चंडीगढ़: पंजाब सरकार की तरफ से गुरुनानक देव जी के 550वें प्रकाश उत्सव को लेकर 6 नवंबर को 1 दिन का विशेष सत्र बुलाया गया. जिसमें हरियाणा के विधायकों को भी आमंत्रित किया गया. हरियाणा बनने के बाद 53 साल में ये पहला मौका है जब दोनों राज्यों का संयुक्त अधिवेशन का आयोजन किया गया.
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का संबोधन
सदन को संबोधित करते हुई पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि देव गुरुनानक जी ने परमात्मा की एकता संदेश दिया. साथ ही इकबाल के एक शेर का भी जिक्र किया. साथ ही कहा कि पंजाब गुरुनानक देव जी की कर्मभूमि है. पंजाब का कोई युवक हिंदू और मुसलमान नहीं गुरु जी का बंदा है.
उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू का संबोधन
उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने गुरु नानक देव जी के जीवन एवं उनकी शिक्षाओं के बारे में चर्चा की. उन्होंने कहा कि हमें उनके दिखाए रास्ते पर चलने की आवश्यकता है.
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[LIVE] Delivering my Vote of Thanks during the Special Session of the Punjab Vidhan Sabha to commemorate the #550thPrakashPurb of Sri Guru Nanak Dev Ji. https://t.co/DcOZNRREWQ
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पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह का संबोधिन
वहीं पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरेंद्र सिंह ने अपने संबोधन के दैरान कहा कि महान सख्शियत जिन्होंने हमें जन्म दिया, कौम को जन्म दिया. आज जरूरत है कि जो गलत रास्ते पर चले गए हैं वो वापस आ जाए. गुरु नानक जी ने कहा पवन पिता , पानी गुरु, माता धरती. कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने कहा प्रदूषण की समस्या चल रही है.
देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ, लेकिन हरियाणा राज्य 1 नवंबर 1966 को अस्तित्व में आया. इससे पहले एक ही राज्य पंजाब हुआ करता था. तब एक ही विधानसभा हुआ करती थी, लेकिन हरियाणा बनने के बाद हरियाणा की विधानसभा अलग हो गई और दोनों राज्य अलग-अलग सदनों में अपने सत्र का आयोजन करने लगे, लेकिन करीब 53 साल बाद फिर से पंजाब सदन में दोनों राज्यों का संयुक्त अधिवेशन आयोजित किया गया.
ये सत्र गुरु नानक देव के जीवन पर केंद्रित रहा. इस कार्य विधानसभा स्पीकर का आसन नहीं लगेगा. उप राष्ट्रपति, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के अलावा पंजाब के राज्यपाल, सीएम, स्पीकर, नेता प्रतिपक्ष और अन्य नेता भी अपनी बात रखी.
एक ही बिल्डिंग में हैं दोनों राज्यों के सदन
चंडीगढ़ विधानभवन में पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों के लिए अलग-अलग सदन हैं. जिसमें पंजाब विधानसभा का सत्र पंजाब सदन में चलता है और हरियाणा विधानसभा का सत्र हरियाणा सदन में चलता है. हरियाणा की तुलना में पंजाब सदन स्थल काफी बड़ा है जिसके मुख्य तीन दरवाजे हैं. वहीं हरियाणा सदन स्थल छोटा है और इसमें सिर्फ दो दरवाजे हैं.
हरियाणा के अलग राज्य बनने का संघर्ष
अब हरियाणा पंजाब का हिस्सा नहीं है. लेकिन लंबे समय तक ब्रिटिश भारत में पंजाब प्रांत का एक भाग रहा है.
सन् 1952 में पहले आम चुनाव हुए, जिनमें हरियाणा क्षेत्र से चौ. देवीलाल समेत कांग्रेस के 38 विधायक चुने गए. अलग राज्य बनवाने के लिए चौ. देवीलाल एवं चौ. चरण सिंह ने उत्तरप्रदेश एवं हरियाणा क्षेत्र से 125 विधायकों का हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री जीबी पंत को दिल्ली में दिया. 1953 में चौ. देवीलाल ने भारत सरकार द्वारा बनाए गए राज्य पुनर्गठन आयोग के सामने अलग हरियाणा राज्य बनाने की मांग रखी.
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1955 में अकाली नेताओं ने धर्म के आधार पर पंजाब को बांटने की मांग रखी. उधर पंजाबी प्रांत की मांग को लेकर संत फतेह सिंह ने 16 अगस्त 1965 को आमरण अनशन की घोषणा करते हुए कहा कि यदि सरकार ने पंजाबी सूबा नहीं बनने दिया तो वह आत्मदाह कर लेंगे. केन्द्र सरकार ने पार्लियामेंट्री कमेटी की सिफारिशों को सिद्धांतिक आधार पर स्वीकार कर लिया और 23 अप्रैल 1966 को तीनों राज्यों के अलग-अलग गठन के लिए पंजाब सीमा आयोग का गठन किया गया.
संत फतेह सिंह के अनशन से मिला हरियाणा !
अलग पंजाब की मांग को लेकर भी आंदोलन चरम पर था. 1965 में संत फतह सिंह अनशन पर बैठ गए आत्मदाह की धमकी दे दी. इस आंदोलन के दबाव में पंजाब के बंटवारे की मांग जनसंघ को छोड़कर सभी ने मान ली. इसके बाद 1966 में इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी और उन्होंने पंजाब के बंटवारे को मंजूरी दे दी और 23 अप्रैल 1966 को जेसी शाह के नेतृत्व में एक सीमा आयोग का गठन किया गया. जिसने 31 मई 1966 को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी.
3 सितंबर 1966 को तत्कालीन गृह मंत्री गुलजारी लाल नंदा ने पंजाब पुनर्गठन बिल लोकसभा में पेश किया. जिसमें कहा गया कि हरियाणा और पंजाब के उच्च न्यायालय, विश्व विद्यालय, बिजली बोर्ड और भंडारण निगम एक ही रहेंगे. इसके अलावा चंडीगढ़ दोनों राज्यों की राजधानी होगी. 7 सितंबर 1966 को पंजाब पुनर्गठन बिल लोकसभा से पास हो गया और 18 सितंबर 1966 को राष्ट्रपति ने इस बिल पर मुहर लगाई. ऐसे 1 नवंबर 1966 को हरियाणा अलग राज्य बन गया.