चंडीगढ़: पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट से 40 साल बाद एक परिवार को न्याय मिला. सुखमिंदर सिंह को अपने बेटे की मृत्यु के बाद इंश्योरेंस का पैसा नहीं मिला था. वे लगातार कोर्ट एवं कचहरी की चक्कर काट रहे थे, लेकिन कोर्ट ने आखिरकार अपना फैसला सुना दिया है. सुखविंदर सिंह को न्याय मिल गया है. इस मामले की सुनवाई पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई.
सुखमिंदर सिंह के बेटे हरदीप सिंह की मृत्यु 40 साल पहले हो गई थी. अपनी मृत्यु से 1 साल पहले 1980 में हरदीप सिंह ने एक पॉलिसी ली थी. हरदीप सिंह की मृत्यु 1981 में हो गई. हरदीप सिंह ने अपनी पॉलिसी का प्रीमियम 6 महीने में दिया. उसके बाद अगला प्रीमियम नहीं दिया और एक साथ प्रीमियम 28 मई 1981 को दिया और 31 मई 1981 को हरदीप सिंह की मृत्यु हो गई.
हरदीप सिंह की मृत्यु के बाद उसके पिता सुखमिंदर सिंह ने इंश्योरेंस कंपनी से उसके इंश्योरेंस के पैसे मांगे तो इंश्योरेंस कंपनी ने ये दावा किया कि हरदीप सिंह की मृत्यु 28 मई 1981 को हुई है. यानी कि हरदीप सिंह ने प्रीमियम नहीं भरा जिस वजह से उसकी पॉलिसी टूट गई. जिसके बाद सुखविंदर सिंह ने फिरोजपुर की ट्रायल कोर्ट में ये केस लड़ा और जहां ट्रायल कोर्ट ने इंश्योरेंस कंपनी को 1,00,000 रुपये ब्याज और लागत के साथ याचिकाकर्ता को देने के लिए कहा गया. इस आदेश को अपीलीय कोर्ट ने बदल दिया, जिसके बाद 1990 में याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट का रुख किया.
जस्टिस मांगा की बेंच को बताया गया कि हरदीप सिंह ने पहली किश्त देने से पहले मई 1980 में एक बीमा पॉलिसी खरीदी थी, 28 नवंबर 1980 को दूसरा भुगतान करना था, पर नहीं कर पाए. जिसके बाद 28 मई 1981 को ब्याज सहित अगले किस्त का भुगतान किया, लेकिन उसके बाद 31 मई 1981 को उनकी मृत्यु हो गई. हालांकि बीमा कंपनी की ओर से सुखविंदर सिंह के दावे को अस्वीकार किया गया.
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उनका कहना था कि हरदीप सिंह की मृत्यु 28 मई 1981 से पहले हुई थी उन्होंने दावा किया कि 27 मई से 29 मई 1981 तक हरदीप सिंह की पत्नी छुट्टी पर थी और उसके बाद 30 मई से 1 जून 1981 तक के लिए भी छुट्टी के लिए आवेदन दे रखा था. जिसमें कारण पति की मृत्यु बताया गया था. जिसके बाद हाई कोर्ट ने कहा कि इस मामले में कोई भी तो सबूत नहीं है. पर इस मामले में हरदीप सिंह के डेथ सर्टिफिकेट को ही पक्का सबूत माना जा सकता है. जिसके बाद हाई कोर्ट ने सुखमिंदर सिंह सिंह के पक्ष में ये फैसला सुना दिया.