ इसी तरह से बच्चों के सामने सब्जेक्ट्स चुनौती बने हुए हैं. ऐसे में ईटीवी भारत हरियाणा अपने खास कार्यक्रम 'परीक्षा की पाठशाला' में निकल पड़ी है बच्चों की परीक्षा के दिनों में आने वाली परेशानियों को समझने और उनका हल निकालने के लिए.
पाठशाला में नई शुरुआत करने के साथ ही अलग-अलग विषयों से तालमेल बिठाने की बच्चों के लिए बड़ी चुनौती किसी दबाव से कम नहीं होती. बच्चों के लिए सब्जेक्ट्स किस तरह से मुसीबत बने हैं. इसको लेकर हमने जानने का प्रयास किया तो अधिकतर बच्चों ने बताया कि विज्ञान, गणित, इतिहास अंग्रेजी मुश्किलों भरे विषय नजर आते हैं. कई मुश्किल माने जाने वाले विषय तो मुश्किल से लगते हैं. मगर हिंदी भाषी क्षेत्र में रहते हुए भी हिंदी जैसे विषय बच्चों के लिए चुनौती पेश कर रहे हैं.
परीक्षा की पाठशाला के तहत बड़ी कक्षाओं से लेकर छोटी कक्षाओं तक के बच्चों से जानने का प्रयास किया तो सभी को अपने स्तर पर विषयों से तालमेल बिठाने का दबाव नजर आया. बड़ी कक्षाओं के बच्चों ने कहा कि छोटी कक्षाओं में इन विषयों का दबाव नहीं रहता था जैसे-जैसे कक्षाएं बढ़ रही हैं दबाव भी बढ़ता जा रहा है मगर छोटे कक्षाओं के बच्चों से जब बात की गई तो वह भी अपने किसी ना किसी विषय को बेहद मुश्किल बताते नजर आए.
हर बच्चा किसी ना किसी विषय को मुश्किल मानते हुए काफी दबाव महसूस करता नजर आता है. बच्चों के बस्ते किताबों के वजन से बढ़ रहे हैं, मगर इन किताबों के विषय भी बच्चों पर कई गुना मानसिक दबाव डालते नजर आ रहे हैं. हमने बच्चों से जानने का प्रयास किया तो एक भी ऐसा विद्यार्थी हमें नजर नहीं आया जिसने किसी विषय में परेशानी ना आने की बात की हो.
विज्ञान और गणित क्यों समझ नहीं आता?
लड़के हो या लड़कियां विज्ञान और गणित अधिकतर बच्चों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है, किसी के लिए गणित बेहद चुनौतीपूर्ण है तो किसी के लिए विज्ञान और कुछ तो दोनों ही विषय को काफी मुश्किलों भरा मानते हैं. बच्चे कहते हैं कि गणित या विज्ञान जैसा मुश्किल सब्जेक्ट कोई नहीं है, गणित या विज्ञान ना हो तो शायद वह परीक्षाओं में टॉप कर जाएं मगर इस मुश्किल विषय का दबाव काफी ज्यादा है.
बात केवल विज्ञान और गणित तक आकर नहीं रुकी, इसके साथ ही किसी को इतिहास में दुनिया का इतिहास मुश्किलों भरा लग रहा है तो किसी को इंग्लिश भी परेशानी पेश करती है. बच्चे मानते हैं कि इन सब्जेक्ट का दबाव परीक्षा नजदीक आते-आते कई गुना बढ़ने लगता है और मानसिक दबाव काफी ज्यादा रहने लगा है.
हमने यह भी जानने का प्रयास किया कि जिन विषयों के बारे में यह बच्चे इतना दबाव महसूस कर रहे हैं क्या शुरुआती कक्षाओं से ही इन विषयों को लेकर वह दबाव महसूस करते रहे हैं तो इस पर बच्चों का जवाब बिल्कुल अलग था. सभी ने दावे के साथ कहा कि जैसे-जैसे कक्षाएं बड़ी होती जा रही हैं इन विषयों के साथ उनकी परेशानी भी बढ़ती जा रही है. हालांकि बच्चे की मानते नजर आए कि जब वह छोटी कक्षाओं में थे तो यह सब्जेक्ट्स उन्हें बेहद आसान लगते थे मगर अब इसमें सिलेबस काफी टफ हो गया है जिसके चलते यह सब्जेक्ट्स पढ़ने में काफी परेशानी सामने आती है.
छोटे बच्चों पर ज्यादा बोझ!
