चंडीगढ़: देश आज कोरोना वैक्सीनेशन का बेसब्री से इंतजार कर रहा है. लोगों को उम्मीद है कि जल्द ही भारत में भी आम लोगों के लिए कोरोना वैक्सीन उपलब्ध होगी, लेकिन कोरोना वैक्सीन के आने के बाद भी इसे देश के कोने-कोने तक पहुंचाना भी एक बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि कोरोना वैक्सीन को माइनस 80 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर रखा जाता है.
भविष्य में वैक्सीन ट्रांसपोर्टेशन होगी बड़ी समस्या
ड्राई आइस को लेकर काम करने वाली कंपनी के भारत भूषण ने बताया कि वैक्सीन को देश के किसी भी कोने तक पहुंचाना हो तो पूरी प्रोसेस में तापमान का ख्याल रखना बेहद जरूरी है. उनका कहना है कि इस वैक्सीन को देश के हर व्यक्ति तक सुरक्षित पहुंचाने के लिए करीब 1.50 लाख रेफ्रिजरेशन से युक्त वाहनों की जरूरत पड़ेगी. इसके अलावा 76 हजार कोल्ड चेन उपकरण और 27000 कोल्ड चेन पॉइंट की जरूरत भी पड़ेगी, जोकि बेहद खर्चीली प्रक्रिया है.
ड्राई आइस से निकलेगा समाधान
भारत भूषण का कहना है कि ड्राई आइस के जरिए इस समस्या का समाधान आसानी से किया जा सकता है, क्योंकि ड्राई आइस का तापमान -80 से -90 डिग्री तक होता है. अगर वैक्सीन को ड्राई आइस में रखकर एक जगह से दूसरी जगह भेजा जाए तो वह सुरक्षित तरीके से पहुंचाई जा सकती है.
एक बार ड्राई आइस रखने के बाद 4 से 5 दिनों तक वैक्सीन सुरक्षित रहेगी. इसके बाद भी बॉक्स में फिर से ड्राई आइस रखकर वैक्सीन को और ज्यादा दिनों तक सुरक्षित किया जा सकता है. इतने दिनों में देश के किसी भी कोने तक आराम से पहुंचा जा सकता है.
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'कम खर्चिली है ड्राई आइस'
इसके अलावा ड्राई आइस को इस्तेमाल करने से वैक्सीन के ट्रांसपोर्टेशन का खर्च काफी कम हो जाएगा. इससे प्रति वैक्सीन 40 से 50 पैसे का खर्च आएगा. जबकि अगर दूसरे तरीकों से ट्रांसपोर्टेशन किया जाए तो खर्चा काफी बढ़ जाएगा, इसलिए ड्राई आइस ही सबसे सुरक्षित और सस्ता तरीका होगा.
क्या होती है ड्राई आइस?
ठोस कार्बन डाई ऑक्साइड ही ड्राई आइस होती है. यह कूलिंग एजेंट है. आइसक्रीम बनाने में और बर्फ के स्कल्पचर को पिघलने से बचाने में भी इसका इस्तेमाल होता है. इसका औसत तापमान माइनस 78 डिग्री होता है. ड्राई आइस घरेलू फ्रीजर (तापमान माइनस 20 डिग्री) के मुकाबले चार गुना ठंडी होती है. मेडिकल क्षेत्र में इसका काफी इस्तेमाल किया जाता है.
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