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कीटनाशक प्रतिबंध: हरियाणा-पंजाब के किसान बोले-पैदावार कम होने से नहीं मिलेगी लागत, विकल्प दे सरकार - कीटनाशक बैन पेरासाइट उद्योग प्रभाव

केंद्र सरकार ने 27 कीटनाशकों को प्रतिबंधित करने की अधिसूचना जारी की है. जिस वजह से किसानों को चिंता सताने लगी है कि अगर कीटनाशक नहीं इस्तेमाल करेंगे तो वो कैसे कीटों और खरपतवारों से फसलों को बचाएंगे, इसी मुद्दे पर ईटीवी भारत की टीम ने किसानों और कृषि विशेषज्ञों से विस्तृत चर्चा की.

governments proposal to ban 27 pesticides effects on farmers
हरियाणा-पंजाब के किसान बोले-पैदावार कम होने से नहीं मिलेगी लागत, विकल्प दे सरकार
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Published : Jun 16, 2020, 12:18 PM IST

जींद/लुधियाना: पिछले एक दशक में भारत में पेस्टिसाइड का इस्तेमाल जोरों पर हो रहा है. इस दौरान देश में खेती का व्यवसायिकरण भी शुरू हुआ, जिससे खेती में पेस्टिसाइड का इस्तेमाल करने की होड़ लग गई. हरियाणा और पंजाब जैसे कृषि प्रमुख राज्य पेस्टिसाइड के भी बड़े उपभोक्ता के रूप में सामने आए, लेकिन अब इस कीटनाशकों के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं, जिस पर केंद्र सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. ईटीवी भारत ने हरियाणा और पंजाब के किसानों से मिलकर इसका जायजा लिया कि कीटनाशकों के बैन से क्या प्रभाव पड़ेगा.

आसान भाषा में समझा जाए तो कीटनाशक वो जहर है जो फल, सब्जियों और अनाज को कीड़े, रोग और खरपतवार से बचाने के लिए डाले जाते हैं, लेकिन इस कीटनाशक का सिर्फ एक हिस्सा ही कीड़ों और रोगों को मारने का काम आता है, बाकि 99 फीसदी का बड़ा हिस्सा उस फल और अनाज में समा जाता है, जो खाने वालों को बीमार कर सकता है.

हरियाणा में मुख्य रूप से चावल और गेहूं की खेती होती है, इसके साथ ही मक्का, गन्ना, अरहर, गवार, तिल, ग्रीष्म मूंग, कपास, आदि का बड़े स्तर पर उत्पादन होता है. अपनी फसलों को खर पतवार और कई तरह के कीटों से बचाने के लिए किसान 75 प्रतिशत से ज्यादा फसलों में इन कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं.

इसके अलावा बागवानी में भी जमकर पेस्टिसाइड्स का इस्तेमाल किया जा रहा है. केला, आम, अंगूर, बैंगन, भिंडी तक में भारी मात्रा में क्लास-वन (अत्यधिक हानिकारक) रसायनों को प्रयोग किया जाता है.

कीटनाशकों पर बैन लगाने के फैसले पर ईटीवी भारत ने हरियाणा और पंजाब के किसानों से बातचीत की. इस बारे में हरियाणा के जींद जिले के किसान रणधीर और सतबीर का कहना है कि सरकार का फैसला अच्छा है, लेकिन बिना कीटनाशकों के खेती करने में दिक्कत बहुत होगी, खेतों में अगर खरपतवार होंगे तो फसलों को बड़ा नुकसान होगा. दवाइयां बंद करने से किसानों का काम बढ़ जाएगा. जिससे फसल में ज्यादा खर्चा होगा.

किसान रामफल कंडेला के मुताबिक इन कीटनाशकों पर बैन तो सही है लेकिन कोई विकल्प देना भी जरूरी है. उनका कहना है कि क्विनालफॉस कीटनाशक को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तीव्र खतरे की रैंकिंक में मध्य रूप से खतरनाक माना है. इसका इस्तेमाल मिर्च और कपास की फसल पर छिड़काव के लिए किया जाता है. हरियाणा में कपास की फसल पर लगातार कीटों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है.