बड़ी कक्षाओं के बच्चों के इस दावे के बाद हमने पांचवी कक्षा के बच्चों से जानना चाहा कि सब्जेक्ट्स को लेकर उनकी क्या राय है? तो पांचवी कक्षा के यह बच्चे भी गणित और विज्ञान जैसे विषयों को ही मुश्किल बताते नजर आए जबकि नन्हे-मुन्ने बच्चों में हिंदी तक के विषय को लेकर परेशानी भी पेश आती है. बच्चों ने कहा कि उन्हें विज्ञान बेहद मुश्किलों भरा लगता है तो किसी ने गणित को बेहद मुश्किल सब्जेक्ट करार दिया. अब यह बच्चे भी कहते नजर आए कि जब वह छोटी कक्षाओं में थे तो उनके लिए सभी सब्जेक्ट बेहद आसान थे अब मुश्किल होने लगे हैं.
एक्सपर्ट क्या कहते हैं?
वह इसको लेकर जब हमने चाइल्ड काउंसलर जतिंदर कुमार से बात की तो उन्होंने बच्चों को सब्जेक्ट के चलते आने वाली परेशानियों को लेकर अपनी राय देते हुए कहा कि किसी सब्जेक्ट को समझने में किसी बच्चे के पीछे रह जाने के पीछे कई वजह हो सकती हैं. जो सब्जेक्ट बच्चों को डराते हैं या बड़े मुश्किलों भरे लगते हैं उसमें अधिक ध्यान देने या समय देने से इस दुविधा को टाला जा सकता है.
'देख और सुनकर बच्चे जल्दी सीखते हैं'
कक्षाओं में करवाई जाने वाले काम को अगर घर पर फिर से याद किया जाए तो सब्जेक्ट को लेकर कोई उलझन नहीं रहेगी उन्होंने कहा कि साइंटिफिक है कि कोई भी चीज जिसे बच्चे सुनते हैं याद करते है उसमें से 80% बात वह अगले दिन तक भूल जाते हैं. अगर एक बार शिक्षकों की तरफ से याद करवाएं किसी भी विषय के विषय को घर पर फिर से दोहराया जाए तो उसे भूलना आसान नही रहता.
इतना ही नहीं अगर सुनने की जगह किसी भी सब्जेक्ट को या विषय को बच्चों को दिखाकर या प्रैक्टिकल तौर पर समझाया जाए तो उसे याद रखने में ज्यादा आसानी रहती है. वहीं किसी भी सब्जेक्ट में पिछड़ने पर दबाव और ज्यादा बनता है ऐसे में जरूरत रहती है कि अभिभावक भी बच्चों पर शुरुआती दिनों से ध्यान देना शुरू करें. शिक्षकों को भी बच्चों के साथ खुलकर विचार विमर्श या बच्चों को पेश आने वाली परेशानी पर बात करनी चाहिए और इसी तरह अभिभावकों को भी खुलकर बच्चों को हो रही परेशानी पर चर्चा करनी चाहिए.
'अभिभावक बच्चों की काफी मदद कर सकते हैं'
फिलहाल परीक्षाओं की पाठशाला में विषयों को लेकर विद्यार्थियों के मन में रहने वाले उलझन धीरे-धीरे किसी सब्जेक्ट को समझने में उसके डर को और बढ़ाती है. वहीं किसी विषय पर पीछे रहना बच्चे की रूचि पर भी निर्भर करता है, रुचि ना लेने पर धीरे-धीरे उस विषय को पढ़ना या सुलझाना मुश्किल नजर आने लगता है. बच्चों को पाठशाला में रहने वाला सब्जेक्ट्स को लेकर यह डर अभिभावक आपसी बातचीत से सुलझा सकते है जबकि शिक्षक विशेष ध्यान देकर इस उलझन को दूर करने में अहम भूमिका निभा सकते है.
'मैत्रीपूर्ण व्यवहार उलझन को दूर कर सकता'
बच्चों के साथ पाठशाला में शिक्षकों का मैत्रीपूर्ण व्यवहार बच्चों की काफी उलझन को दूर कर सकता है. वहीं शिक्षकों को अपने सिखाने के तरीके में बदलाव कर बच्चों का उस विषय को लेकर रुचि को बढ़ा सकती है. वहीं बच्चों की तरफ से किसी विषय में रुचि लेकर उसे पढ़ने से छोटी-छोटी उपलब्धि उस विषय के बारे में रुचि को बढ़ा सकती है, जिससे समस्या समाप्त हो सकती है और विषयों की परेशानी दूर होने से परीक्षाओं का दबाव भी समाप्त होना तय है.