चंडीगढ़: जेबीटी भर्ती घोटाले (JBT Recruitment Scam) में सजा पूरी करने के बाद हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला (Om Prakash Chautala) तिहाड़ जेल से रिहा हो चुके हैं. ओपी चौटाला के बाहर आने के बाद हरियाणा में सियासी पारा एक बार फिर बढ़ सकता है. हालांकि, पहले से ही चौटाला पैरोल पर थे, लेकिन वो जेल के नियमों की वजह से खुलकर राजनीति में नहीं उतर पा रहे थे.
अब जब ओपी चौटाला जेल से रिहा हो चुके हैं तो अपने सबसे बुरे वक्त से गुजर रही इनेलो को फिर से संजीवनी मिलने की संभावना है. इसके साथ ही इनेलो से टूटकर अलग हुई जेजेपी के लिए भी मुश्किलें बढ़ सकती हैं, क्योंकि जेजेपी का वोट बैंक इनेलो से खिसकर ही आया है. ऐसे में अगर ओपी चौटाला एक बार फिर राजनीति में एक्टिव होते हैं तो हरियाणा में राजनीतिक हलचल जरूर बढ़ सकती हैं.
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इसके साथ ही सियासी गलियारों में चर्चाएं ये भी हैं कि ओपी चौटाला एक बार फिर चुनाव लड़ सकते हैं, लेकिन क्या 10 साल के सजायाफ्ता ओपी चौटाला 6 साल से पहले चुनाव लड़ सकते हैं? अगर हां तो वो कौन से नियम हैं जिनके तहत चुनाव लड़ा जा सकता है? ये बता रहे हैं एडवोकेट जगबीर गोयत.
दरअसल, अभी नियमों के मुताबिक भले ही ओपी चौटाला भ्रष्टाचार के आरोप में सजा पूरी कर चुके हों, लेकिन वो चुनाव लड़ने के लिए अभी भी प्रतिबंधित हैं. लोक प्रतिनिधित्व कानून की धारा 1951 (representation of the people act 1951) के मुताबिक सजा खत्म होने के बाद भी अगले 6 साल तक कोई भी आरोपी चुनाव नहीं लड़ सकता है, लेकिन चौटाला के पास सेक्शन 11 के तहत चुनाव लड़ने और प्रतिबंध को खत्म करने के लिए चुनाव आयोग को अर्जी दायर करने का विकल्प मौजूद है.
एडवोकेट जगबीर गोयत के मुताबिक सेक्शन 11 के तहत एक विकल्प ओपी चौटाला के पास रहेगा, जिसके तहत वो चुनाव आयोग को एप्लिकेशन लगाकर अपने प्रतिबंध को खत्म करने या फिर कम करने की मांग कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि इससे पहले सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (prem singh tamang) को भी चुनाव आयोग की तरफ इस तरह की राहत मिल चुकी है.
अगर चुनाव आयोग से नहीं मिली राहत?
अगर ओपी चौटाला को चुनाव आयोग से राहत नहीं मिलती है तो इसके बाद भी उनके पास दूसरा विकल्प मौजूद रहेगा. वो चुनाव आयोग की तरफ से सिक्किम के मौजूदा सीएम प्रेम सिंह तमांग के मामले को आधार बनाकर हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट का भी रुख कर सकते हैं. हालांकि माना ये जा रहा है कि ओपी चौटाला को चुनाव आयोग से ही राहत मिल सकती है.
रिहाई के बाद 6 साल तक क्यों नहीं लड़ा जा सकता चुनाव?
दरअसल, रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट 1951 की धारा 8 के तहत रिहाई के बाद भी सजायाफ्ता शख्स पर लगभग 6 साल के लिए चुनाव लड़ने का प्रतिबंध रहता है, लेकिन अब इसी कानून के तहत सेक्शन 11 के अंतर्गत प्रावधान है कि सजायाफ्ता शख्स अपने इस प्रतिबंध के समय को माफ करवाने या कम करने के लिए चुनाव आयोग के सामने अर्जी दायर कर सकता है.
ये है मौका-
इलेक्शन कमिशन ऑफ इंडिया की तरफ से 29 सितंबर 2019 को सिक्किम के मौजूदा मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग के मामले में फैसला दिया जा चुका है. तमांग के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले थे और वो इसके लिए सुप्रीम कोर्ट तक गए थे. तमांग 2018 को अपनी सजा पूरी करने के बाद 25 मई 2019 को सिक्किम के मुख्यमंत्री बने. उनकी तरफ से जुलाई 2019 में एक एप्लीकेशन चुनाव आयोग को दी गई थी.
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सीएम बनने के 2 महीने के बाद उन्होंने गुजारिश की थी कि उनपर लगा चुनाव प्रतिबंध का समय कम किया जाए, ताकि वो उपचुनाव लड़ सके. तमांग की इस एप्लीकेशन को आयोग ने मंजूर कर लिया था. इस वक्त मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा थे, जिन्होंने तमांग के चुनाव प्रतिबंध के समय को 6 साल से घटाकर 13 महीने किया था.
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एडवोकेट जगबीर गोयत के अनुसार इन दोनों ही मामलों में खास बात ये है कि प्रेम सिंह तमांग पर और ओपी चौटाला के खिलाफ एफआईआर 2003 में हुई थी, जबकि ओपी चौटाला पर फैसला 2013 को आया जबकि प्रेम सिंह तमांग को लेकर 2016 को फैसला आया था. तमांग का मामला 2017 तक सुप्रीम कोर्ट में चलता रहा और 10 अगस्त 2018 को उन्होंने अपनी सजा पूरी की थी. ऐसे में ओपी चौटाला को भी आयोग से राहत मिलने की ज्यादा उम्मीद है.
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