किसान मनोज ने कहा कि सरकार ने कीटनाशकों पर फैसला बड़ी देरी से लिया है. दूसरे देशों में 20-30 साल पहले से ही मोनोक्रोटोफस दवाई बैन है, लेकिन हमारे यहां अब ये फैसला लिया गया है.

वहीं पंजाब के लुधियाना के किसान राजविंदर और रामजीत का कहना है कि कीटनाशकों का प्रयोग करना हमारी मजबूरी है. इनके इस्तेमाल के बिना फसल कम होगी, उपज कम होने से हमारे खर्चे पूरे नहीं होंगे, तो घाटे की खेती कैसे करें. हमारे पास विकल्प नहीं है, वरना हम पेस्टिसाइड का इस्तेमाल कर क्यों जहर की खेती करते.

क्या है एक्सपर्ट की राय?

हिसार चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग के प्रभारी योगेश कुमार के मुताबिक सब्जी और अन्य फसलों में कई प्रकार के कीड़े और कृमि लगते हैं. इनको नियंत्रित करने के लिए किसान रसायन का प्रयोग करते हैं. ऐसा न करने पर किसानों की उत्पादन क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. कीड़े लगे फल और सब्जियां मार्केट में नहीं बिकती और किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता है.

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि किसानों को कीटनाशकों का प्रयोग कम से कम किया जाना चाहिए. कीटनाशक स्प्रे के अलावा भूमि की गहरी जुताई करें, जिसके कारण लारवा और कीट बाहर आ जाते है, जिसे पक्षी नष्ट कर देते हैं और तेज धूप में भी खुद नष्ट हो जाते हैं. वहीं सब्जियों और फलों के साथ कुछ अन्य फसलें भी कुछ क्षेत्र में लगा लेनी चाहिए. जिससे कीट उस फसल पर चले जाएंगे और उस पर रसायन का प्रयोग किया जाए.

वहीं सिफारिश किए गए कीटनाशक निर्देशित मात्रा में प्रयोग करें. इनके प्रयोग करने के बाद निर्धारित समय के बाद ही सब्जियों को तोड़कर मंडी में ले जाना चाहिए. उन्होंने बताया कि सभी दवाइयों के प्रभाव का समय अलग अलग होता है.

लुधियाना (पंजाब) के मुख्य कृषि अधिकारी डॉ. नरिंदर सिंह बेनीपाल के मुताबिक सरकार ने जिन पेस्टिसाइड स्प्रे पर प्रतिबंध लगाने की योजना बनाई है. उनसे लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है. ये फैसला बिल्कुल सही है. उन्होंने कहा कि वह किसानों को जैविक खेती की ओर प्रेरित करने के लिए सेमिनार आयोजित कर रहे हैं और विभिन्न कृषि कार्यक्रमों की शुरुआत कर रहे हैं.

आपत्ति दर्ज कराने के लिए मंत्रालय ने दिया समय

केंद्र सरकार ने 27 कीटनाशकों को प्रतिबंधित करने की अधिसूचना जारी की है, लेकिन कृषि मंत्रालय ने उद्योग और निर्माताओं को प्रतिबंध पर आपत्ति जताने के लिए 45 दिन का वक्त दिया है.

इन कीटनाशकों को प्रतिबंधित करने की योजना

केंद्र सरकार ने जिन 27 कीटनाशकों को बैन करने की योजना बनाई है. वो बाजार में ऐसफेट, अल्ट्राजाइन, बेनफराकारब, बुटाक्लोर, कैप्टन, कारबेडेंजिम, कार्बोफ्यूरान, क्लोरप्यरिफॉस, 2.4-डी, डेल्टामेथ्रीन, डिकोफॉल, डिमेथोट, डाइनोकैप, डियूरॉन, मालाथियॉन, मैनकोजेब, मिथोमिल, मोनोक्रोटोफॉस, ऑक्सीफ्लोरीन, पेंडिमेथलिन, क्यूनलफॉस, सलफोसूलफूरोन, थीओडीकर्ब, थायोफनेट मिथाइल, थीरम, जीनेब और जीरम नाम से बेचे जाते हैं.

