चंडीगढ़: ये कहानी है आबिद खान की, जिसमें इश्क है, रुसवाई है और जुदाई भी. बॉक्सर आबिद खान, जिन्होंने कभी मुक्केबाजी की अल्लाह जैसी इबादत की थी. मुक्केबाजी के लिए जुनून ऐसा था कि दिन रात एक कर पसीना बहाया. देश के लिए कई मेडल जीते, लेकिन कोच का कोर्स करने के बाद भी जब मुक्केबाजी दो जून की रोटी ना दिला सकी तो मजबूरी में बॉक्सिंग रिंग छोड़कर आबिद खान ने ऑटो का स्टेयरिंग थाम लिया.
आबिद खान जो 80 के दशक राष्ट्रीय बॉक्सर रह चुके हैं. 25 सालों से बॉक्सिंग से दूर रहने के बाद अब फिर बॉक्सिंग उन्हें अपनी ओर खींच लाई है. आबिद खान जो पिछले काफी समय से एक ऑटो चालक के तौर पर काम कर रहे हैं और अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं, लेकिन अब उनकी जिंदगी फिर से बॉक्सिंग के साथ जुड़ गई है. 25 साल पहले बॉक्सिंग छोड़ चुके आबिद खान अब बच्चों को मुफ्त में बॉक्सिंग की ट्रेनिंग दे रहे हैं.
पूर्व बॉक्सर आबिद खान ने बताया कि वो 80 के दशक में बॉक्सिंग के खिलाड़ी थे. उन्होंने कई बार राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और कई पदक अपने नाम किए, जिनमें स्वर्ण पदक भी शामिल है. उनके परिवार की हालत ऐसी नहीं थी कि वो ज्यादा दिन अपनी बॉक्सिंग को जारी रख पाते, इसलिए उन्होंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स से बॉक्सिंग कोच का डिप्लोमा किया ताकि कोच बनकर नए खिलाड़ियों को ट्रेनिंग दे सकें और अपनी आर्थिक स्थिति भी सुधार सके.
कोच बनने के बाद उन्होंने कई खिलाड़ियों को ट्रेनिंग भी दी. उन्होंने सेना के बॉक्सिंग खिलाड़ियों को भी कई सालों तक कोचिंग दी, लेकिन इसके बाद उन्हें कहीं भी कोच की नौकरी नहीं मिली. कई सालों तक नौकरी की तलाश करने के बावजूद वो नौकरी ढूंढने में सफल नहीं हो सके. जिसके बाद उन्होंने बॉक्सिंग को हमेशा के लिए छोड़ने का फैसला किया.
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आबिद खान बताते हैं कि वो एक कॉलेज में चपड़ासी की नौकरी के लिए एक प्रोफेसर से बात करने गए थे. वहां प्रोफेसर ने उन्हें ये कहा कि स्पोर्ट्समैन डंगरों की तरह आज सड़कों पर घूम रहे हैं. इस बात से और नौकरनी नहीं मिलने की वजह से खफा होकर उन्होंने अपनी कई शील्ड्स तोड़ दी और सर्टिफिकेट फाड़ दिए.
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इसके बाद आबिक छोटी-मोटी नौकरी करने लगे. कुछ समय बाद में पैसा कमाने की चाह में वो सऊदी अरब चले गए. जहां चार-पांच साल तक काम करने के बाद वो वापस भारत आ गए और साल 2004 से अब तक वो ऑटो चला कर गुजर बसर कर रहे हैं.
सिस्टम से नाराज हैं आबिद खान
आबिद खान ने कहा कि वो एक अच्छे बॉक्सर थे और उन्हें उम्मीद थी कि कोचिंग का डिप्लोमा करने के बाद उन्हें कहीं ना कहीं कोच की नौकरी जरूर मिल जाएगी, लेकिन जब उन्हें नौकरी नहीं मिली तब उनका इस सिस्टम से विश्वास उठ गया.
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अपने बेटों को भी नहीं बनाया खिलाड़ी
आबिद खान ने कहा कि बॉक्सिंग को लेकर उनका जैसा अनुभव रहा इससे वो खेलों से दूर हो गए थे, इसलिए उन्होंने अपने बेटों को भी खेलों में नहीं डाला. छोटा बेटा अभी पढ़ाई कर रहा है, जबकि बड़ा बेटा 12वीं करने के बाद नौकरी कर रहा है, लेकिन जब से उन्होंने बॉक्सिंग की ट्रेनिंग देनी शुरू की है तब से वो अपने दोनों बेटों को भी बॉक्सिंग की ट्रेनिंग देने लगे हैं.
'अमीरों का खेल नहीं है बॉक्सिंग'
आबिद खान ने कहा कि बॉक्सिंग को देखना तो सब पसंद करते हैं, लेकिन बॉक्सिंग को खेलना सबके बस की बात नहीं है. अमीरों के बच्चे बॉक्सिंग जैसे खेलों में नहीं बल्कि टेनिस, बैडमिंटन और क्रिकेट जैसे खेलों में जाते हैं क्योंकि बॉक्सिंग में मार खानी पड़ती है, चोट लगती है, इसलिए हर कोई बॉक्सिंग में नहीं आना चाहता और ना ही हर कोई बॉक्सिंग का खिलाड़ी बन सकता है.
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अब आ रहे कई जगह से ऑफर
आबिद खान बताते हैं कि मीडिया की वजह से आज उनकी कहानी लोगों तक पहुंच चुकी है. अब उन्हें कई जगहों से ऑफर आ रहे हैं. कई बॉक्सिंग अकेडमी भी उन्हें बुला रही हैं, लेकिन वो बॉक्सिंग के जरिए पैसा नहीं कमाना चाहते हैं और ना ही किसी की मदद लेना चाहते हैं. अगर कोई मदद करना चाहता है तो उनकी मदद अकेडमी खोलने में की जाए.
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अब 25 साल बाद ही सही लेकिन आबिद खान का कोचिंग सेंटर का सपना पूरा होने जा रहा है. उनकी कहानी जानने के बाद अब बॉक्सर विजेंद्र सिंह, जाने-माने उद्योगपति और महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा के अलावा एक्टर फरहान अख्तर उनकी मदद के लिए आगे आए हैं ताकि आबिद खान की आंखों का सपना देश के बच्चों के मुक्के पूरा करें और आबिद खान रुसवाई को रहनुमाई में बदलकर हिंदुस्तान का झंडा ऊंचा कर सकें.