ये भी पढ़ें- बाइबल और कुरान में भी है टिड्डी दलों का जिक्र, इंसानों के लिए माना गया अभिशाप

जींद/लुधियाना: पिछले एक दशक में भारत में पेस्टिसाइड का इस्तेमाल जोरों पर हो रहा है. इस दौरान देश में खेती का व्यवसायिकरण भी शुरू हुआ, जिससे खेती में पेस्टिसाइड का इस्तेमाल करने की होड़ लग गई. हरियाणा और पंजाब जैसे कृषि प्रमुख राज्य पेस्टिसाइड के भी बड़े उपभोक्ता के रूप में सामने आए, लेकिन अब इस कीटनाशकों के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं, जिस पर केंद्र सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. ईटीवी भारत ने हरियाणा और पंजाब के किसानों से मिलकर इसका जायजा लिया कि कीटनाशकों के बैन से क्या प्रभाव पड़ेगा.

आसान भाषा में समझा जाए तो कीटनाशक वो जहर है जो फल, सब्जियों और अनाज को कीड़े, रोग और खरपतवार से बचाने के लिए डाले जाते हैं, लेकिन इस कीटनाशक का सिर्फ एक हिस्सा ही कीड़ों और रोगों को मारने का काम आता है, बाकि 99 फीसदी का बड़ा हिस्सा उस फल और अनाज में समा जाता है, जो खाने वालों को बीमार कर सकता है.

हरियाणा में मुख्य रूप से चावल और गेहूं की खेती होती है, इसके साथ ही मक्का, गन्ना, अरहर, गवार, तिल, ग्रीष्म मूंग, कपास, आदि का बड़े स्तर पर उत्पादन होता है. अपनी फसलों को खर पतवार और कई तरह के कीटों से बचाने के लिए किसान 75 प्रतिशत से ज्यादा फसलों में इन कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं.

इसके अलावा बागवानी में भी जमकर पेस्टिसाइड्स का इस्तेमाल किया जा रहा है. केला, आम, अंगूर, बैंगन, भिंडी तक में भारी मात्रा में क्लास-वन (अत्यधिक हानिकारक) रसायनों को प्रयोग किया जाता है.

कीटनाशकों पर बैन लगाने के फैसले पर ईटीवी भारत ने हरियाणा और पंजाब के किसानों से बातचीत की. इस बारे में हरियाणा के जींद जिले के किसान रणधीर और सतबीर का कहना है कि सरकार का फैसला अच्छा है, लेकिन बिना कीटनाशकों के खेती करने में दिक्कत बहुत होगी, खेतों में अगर खरपतवार होंगे तो फसलों को बड़ा नुकसान होगा. दवाइयां बंद करने से किसानों का काम बढ़ जाएगा. जिससे फसल में ज्यादा खर्चा होगा.

किसान रामफल कंडेला के मुताबिक इन कीटनाशकों पर बैन तो सही है लेकिन कोई विकल्प देना भी जरूरी है. उनका कहना है कि क्विनालफॉस कीटनाशक को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तीव्र खतरे की रैंकिंक में मध्य रूप से खतरनाक माना है. इसका इस्तेमाल मिर्च और कपास की फसल पर छिड़काव के लिए किया जाता है. हरियाणा में कपास की फसल पर लगातार कीटों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है.

किसान मनोज ने कहा कि सरकार ने कीटनाशकों पर फैसला बड़ी देरी से लिया है. दूसरे देशों में 20-30 साल पहले से ही मोनोक्रोटोफस दवाई बैन है, लेकिन हमारे यहां अब ये फैसला लिया गया है.

वहीं पंजाब के लुधियाना के किसान राजविंदर और रामजीत का कहना है कि कीटनाशकों का प्रयोग करना हमारी मजबूरी है. इनके इस्तेमाल के बिना फसल कम होगी, उपज कम होने से हमारे खर्चे पूरे नहीं होंगे, तो घाटे की खेती कैसे करें. हमारे पास विकल्प नहीं है, वरना हम पेस्टिसाइड का इस्तेमाल कर क्यों जहर की खेती करते.

क्या है एक्सपर्ट की राय?

हिसार चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग के प्रभारी योगेश कुमार के मुताबिक सब्जी और अन्य फसलों में कई प्रकार के कीड़े और कृमि लगते हैं. इनको नियंत्रित करने के लिए किसान रसायन का प्रयोग करते हैं. ऐसा न करने पर किसानों की उत्पादन क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. कीड़े लगे फल और सब्जियां मार्केट में नहीं बिकती और किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता है.

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि किसानों को कीटनाशकों का प्रयोग कम से कम किया जाना चाहिए. कीटनाशक स्प्रे के अलावा भूमि की गहरी जुताई करें, जिसके कारण लारवा और कीट बाहर आ जाते है, जिसे पक्षी नष्ट कर देते हैं और तेज धूप में भी खुद नष्ट हो जाते हैं. वहीं सब्जियों और फलों के साथ कुछ अन्य फसलें भी कुछ क्षेत्र में लगा लेनी चाहिए. जिससे कीट उस फसल पर चले जाएंगे और उस पर रसायन का प्रयोग किया जाए.

वहीं सिफारिश किए गए कीटनाशक निर्देशित मात्रा में प्रयोग करें. इनके प्रयोग करने के बाद निर्धारित समय के बाद ही सब्जियों को तोड़कर मंडी में ले जाना चाहिए. उन्होंने बताया कि सभी दवाइयों के प्रभाव का समय अलग अलग होता है.

लुधियाना (पंजाब) के मुख्य कृषि अधिकारी डॉ. नरिंदर सिंह बेनीपाल के मुताबिक सरकार ने जिन पेस्टिसाइड स्प्रे पर प्रतिबंध लगाने की योजना बनाई है. उनसे लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है. ये फैसला बिल्कुल सही है. उन्होंने कहा कि वह किसानों को जैविक खेती की ओर प्रेरित करने के लिए सेमिनार आयोजित कर रहे हैं और विभिन्न कृषि कार्यक्रमों की शुरुआत कर रहे हैं.

आपत्ति दर्ज कराने के लिए मंत्रालय ने दिया समय

केंद्र सरकार ने 27 कीटनाशकों को प्रतिबंधित करने की अधिसूचना जारी की है, लेकिन कृषि मंत्रालय ने उद्योग और निर्माताओं को प्रतिबंध पर आपत्ति जताने के लिए 45 दिन का वक्त दिया है.

इन कीटनाशकों को प्रतिबंधित करने की योजना

केंद्र सरकार ने जिन 27 कीटनाशकों को बैन करने की योजना बनाई है. वो बाजार में ऐसफेट, अल्ट्राजाइन, बेनफराकारब, बुटाक्लोर, कैप्टन, कारबेडेंजिम, कार्बोफ्यूरान, क्लोरप्यरिफॉस, 2.4-डी, डेल्टामेथ्रीन, डिकोफॉल, डिमेथोट, डाइनोकैप, डियूरॉन, मालाथियॉन, मैनकोजेब, मिथोमिल, मोनोक्रोटोफॉस, ऑक्सीफ्लोरीन, पेंडिमेथलिन, क्यूनलफॉस, सलफोसूलफूरोन, थीओडीकर्ब, थायोफनेट मिथाइल, थीरम, जीनेब और जीरम नाम से बेचे जाते हैं.

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